ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 187/ मन्त्र 3
यो रक्षां॑सि नि॒जूर्व॑ति॒ वृषा॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ । स न॑: पर्ष॒दति॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयः । रक्षां॑सि । नि॒ऽजूर्व॑ति । वृषा॑ । शु॒क्रेण॑ । शो॒चिषा॑ । सः । नः॒ । प॒र्ष॒त् । अति॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो रक्षांसि निजूर्वति वृषा शुक्रेण शोचिषा । स न: पर्षदति द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठयः । रक्षांसि । निऽजूर्वति । वृषा । शुक्रेण । शोचिषा । सः । नः । पर्षत् । अति । द्विषः ॥ १०.१८७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 187; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 45; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 45; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो (वृषा) सुखवर्षक परमेश्वर (शुक्रेण) शुभ्र (शोचिषा) तेज से (रक्षांसि) दुष्ट जनों को (निजूर्वति) नष्ट करता है (स नः०) पूर्ववत् ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर सुख को वर्षानेवाला दुष्ट जनों का नाशक है, उसकी स्तुति करनी चाहिए ॥३॥
विषय
दीप्त ज्ञान - ज्योतिवाले प्रभु
पदार्थ
[१] (यः) = जो प्रभु (वृषा) = अत्यन्त शक्तिशाली हैं और (शुक्रेण शोचिषा) = अपनी निर्मल दीप्त ज्ञानज्योति से (रक्षांसि) = सब राक्षसी भावों को (निजूर्वति) = हिंसित करते हैं । (सः) = वे (नः) = हमें (द्विषः) = सब द्वेषभावों से (अतिपर्षत्) = पार ले जायें। [२] प्रभु हमें उस तीव्र ज्ञान - ज्योति को प्राप्त कराते हैं जो कि हमारे सब राक्षसी भावों को दग्ध कर देती है। इस ज्ञान - ज्योति के होने पर द्वेष रह ही कैसे सकता है ?
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु स्मरण से हमें वह ज्ञान - ज्योति प्राप्त हो जो कि हमारे द्वेष आदि को दग्ध कर दे।
विषय
सर्वद्रष्टा प्रभु।
भावार्थ
(यः) जो (वृषा) बलवान् (शुक्रेण शोचिषा) अति शुद्ध कान्ति से उज्ज्वल और दीप्ति से सूर्यवत् (रक्षांसि निजूर्वति) दुष्टों वा रोगों का नाश करता है, (सः नः द्विषः अति पर्षत्) वह हमें भीतरी, बाह्य शत्रुओं से पार करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्वत्स आग्नेयः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १ निचृद् गायत्री। २—५ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः-वृषा) यः सुखवर्षकः परमेश्वरः (शुक्रेण शोचिषा) शुभ्रेण तेजसा (रक्षांसि निजूर्वति) दुष्टान् जनान् नाशयति “जूर्वति वधकर्मा” [निघ० २।१३] (स नः०) पूर्ववत् ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Who, generous and potent as he is, destroys the evil, wicked, demonic force with his blazing purity and power, may, we pray, eliminate our hate, jealousy and enmities, and wash us clean and immaculate.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर सुखाचा वर्षक, दुष्टांचा नाशक आहे. त्याची स्तुती केली पाहिजे. ॥३॥
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