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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी बृहती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    तस्या॑ वि॒रोच॑नः॒ प्राह्रा॑दिर्व॒त्स आसी॑दयस्पा॒त्रं पात्र॑म्।

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्या॑: । वि॒ऽरोच॑न: । प्राह्रा॑दि: । व॒त्स: । आसी॑त् । अ॒य॒:ऽपा॒त्रम् । पात्र॑म् ॥१३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्या विरोचनः प्राह्रादिर्वत्स आसीदयस्पात्रं पात्रम्।

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्या: । विऽरोचन: । प्राह्रादि: । वत्स: । आसीत् । अय:ऽपात्रम् । पात्रम् ॥१३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 4; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (सा उद् अक्रामत्) वह विराट् ऊपर उठी। (सा असुरान्) वह असुरों के समीप (आ अगच्छत्) आई॥ १॥ (ताम्) उस को (असुराः) असुर लोगों ने (उपा अह्वयन्त) बुलाया—हे (माये) माये ! (एहि इति) आ॥ २॥ (तस्याः) उसका (प्राह्रादिः) प्रह्राद से उत्पन्न (विरोचनः) विरोचन (वत्सः) वत्स (आसीत्) था। और (अयः-पात्रं) लोहे का पात्र (पात्रम्) पात्र था। (ताम्) उस माया को (द्वि-मूर्धा) दो शिरों वाले बुद्धिमान् (अर्त्व्यः) ऋतु से उत्पन्न ने (अधोक्) दुहा॥ ३॥ (ताम्) उस माया रूप विराट् के आश्रय (असुराः उपजीवन्ति) असुर लोग अपना जीवन निर्वाह करते हैं। (यः एवं वेद) जो इस प्रकार के तत्व को जानता है वह (उपजीवनीयो भवति) औरों के आजीविका निर्वाह कराने में समर्थ होता है। असितो धान्वो राजा इत्याह तस्यासुरा विशः। त इसे आसत। इति कुसी दिन उपसमेता भवन्ति। तान् उपदिशति माया वेदः सो यम् इति। श० १३। ४। ३। ११॥ असुर, शिल्पीगण प्राह्रादि अर्थात् प्रभूत शब्द करने वाली विरोचन, विशेष दीप्तियुक्त विद्युत् । ‘अयः’ धातुमय, पदार्थ, द्विमूर्धा दो मूलों को धारण करने वाला, अर्त्व्यः—गति क्रियाशास्त्र का विद्वान्, कला कौशलवित्, एन्जीनियर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १, ५ साम्नां जगत्यौ। २,६,१० साम्नां बृहत्यौ। ३, ४, ८ आर्च्यनुष्टुभः। ९, १३ चतुष्पाद् उष्णिहौ। ७ आसुरी गायत्री। ११ प्राजापत्यानुष्टुप्। १२, १६ आर्ची त्रिष्टुभौ। १४, १५ विराङ्गायत्र्यौ। षोडशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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