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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 2 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
देवता - वायु:
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वाय॒वा या॑हि दर्शते॒मे सोमा॒ अरं॑कृताः। तेषां॑ पाहि श्रु॒धी हव॑म्॥
स्वर सहित पद पाठवायो॒ इति॑ । आ । या॒हि॒ । द॒र्श॒त॒ । इ॒मे । सोमाः॑ । अरं॑ऽकृताः । तेषा॑म् । पा॒हि॒ । श्रु॒धि । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृताः। तेषां पाहि श्रुधी हवम्॥
स्वर रहित पद पाठवायो इति। आ। याहि। दर्शत। इमे। सोमाः। अरंऽकृताः। तेषाम्। पाहि। श्रुधि। हवम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
विषय - स्तुतिविषय
व्याखान -
हे (वायो) अनन्तबल परेश, वायो ! (दर्शत आयाहि) दर्शनीय ! आप अपनी कृपा से ही हमको प्राप्त हों। (इमे सोमाः) हम लोगों ने अपनी अल्पशक्ति से सोम [सोमवल्यादि] ओषधियों का उत्तम रस सम्पादन किया है और जो कुछ भी हमारे श्रेष्ठ पदार्थ हैं, वे आपके लिए (अरङ्कृताः) अलङ्कृत, अर्थात् उत्तम रीति से हमने बनाये हैं और वे सब आपके समर्पण किये गये हैं, (तेषां पाहि) उनको आप स्वीकार करो [सर्वात्मा से पान करो] । (श्रुधि हवम्) हम दीनों की पुकार सुनकर जैसे पिता को पुत्र छोटी चीज़ समर्पण करता है, उसपर पिता अत्यन्त प्रसन्न होता है, वैसे आप हमपर प्रसन्न होओ ॥ ७ ॥
टिपण्णी -
१. पूर्णरूप से, स्वीकार करो ।