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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 15/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष वां॑ देवावश्विना कुमा॒रः सा॑हदे॒व्यः। दी॒र्घायु॑रस्तु॒ सोम॑कः ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । वा॒म् । दे॒वौ॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । कु॒मा॒रः । सा॒ह॒ऽदे॒व्यः । दी॒र्घऽआ॑युः । अ॒स्तु॒ । सोम॑कः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष वां देवावश्विना कुमारः साहदेव्यः। दीर्घायुरस्तु सोमकः ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः। वाम्। देवौ। अश्विना। कुमारः। साहऽदेऽव्यः। दीर्घऽआयुः। अस्तु। सोमकः ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 15; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (अश्विनौ देवौ) समस्त विद्याओं में व्याप्त वा अश्व के तुल्य बलवान् और विद्यामार्ग में वेग से जाने वाले विद्यार्थी के स्वामी (देवौ) ज्ञान के प्रकाशक, विद्यादाता आचार्य आचार्याणी (एषः) यह (वां) तुम दोनों का (कुमारः) कुमार (साहदेव्यः) विद्याभिलाषी शिष्यों और विद्या के प्रकाशक गुरुओं के सदा साथ रहने वाला है। वह (सोमकः) विद्या में पुत्र के तुल्य, स्नातक होकर (दीर्घायुः अस्तु) दीर्घायु हो। हे (देवौ अश्विनौ) विजिगीषु राजा सेनापति ! वीर पुरुषों सहित, शत्रुमारक यह (सोमकः) पदाभिषिक्त नायक गण दीर्घायु हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः॥ १–६ अग्निः । ७, ८ सोमकः साहदेव्यः । ९,१० अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, ४ गायत्री । २, ५, ६ विराड् गायत्री । ३, ७, ८, ९, १० निचृद्गायत्री ॥ षडजः स्वरः ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

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