ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 162/ मन्त्र 3
ऋषिः - रक्षोहा ब्राह्मः
देवता - गर्भसंस्त्रावे प्रायश्चित्तम्
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यस्ते॒ हन्ति॑ प॒तय॑न्तं निष॒त्स्नुं यः स॑रीसृ॒पम् । जा॒तं यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ते॒ । हन्ति॑ । प॒तय॑न्तम् । नि॒ऽस॒त्स्नुम् । यः । स॒री॒सृ॒पम् । जा॒तम् । यः । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒तः । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते हन्ति पतयन्तं निषत्स्नुं यः सरीसृपम् । जातं यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठयः । ते । हन्ति । पतयन्तम् । निऽसत्स्नुम् । यः । सरीसृपम् । जातम् । यः । ते । जिघांसति । तम् । इतः । नाशयामसि ॥ १०.१६२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 162; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो (ते) तेरे (पतयन्तम्) गर्भाशय में वीर्यरूप में प्रविष्ट हुए (निषत्स्नुम्) स्थितिशील गर्भ को (हन्ति) नष्ट करता है (यः) जो (सरीसृपम्) गर्भाशय में गति करते हुए गर्भ को (यः) जो (जातम्) उत्पन्न बालक को (जिघांसति) मारना चाहता है, (तम्) उस कृमि को (इतः-नाशयामसि) इससे नष्ट करते हैं ॥३॥
भावार्थ
स्त्री के अन्दर गर्भ के अन्दर प्राप्त वीर्य को या उससे बने गर्भ को या फिर उत्पन्न हुए बालक को जो नष्ट करता है, उस रोगरूप कृमि को पूर्वोक्त प्रकार से नष्ट करना चाहिए ॥३॥
विषय
गर्भाधान से जातकर्म तक
पदार्थ
[१] गर्भाधान काल में (पतयन्तम्) = गर्भ में जाते हुए (ते) = तेरे वीर्यांश को (यः) = जो (हन्ति) = नष्ट करता है। अब (निषत्स्नुम्) = गर्भ में निषण्ण होते हुए जीव को जो नष्ट करता है । (यः) = जो तीन मास के बाद (सरीसृपम्) = सर्पणशील उस गर्भस्थ बालक को नष्ट करता है, (तम्) = उस रोगकृमि को (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम नष्ट करते हैं । [२] (यः) = जो रोग (ते) = तेरे (जातम्) = उत्पन्न हुए हुए बालक को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, उस रोग को भी हम नष्ट करते हैं । प्रथम व द्वितीय मन्त्र के अनुसार गर्भ व योनिगत दोषों को दूर करने के बाद गर्भाधानकालीन दोषों को भी दूर करते हैं और फिर गर्भावस्था में समय-समय पर आ जानेवाले रोगों से बचाते हैं । अन्ततः उत्पन्न हुए हुए बालक का भी रोगों से रक्षण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- गर्भस्थ बालक के जीवन को प्रारम्भ से अन्त तक रोगों से बचाने का प्रयत्न करते हैं।
विषय
गर्भ संस्राव में प्रायश्चित्त सूक्त। गर्भनाशक कारणों के नाश करने के उपायों का उपदेश।
भावार्थ
(यः) हे स्त्रि ! जो रोग (ते पतयन्तं) तेरे गर्भाशय में जाते हुए वीर्यांश को (हन्ति) नाश करता है, वा (नि-सत्स्नुं) गर्भाशय में स्थिर होते हुए गर्भ को (हन्ति) नाश करता है, (यः) जो (सरीसृपं) सरकते, हिलते डोलते गर्भ को नाश करता है, (यः ते जातं जिघांसति) जो रोग तेरे उत्पन्न हुए बालक को नाश करना चाहता है (तम्) उस रोग को हम (इतः) इस स्थान से (नाशयामसि) दूर करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषीरक्षोदा ब्राह्मः॥ देवता—गर्भसंस्रावे प्रायश्चित्तम्॥ छन्द:- १, २, निचृदनुष्टुप्। ३, ५, ६ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः) यः खलु (ते) तव (पतयन्तम्) गर्भाशये वीर्यरूपे प्रविष्टम् (निषत्स्नुम्) स्थितिशीलवन्तम् (हन्ति) नाशयति (यः) यश्च (सरीसृपम्) गर्भाशये गतिं कुर्वन्तम् (यः) यश्च (जातम्) उत्पन्नं बालकं (जिघांसति) हन्तुमिच्छति (तम्) तं कृमिम् (इतः-नाशयामसि) अस्मान्नाशयामः ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Whatever afflicts the insemination and fertilisation process or the moving foetus or whatever hurts and damages your new born baby, we destroy from here.
मराठी (1)
भावार्थ
स्त्रीच्या गर्भाशयात वीर्य प्रविष्ट होऊन त्यापासून बनलेला गर्भ किंवा उत्पन्न झालेल्या बालकाला जो नष्ट करतो. त्या रोगरूपी कृमीला पूर्वोक्त प्रकाराने नष्ट केले पाहिजे. ॥३॥
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