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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 36/ मन्त्र 15
पा॒हि नो॑ अग्ने र॒क्षसः॑ पा॒हि धू॒र्तेररा॑व्णः । पा॒हि रीष॑त उ॒त वा॒ जिघां॑सतो॒ बृह॑द्भानो॒ यवि॑ष्ठ्य ॥
स्वर सहित पद पाठपा॒हि । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । र॒क्षसः॑ । पा॒हि । धू॒र्तेः । अरा॑व्णः । पा॒हि । रिष॑तः । उ॒त । वा॒ । जिघां॑सतः । बृह॑द्भानो॒ इति॑ बृह॑त्ऽभानो । यवि॑ष्ठ्य ॥
स्वर रहित मन्त्र
पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्तेरराव्णः । पाहि रीषत उत वा जिघांसतो बृहद्भानो यविष्ठ्य ॥
स्वर रहित पद पाठपाहि । नः । अग्ने । रक्षसः । पाहि । धूर्तेः । अराव्णः । पाहि । रिषतः । उत । वा । जिघांसतः । बृहद्भानो इति बृहत्भानो । यविष्ठ्य॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 36; मन्त्र » 15
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
विषय - प्रार्थनाविषयः
व्याखान -
(अग्ने) हे सर्वशत्रुदाहकाग्ने परमेश्वर ! (रक्षसः) राक्षस, हिंसाशील, दुष्टस्वभाव देहधारियों से (नः) हमारी (पाहि) पालना और रक्षा करो। (धूर्तैरराव्णः) कृपण, जो धूर्त्त उस मनुष्य से भी (पाहि) हमारी रक्षा करो। (रीषतः उत वा जिघांसतः) जो हमको मारने लगे तथा जो मारने की इच्छा करता है, (बृहद्धानो यविष्ठ्य) हे महातेज, बलवत्तम! (पाहि) उन सबसे हमारी रक्षा करो ॥ १२ ॥
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