ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 152/ मन्त्र 6
ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ धे॒नवो॑ मामते॒यमव॑न्तीर्ब्रह्म॒प्रियं॑ पीपय॒न्त्सस्मि॒न्नूध॑न्। पि॒त्वो भि॑क्षेत व॒युना॑नि वि॒द्वाना॒साविवा॑स॒न्नदि॑तिमुरुष्येत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । धे॒नवः॑ । मा॒म॒ते॒यम् । अव॑न्तीः । ब्र॒ह्म॒ऽप्रिय॑म् । पी॒प॒य॒न् । सस्मि॑न् । ऊध॑न् । पि॒त्वः । भि॒क्षे॒त॒ । व॒युना॑नि । वि॒द्वान् । आ॒सा । आ॒ऽविवा॑सन् । अदि॑तिम् । उ॒रु॒ष्ये॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ धेनवो मामतेयमवन्तीर्ब्रह्मप्रियं पीपयन्त्सस्मिन्नूधन्। पित्वो भिक्षेत वयुनानि विद्वानासाविवासन्नदितिमुरुष्येत् ॥
स्वर रहित पद पाठआ। धेनवः। मामतेयम्। अवन्तीः। ब्रह्मऽप्रियम्। पीपयन्। सस्मिन्। ऊधन्। पित्वः। भिक्षेत। वयुनानि। विद्वान्। आसा। आऽविवासन्। अदितिम्। उरुष्येत् ॥ १.१५२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 152; मन्त्र » 6
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
यथा धेनवः सस्मिन्नूधन्भवेन दुग्धेन वत्सान् पुष्यन्ति तथा या स्त्रियो ब्रह्मप्रियं मामतेयमवन्तीः सत्य आपीपयन् यथा वा विद्वानासा पित्वो भिक्षेताऽदितिमाविवासन् वयुनान्युरुष्येत्तथाऽध्यापिका स्त्री पाठकाः पुरुषा अन्यान् विद्याशिक्षा ग्राहयेयुः ॥ ६ ॥
पदार्थः
(आ) (धेनवः) (मामतेयम्) ममताया अपत्यम् (अवन्तीः) रक्षन्त्यः (ब्रह्मप्रियम्) ब्रह्म, वेदाध्ययनं प्रियं यस्य तम् (पीपयन्) वर्द्धयेयुः (सस्मिन्) स्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति वलोपः। (ऊधन्) ऊधनि दुग्धाधारे (पित्वः) अन्नस्य (भिक्षेत) याचेत (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) (आसा) आस्येन (आविवासन्) समन्तात् परिचरन् (अदितिम्) अविनाशिकां विद्याम् (उरुष्येत्) सेवेत ॥ ६ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मातरः स्वापत्यानि दुग्धादिदानेन वर्द्धयन्ति तथा विदुष्यः स्त्रियो विद्वांसः पुरुषाः कुमारीः कुमारांश्च विद्यासुशिक्षाभ्यां वर्द्धयेरन् ॥ ६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।
पदार्थ
जैसे (धेनवः) धेनु गौयें (सस्मिन्) अपने (ऊधन्) ऐन में हुए दूध से बछड़ों को पुष्ट करती हैं वैसे जो स्त्री (ब्रह्मप्रियम्) वेदाध्ययन जिसको प्रिय उस (मामतेयम्) ममत्व से माने हुए अपने पुत्र की (अवन्तीः) रक्षा करती हुई (आ, पीपयन्) उसकी वृद्धि उन्नति करती हैं वा जैसे (विद्वान्) विद्यावान् जन (आसा) मुख से (पित्वः) अन्न की (भिक्षेत) याचना करे और (अदितिम्) न नष्ट होनेवाली विद्या का (आविवासन्) सब ओर से सेवन करता हुआ (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (उरुष्येत्) सेवे वैसे पढ़ानेवाले पुरुष औरों को विद्या और सिखावट का ग्रहण करावें ॥ ६ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता जन अपने लड़कों को दूध आदि के देने से बढ़ाती हैं, वैसे विदुषी स्त्री और विद्वान् पुरुष कुमार और कुमारियों को विद्या और अच्छी शिक्षा से बढ़ावें, उन्नतियुक्त करें ॥ ६ ॥
विषय
ब्रह्मकामी
पदार्थ
१. गतमन्त्र में ब्रह्म की उपासना का वर्णन था। यह उपासक अन्ततः ब्रह्मकामी बनता है, ब्रह्म में ही विचरने लगता है। प्रारम्भ में यह 'मामतेय' था। ममता का पुत्र, अर्थात् सांसारिक विषयों में ममतावाला था। इस (मामतेयम्) = मामतेय को, जोकि पीछे (ब्रह्म- प्रियम्) = ब्रह्म की रुचिवाला बन गया (धेनवः) = ज्ञान-दुग्ध देनेवाली वेदवाणीरूप गौएँ (अवन्तीः) = रक्षित करती हुईं (सस्मिन्) = अपने [स्वकीये - सा०] (ऊधन्) = ज्ञानरूप दूध में (आपीपयन्) = समन्तात् आप्यायित करती हैं, अर्थात् इसके जीवन को निर्दोष बनाकर सब प्रकार से बढ़ानेवाली होती हैं। पूर्ण विकास होने पर यह संन्यस्त होता है। २. यह (वयुनानि विद्वान्) = सब प्रज्ञानों को जाननेवाला (ब्रह्माश्रमी) = [ब्रह्म-प्रिय] (पित्वः भिक्षेत्) = शरीर धारण के लिए आवश्यक अन्नों का ही भिक्षण करे, भैक्ष्यचर्यं चरन्तः'=भिक्षा से जीवन बिताये। (आसा) = मुख से (आविवासन्) = प्रभु का पूजन करे, अर्थात् प्रभु के स्तोत्रों व नामों का जप करे और (अदितिम्) = अखण्डन को, अपने स्वास्थ्य को (उरुष्येत्) = रक्षित करे।
