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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 41
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - स्वराडार्षी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    नमः॑ शम्भ॒वाय॑ च मयोभ॒वाय॑ च॒ नमः॑ शङ्क॒राय॑ च मयस्क॒राय॑ च॒ नमः॑ शि॒वाय॑ च शि॒वत॑राय च॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। श॒म्भ॒वायेति॑ शम्ऽभ॒वाय॑। च॒। म॒यो॒भ॒वायेति॑ मयःऽभ॒वाय॑। च॒। नमः॑। श॒ङ्क॒रायेति॑ शम्ऽक॒राय॑। च॒। म॒य॒स्क॒राय॑। म॒यः॒क॒रायेति॑ मयःऽक॒राय॑। च॒। नमः॑। शि॒वाय॑। च॒। शि॒वत॑रा॒येति॑ शि॒वऽत॑राय। च॒ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। शम्भवायेति शम्ऽभवाय। च। मयोभवायेति मयःऽभवाय। च। नमः। शङ्करायेति शम्ऽकराय। च। मयस्कराय। मयःकरायेति मयःऽकराय। च। नमः। शिवाय। च। शिवतरायेति शिवऽतराय। च॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 41
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    व्याखान -

    हे कल्याणस्वरूप, कल्याणकर ! "शम्भवाय" आप ' शंभव' हो (मोक्षसुखस्वरूप और मोक्षसुख के करनेवाले हो), आपको “नमः " नमस्कार है, आप (मयोभवाय) (मयोभव) हो, सांसारिक सुख के करनेवाले आपको मैं नमस्कार करता हूँ, आप (शङ्कराय) 'शङ्कर' हो, आपसे ही जीवों का कल्याण होता है, अन्य से नहीं तथा (मयस्कराय=`मयस्कर', अर्थात् मन, इन्द्रिय, प्राण और आत्मा को सुख करनेवाले आप ही हो, आप (शिव) [मङ्गलमय] हो तथा (शिवतर) अत्यन्त कल्याण-स्वरूप और कल्याणकारक हो, इससे आपको हम लोग बारम्बार (नमः)  नमस्कार करते हैं [नमो नम इति यज्ञ:- शतपथे] श्रद्धा-भक्ति से जो जन ईश्वर को नमस्कारादि करता है, सो भी मङ्गलमय ही होता है ॥ २६ ॥

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