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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 89/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अदि॑ति॒र्द्यौरदि॑तिर॒न्तरि॑क्ष॒मदि॑तिर्मा॒ता स पि॒ता स पु॒त्रः। विश्वे॑ दे॒वा अदि॑तिः॒ प़ञ्च॒ जना॒ अदि॑तिर्जा॒तमदि॑ति॒र्जनि॑त्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदि॑तिः । द्यौः । अदि॑तिः । अ॒न्तरि॑क्षम् । अदि॑तिः । मा॒ता । सः । पि॒ता । सः । पु॒त्रः । विश्वे॑ । दे॒वाः । अदि॑तिः । पञ्च॑ । जनाः॑ । अदि॑तिः । जा॒तम् । अदि॑तिः । जनि॑ऽत्वम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। विश्वे देवा अदितिः प़ञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदितिः। द्यौः। अदितिः। अन्तरिक्षम्। अदितिः। माता। सः। पिता। सः। पुत्रः। विश्वे। देवाः। अदितिः। पञ्च। जनाः। अदितिः। जातम्। अदितिः। जनिऽत्वम् ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 89; मन्त्र » 10
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    व्याखान -

    हे त्रैकाल्याबाध्येश्वर ! (अदितिर्द्यौ:) आप सदैव विनाशरहित तथा स्वप्रकाशरूप हो । (अदितिरन्तरिक्षम्) अविकृत (विकार को न प्राप्त) और सबके अधिष्ठाता हो  (अदितिर् माता) आप प्राप्त मोक्ष जीवों को अविनश्वर (विनाश-रहित) सुख देने और अत्यन्त मान करनेवाले हों,"सःपिता" सो अविनाशीस्वरूप हम सब लोगों के पिता (जनक ) और पालक हो और (सः पुत्र:) सो आप मुमुक्षु , धर्मात्मा और विद्वानों को नरकादि दु:खों से हटाकर पवित्र और त्राणा (रक्षा) करनेवाले हो | (विश्वे देवाः अदितिः) सब दिव्यगुण - विश्व का धारण, रचन, मारण , पालन आदि कार्यों को करनवाले अविनाशी परमात्मा आप ही हैं (पंचजना  अदितिः ) पंच प्राण ,  जो जगत् के जिवानहेतु हैं , बे भी आपके रचे और आपके नाम भी हैं (जातमदितिः) एक चेन ब्रम्हा आप सता प्रादुर्भूत हैं , , और सब [पदार्थ ] कभी प्रादुर्भूत कभी अप्रदुर्भूत [विनाशभूत ] भी हो जाते हैं (अदितिर्ज्नित्वम्) वे ही अविनाशीस्वरूप आप सब जगत् के (जनित्वम्) जन्म का हेतु हैं और कोई नही ||१७|| 

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