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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 3 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 3/ मन्त्र 10
ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
देवता - सरस्वती
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पा॒व॒का नः॒ सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती। य॒ज्ञं व॑ष्टु धि॒याव॑सुः॥
स्वर सहित पद पाठपा॒व॒का । नः॒ । सर॑स्वती । वाजे॑भिः । वा॒जिनी॑ऽवती । य॒ज्ञम् । व॒ष्टु॒ । धि॒याऽव॑सुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥
स्वर रहित पद पाठपावका। नः। सरस्वती। वाजेभिः। वाजिनीऽवती। यज्ञम्। वष्टु। धियाऽवसुः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
विषय - प्रार्थनाविषयः
व्याखान -
हे वाक्पते! सर्वविद्यामय! (नः) हमको आपकी कृपा से (सरस्वती) सर्वशास्त्रविज्ञानयुक्त वाणी प्राप्त हो (वाजेभिः) तथा उत्कृष्ट अन्नादि के साथ वर्त्तमान (वाजिनीवती) सर्वोत्तम क्रियाविज्ञानयुक्त (पावका ) पवित्रस्वरूप और पवित्र करनेवाली सत्यभाषणमय मङ्गलकारक वाणी आपकी प्रेरणा से प्राप्त होके आपके अनुग्रह से (धियावसुः) परमोत्तम बुद्धि के साथ वर्त्तमान निधिस्वरूप यह वाणी (यज्ञं वष्टु) सर्वशास्त्रबोध और पूजनीयतम आपके विज्ञान की कामनायुक्त सदैव हो, जिससे हमारी सब मूर्खता नष्ट हो और हम महापाण्डित्ययुक्त हों ॥ ८ ॥
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