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यजुर्वेद अध्याय - 14

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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 20
    ऋषिः - विश्वदेव ऋषिः देवता - अग्न्यादयो देवताः छन्दः - भुरिग्ब्राह्मी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अ॒ग्निर्दे॒वता॒ वातो॑ दे॒वता॒ सूर्यो॑ दे॒वता॑ च॒न्द्रमा॑ दे॒वता॒ वस॑वो दे॒वता॑ रु॒द्रा दे॒वता॑ऽऽदि॒त्या दे॒वता॑ म॒रुतो॑ दे॒वता॒ विश्वे॑ दे॒वा दे॒वता॒ बृह॒स्पति॑र्दे॒वतेन्द्रो॑ दे॒वता॒ वरु॑णो दे॒वता॑॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः। दे॒वता॑। वातः॑। दे॒वता॑। सूर्यः॑। दे॒वता॑। च॒न्द्रमाः॑। दे॒वता॑। वस॑वः। दे॒वता॑। रु॒द्राः। दे॒वता॑। आ॒दि॒त्याः। दे॒वता॑। म॒रुतः॑। दे॒वता॑। विश्वे॑। दे॒वाः। दे॒वता॑। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वता॑। इन्द्रः॑। दे॒वता॑। वरु॑णः। दे॒वता॑ ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्देवता वातो देवता सूर्या देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता आदित्या देवता मरुतो देवता विश्वे देवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। देवता। वातः। देवता। सूर्यः। देवता। चन्द्रमाः। देवता। वसवः। देवता। रुद्राः। देवता। आदित्याः। देवता। मरुतः। देवता। विश्वे। देवाः। देवता। बृहस्पतिः। देवता। इन्द्रः। देवता। वरुणः। देवता॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 20
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    व्याख्यान -

    ( अग्निर्देव॰ ) कर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञक्रिया में मुख्य करके देवता शब्द से वेदमन्त्रों का ही ग्रहण करते हैं, क्योंकि जो गायत्र्यादि छन्द हैं, वे ही वेदमन्त्र कहाते हैं। और इन वेदमन्त्रों से ही सब विद्याओं का प्रकाश भी होता है। इसमें यह कारण है कि जिन-जिन मन्त्रों में अग्नि आदि शब्द हैं, उन-उन मन्त्रों का और उन-उन शब्दों के अर्थों का अग्नि आदि देवता नामों से ग्रहण होता है। मन्त्रों का देवता नाम इसीलिये है कि उन्हींसे सब अर्थों का यथावत् प्रकाश होता है।

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