भावार्थ
भावार्थ- ब्रह्माश्रमी का कर्त्तव्य है कि - (क) भिक्षा से जीवनयात्रा करे, (ख) सदा प्रभुनाम स्मरण करे, (ग) स्वास्थ्य को ठीक रखे ।
विषय
माताओं और गौओं के समान, आचार्य का शिष्य को पालन करना और शिष्य को पुत्रवत् भिक्षा का उपदेश ।
भावार्थ
( धेनवः ) गौएं जिस प्रकार ( सस्मिन् ऊधन् ) अपने स्तन पर ( मामतेयम् ) ममता, प्रेम से पालन करने योग्य ( ब्रह्म-प्रियम् ) अन्न के प्रिय, दुग्धाभिलाषी बालक की (अवन्तीः) रक्षा करती हुई ( अपीपयन् ) उसको हृष्ट पुष्ट करती हैं। उसी प्रकार ( धेनवः ) धारण पोषण करने वाली परमेश्वर की शक्तियां, सूर्य की किरणें भी ( ऊधन् ) मेघ के आधार पर अन्न प्रिय, ममता वश अपने प्रिय प्राण के पोषक प्रजाजन की रक्षा करती हुई उसे पुष्ट करती हैं और उसी प्रकार (धेनवः) दूध पिलाने वाली माताएं भी ( मामतेयम् अवन्तीः ) अपनी ममता से युक्त ( ब्रह्मप्रियं ) ज्ञान और अन्न के अभिलाषी पुत्र को ( अवन्तीः ) पालती हुई ( सस्मिन् ऊधन् ) अपने ही स्तन के आश्रय पर (पीपयन्) पुष्ट करें । और जिस प्रकार बालक (अदितिम्) माता को प्राप्त होकर (पित्वः भिक्षेत) अन्न की याचना करता है उसी प्रकार (विद्वान्) विद्वान् पुरुष भी (आसा) अपने मुख से भोजनार्थ (पित्वः) अन्न की ( भिक्षेत ) याचना करे और वह ही (अदितिम्) अदिति अर्थात् सूर्य के समान तेजस्वी और माता के समान स्नेहवान् और अन्नदात्री, भूमि के समान ज्ञानदाता आचार्य को प्राप्त कर उसको (आ विवासन्) सब प्रकार से सेवा करता हुआ, उसके अधीन रहता हुआ (आसा) मुख से ( वयुनानि ) उत्तम ज्ञानों की ( भिक्षेत ) गुरु से याचना करे और ( उरुष्येत् ) उसकी सेवा वा रक्षा करे, आज्ञा वा व्रत पाले ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमा ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः– १, २, ४, ५, ६ त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी माता आपल्या मुलांना दूध देऊन वाढविते तसे विदुषी स्त्री व विद्वान पुरुषांनी कुमार व कुमारींना विद्या व चांगले शिक्षण देऊन उन्नत करावे. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Just as cows feed their calves on milk from their udders, just as protective mothers breast-feed their darling child of love and promote him in his favourite studies of Divinity, so should the scholar of the ways and laws of the world ask for food and maintenance and, serving and shining, advance the study and knowledge of nature and eternity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The male and female teachers should impart leteal learning.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Milch cows feed their calves with milk in their udders. The mothers, likewise, protect only their sons and daughters if they are lover of the Vedas. They make such issues strong by giving good food. A learned student begs food for himself. He also renders service to his teacher well and in return acquires eternal knowledge and preserves his wisdom. We all should follow similarly. The learned men and women should educate boys and girls respectively.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As mothers feed their children and make them grow by giving them milk, in the same manner, learned men and women should augment the powers of the boys and girls by giving them good knowledge and education.
Foot Notes
(मामतेयम् ) ममताया अपत्यम् – Dear, lovely son. (अदितिम् ) अविनाशिका विद्याम् = External and protective knowledge.
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