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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 5 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - आर्च्युष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
पु॒रू॒तमं॑ पुरू॒णामीशा॑नं॒ वार्या॑णाम्। इन्द्रं॒ सोमे॒ सचा॑ सु॒ते॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रु॒ऽतम॑म् । पु॒रू॒णाम् । ईशा॑नम् । वार्या॑णम् । इन्द्र॑म् । सोमे॑ । सचा॑ । सु॒ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम्। इन्द्रं सोमे सचा सुते॥
स्वर रहित पद पाठपुरुऽतमम्। पुरूणाम्। ईशानम्। वार्याणम्। इन्द्रम्। सोमे। सचा। सुते॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
विषय - स्तुतिविषयः
व्याखान -
हे परात्पर परमात्मन्! आप (पुरूतमम्) अत्यन्तोत्तम और सर्वशत्रुविनाशक हो तथा बहुविध जगत् के पदार्थों के (ईशानम्) स्वामी और उत्पादक हो, (वार्याणाम्), वर, वरणीय परमानन्दमोक्षादि पदार्थों के भी ईशान हो और (सोमे) उत्पत्तिस्थान संसार आपसे (सुते) उत्पन्न होने से (सचा) प्रीतिपूर्वक (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् आपको [अभिप्रगायत * ] हृदय में अत्यन्त प्रेम से गावें, [यथावत्] स्तुति करें, जिससे आपकी कृपा से हम लोगों का भी परमैश्वर्य बढ़ता जाए और हम परमानन्द को प्राप्त हों ॥९॥
टिपण्णी -
इस शब्द की अनुवृत्ति मन्त्र १ । १।९ । १ से आई है । – महर्षि