Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 5

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 31
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराट् आर्षी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    5

    वि॒भूर॑सि प्र॒वाह॑णो॒ वह्नि॑रसि हव्य॒वाह॑नः। श्वा॒त्रोऽसि प्रचे॑तास्तु॒थोऽसि वि॒श्ववे॑दाः॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒भूरिति॒ वि॒ऽभूः। अ॒सि॒। प्रवा॒ह॑णः। प्रवा॒ह॑न॒ इति॑ प्र॒ऽवाह॑नः। वह्निः॑। अ॒सि॒। ह॒व्य॒वाह॑न॒ इति॑ हव्य॒ऽवाह॑नः। श्वा॒त्रः। अ॒सि॒। प्रचे॑ता॒ इति॒ प्रऽचे॑ताः। तु॒थः। अ॒सि॒। वि॒श्ववे॑दा॒ इति॑ वि॒श्वऽवे॑दाः ॥३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभूरसि प्रवाहणो वह्निरसि हव्यवाहनः श्वात्रो सि प्रचेतास्तुथोसि विश्ववेदाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विभूरिति विऽभूः। असि। प्रवाहणः। प्रवाहन इति प्रऽवाहनः। वह्निः। असि। हव्यवाहन इति हव्यऽवाहनः। श्वात्रः। असि। प्रचेता इति प्रऽचेताः। तुथः। असि। विश्ववेदा इति विश्वऽवेदाः॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 31
    Acknowledgment

    व्याखान -

    हे व्यापकेश्वर ! आप (विभूः असि) विभु हो, अर्थात् सर्वत्र प्रकाशित वैभवैश्वर्ययुक्त आप ही हो और कोई नहीं। विभु होके आप सब जगत् के (प्रवाहण:) प्रवाहण [स्वस्व-नियमपूर्वक चलानेवाले] तथा सबके निवार्हकारक भी आप हो। हे स्वप्रकाशक सर्वरसवाहकेश्वर ! आप (वह्निः असि हव्यवाहनः)  वह्नि हैं। सब हव्य उत्कृष्ट रसों के भेदक, आकर्षक तथा यथावत् स्थापक आप ही हो। हे आत्मन्! आप (श्वात्रः असि प्रचेताः)  शीघ्र व्यापनशील हो तथा प्रकृष्ट ज्ञानस्वरूप, प्रकृष्ट ज्ञान के देनेवाले हो । हे सर्ववित् (तुथः असि विश्ववेदः)  आप तुथ और विश्ववेदा हो, (तुथो वै ब्रह्म) [यह शतपथ की श्रुति है] सब जगत् में विद्यमान, प्राप्त और लाभ करानेवाले हो ॥ १६ ॥ 

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top