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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 51/ मन्त्र 8
    ऋषिः - सव्य आङ्गिरसः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    वि जा॑नी॒ह्यार्या॒न्ये च॒ दस्य॑वो ब॒र्हिष्म॑ते रन्धया॒ शास॑दव्र॒तान्। शाकी॑ भव॒ यज॑मानस्य चोदि॒ता विश्वेत्ता ते॑ सध॒मादे॑षु चाकन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । जा॒नी॒हि॒ । आर्या॑न् । ये । च॒ । दस्य॑वः । ब॒र्हिष्म॑ते । र॒न्ध॒य॒ । शास॑त् । अ॒व्र॒तान् । शाकी॑ । भ॒व॒ । यज॑मानस्य । चो॒दि॒ता । विश्वा॑ । इत् । ता । ते॒ । स॒ध॒ऽमादे॑षु । चा॒क॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि जानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्मते रन्धया शासदव्रतान्। शाकी भव यजमानस्य चोदिता विश्वेत्ता ते सधमादेषु चाकन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि। जानीहि। आर्यान्। ये। च। दस्यवः। बर्हिष्मते। रन्धय। शासत्। अव्रतान्। शाकी। भव। यजमानस्य। चोदिता। विश्वा। इत्। ता। ते। सधऽमादेषु। चाकन ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 51; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3

    व्याखान -

    सबको यथायोग्य जाननेवाले हे ईश्वर! आप (आर्यान्) विद्या, धर्मादि उत्कृष्ट स्वभावाचरणयुक्त आर्यों को जानो, (ये च दस्यवः)  और जो नास्तिक, डाकू, चोर, विश्वासघाती, मूर्ख, विषयलम्पट, हिंसादिदोषयुक्त, उत्तम कर्म में विघ्न करनेवाले, स्वार्थी, स्वार्थसाधन में तत्पर, वेदविद्याविरोधी, अनार्य अनाड़ी मनुष्य (बर्हिष्मते)  सर्वोपकारक यज्ञ का विध्वंस करनेवाले हैं – इन सब दुष्टों को आप (रन्धय) [समूलान् विनाशय] मूलसहित नष्ट कर दीजिए और (शासदव्रतान्) ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासादि धर्मानुष्ठानव्रतरहित, वेदमार्गोच्छेदक अनाचारियों का यथायोग्य शासन करो [शीघ्र उनपर दण्ड निपातन करो], जिससे वे भी शिक्षायुक्त होके शिष्ट हों अथवा उनका प्राणान्त हो जाए, किंवा हमारे वश में ही रहें, “शाकी" तथा जीव को परम शक्तियुक्त शक्ति देने और (यजमानस्य चोदिता) यजमान को उत्तम कामों में प्रेरणा करनेवाले हो, आप हमें दुष्ट कामों से निरोधक हो। मैं भी (सधमादेषु)  उत्कृष्ट स्थानों में निवास करता हुआ (विश्वेत्ता ते) तुम्हारी आज्ञानुकूल सब उत्तम कर्मों की (चाकन) कामना करता हूँ, सो आप पूरी करें ॥ १४ ॥

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