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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 22/ मन्त्र 16
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - विष्णुर्देवो वा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अतो॑ दे॒वा अ॑वन्तु नो॒ यतो॒ विष्णु॑र्विचक्र॒मे। पृ॒थि॒व्याः स॒प्त धाम॑भिः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अतः॑ । दे॒वाः । अ॒व॒न्तु॒ । नः॒ । यतः॑ । विष्णुः॑ । वि॒ऽच॒क्र॒मे । पृ॒थि॒व्याः । स॒प्त । धाम॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अतो देवा अवन्तु नो यतो विष्णुर्विचक्रमे। पृथिव्याः सप्त धामभिः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अतः। देवाः। अवन्तु। नः। यतः। विष्णुः। विऽचक्रमे। पृथिव्याः। सप्त। धामऽभिः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 16
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    व्याखान -

    हे (देवाः)  विद्वानो! (विष्णुः) सर्वत्र व्यापक परमेश्वर ने सब जीवों को पाप तथा पुण्य का फल भोगने और सब पदार्थों के स्थित होने के लिए, पृथिवी से लेके (सप्त) सप्तविध (धामभिः) धाम, अर्थात् ऊँचे-नीचे सात प्रकार के लोकों को बनाया तथा गायत्र्यादि सात छन्दों से विस्तृत विद्यायुक्त वेद को भी बनाया, उन लोकों के साथ वर्त्तमान व्यापक ईश्वर ने (यतः) जिस सामर्थ्य से सब लोकों को रचा है, (अतः सामर्थ्यात्) उस सामर्थ्य से हम लोगों की रक्षा करे। हे विद्वानो! तुम लोग भी उसी विष्णु के उपदेश से हमारी रक्षा करो। कैसा है वह विष्णु ? जिसने इस सब जगत् को (विचक्रमे) विविध प्रकार से रचा है, उसकी नित्य भक्ति करो ॥ ११ ॥

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