Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 15 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 15/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं यु॒वं दे॑वावश्विना कुमा॒रं सा॑हदे॒व्यम्। दी॒र्घायु॑षं कृणोतन ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । यु॒वम् । दे॒वौ॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । कु॒मा॒रम् । सा॒ह॒ऽदे॒व्यम् । दी॒र्घऽआ॑युषम् । कृ॒णो॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं युवं देवावश्विना कुमारं साहदेव्यम्। दीर्घायुषं कृणोतन ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। युवम्। देवौ। अश्विना। कुमारम्। साहऽदेव्यम्। दीर्घऽआयुषम्। कृणोतन ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 15; मन्त्र » 10
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    हे (देवौ अश्विना) विद्या पारंगत, विद्यादाता गुरुजनो ! (युवं) आप दोनों मिलकर (साहदेव्यं) ज्ञानदाता गुरु के साथ रहने वाले (त) उस (कुमार) कुमार शिष्य को (दीर्घायुषं कृणोतन) दीर्घायु बनाओ ब्रह्मचर्य पालन द्वारा उसे चिरंजीवी बनाओ । इसी प्रकार अश्वादि सैन्य के स्वामी सैन्यपति लोग विजिगीषु पुरुषों के साथ सहोद्योगी शत्रुहन्ता राजा को दीर्घायु करें। प्रयाण के समय, दो (अश्विनौ) घुड़सवार नायक के शरीर रक्षक रूप से भी रहें । इति षोडशी वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः॥ १–६ अग्निः । ७, ८ सोमकः साहदेव्यः । ९,१० अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, ४ गायत्री । २, ५, ६ विराड् गायत्री । ३, ७, ८, ९, १० निचृद्गायत्री ॥ षडजः स्वरः ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top