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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 78 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 78/ मन्त्र 7
    ऋषिः - स्यूमरश्मिर्भार्गवः देवता - मरूतः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    उ॒षसां॒ न के॒तवो॑ऽध्वर॒श्रिय॑: शुभं॒यवो॒ नाञ्जिभि॒र्व्य॑श्वितन् । सिन्ध॑वो॒ न य॒यियो॒ भ्राज॑दृष्टयः परा॒वतो॒ न योज॑नानि ममिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षसा॑म् । न । के॒तवः॑ । अ॒ध्व॒र॒ऽश्रियः॑ । शु॒भ॒म्ऽयवः॑ । न । अ॒ञ्जिऽभिः॑ । वि । अ॒श्वि॒त॒न् । सिन्ध॑वः । न । य॒यियः॑ । भ्राज॑त्ऽऋष्टयः । प॒रा॒ऽवतः॑ । न । योज॑नानि । म॒मि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषसां न केतवोऽध्वरश्रिय: शुभंयवो नाञ्जिभिर्व्यश्वितन् । सिन्धवो न ययियो भ्राजदृष्टयः परावतो न योजनानि ममिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषसाम् । न । केतवः । अध्वरऽश्रियः । शुभम्ऽयवः । न । अञ्जिऽभिः । वि । अश्वितन् । सिन्धवः । न । ययियः । भ्राजत्ऽऋष्टयः । पराऽवतः । न । योजनानि । ममिरे ॥ १०.७८.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 78; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (उषसां न केतवः) उषा वेलाओं की किरणें जैसे होती हैं (अध्वरश्रियः) अध्यात्मयज्ञ के आश्रयीभूत अर्थात् अध्यात्मयज्ञप्रचारक (शुभंयवः-न अश्रिभिः) शुभ्र ज्ञानप्रकाश के प्राप्त करानेवाले रश्मियों के समान (अश्वितन्) दीप्त होते हैं (सिन्धवः-न-ययिवः) नदियों की भाँति गति करनेवाले ज्ञानप्रेरक (भ्राजत्-ऋष्टयः) दीप्तज्ञान को स्रवित करनेवाले (परावतः-न योजनानि ममिरे) दूर देश में भी यथायोग्य योजनाओं का निर्माण करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् प्रातर्वेला में किरणों के समान आगे बढ़नेवाले ज्ञान के प्रकाशक, नदियों के समान प्रगतिशील, दूर देशों में भी सफल योजनाओं को सफल बनानेवाले हैं, वे धन्य हैं, उनकी संगति करनी चाहिए ॥७॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (उषसां न केतवः-अध्वरश्रियः) उषोवेलानां यथा किरणा भवन्ति तद्वत् तेऽध्यात्मयज्ञस्याश्रयीभूता जनेषु सदाध्यात्मयज्ञप्रचारकाः (शुभंयवः-न-अञ्जिभिः-अश्वितन्) शुभ्रं प्रकाशस्य प्रापयितारौ रश्मिभिरिव दीप्यन्ते “श्विता वर्णे” [भ्वादि] “लङि रूपम्” (सिन्धवः-न ययियः) नद्य इव गन्तारो ज्ञानप्रेरकाः (भ्राजत्-ऋष्टयः) दीप्तज्ञानं स्रवन्तः (परावतः न योजनानि ममिरे) दूरदेशे अपि यथायोग्यं योजनानि निर्मान्ति ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Like lights of the dawn they illuminate the sky and beautify the yajna on earth, themselves shining with graces and wishing the world all well all round. Moving forward like rivers in flood they shine in arms, and like pioneer travellers over boundless woods and spaces they cover miles and miles of distance in progress and achievement.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान प्रात:काळच्या किरणांप्रमाणे पुढे जाणारे, ज्ञानप्रकाशक, नद्यांप्रमाणे गतिशील, दूर देशातही यथायोग्य योजना सफल करणारे असतात, ते धन्य होत. त्यांची संगती केली पाहिजे. ॥७॥

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