ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
आदिद्ध॒ नेम॑ इन्द्रि॒यं य॑जन्त॒ आदित्प॒क्तिः पु॑रो॒ळाशं॑ रिरिच्यात्। आदित्सोमो॒ वि प॑पृच्या॒दसु॑ष्वी॒नादिज्जु॑जोष वृष॒भं यज॑ध्यै ॥५॥
स्वर सहित पद पाठआत् । इत् । ह॒ । नेमे॑ । इ॒न्द्रि॒यम् । य॒ज॒न्ते॒ । आत् । इत् । प॒क्तिः । पु॒रो॒ळाश॑म् । रि॒रि॒च्या॒त् । आत् । इ॒त् । सोमः॑ । वि । प॒पृ॒च्या॒त् । असु॑स्वीन् । आत् । इत् । जु॒जो॒ष॒ । वृ॒ष॒भम् । यज॑ध्यै ॥
स्वर रहित मन्त्र
आदिद्ध नेम इन्द्रियं यजन्त आदित्पक्तिः पुरोळाशं रिरिच्यात्। आदित्सोमो वि पपृच्यादसुष्वीनादिज्जुजोष वृषभं यजध्यै ॥५॥
स्वर रहित पद पाठआत्। इत्। ह। नेमे। इन्द्रियम्। यजन्ते। आत्। इत्। पक्तिः। पुरोळाशम्। रिरिच्यात्। आत्। इत्। सोमः। वि। पपृच्यात्। असुस्वीन्। आत्। इत्। जुजोष। वृषभम्। यजध्यै ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ युक्ताहारविहारविषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! येषां पुरोळाशं पक्ती रिरिच्यात् ते नेम आदिदिन्द्रियं यजन्ते यस्यादित् सोमोऽसुष्वीन् वि पपृच्यात् स आदिद् यजध्यै वृषभं जुजोष। आदिद्ध ते सर्वे राज्यं बलञ्च प्राप्तुमर्हेयुः ॥५॥
पदार्थः
(आत्) आनन्तर्य्ये (इत्) एव (ह) किल (नेमे) अन्ये (इन्द्रियम्) धनम् (यजन्ते) सङ्गच्छन्ते (आत्) (इत्) (पक्तिः) पाकः (पुरोळाशम्) सुसंस्कृतान्नम् (रिरिच्यात्) अतिरिच्यात् (आत्) (इत्) (सोमः) ऐश्वर्य्यम् (वि) (पपृच्यात्) संयुज्येत (असुष्वीन्) येऽसूनभिसुन्वन्ति तान् (आत्) (इत्) (जुजोष) जुषते (वृषभम्) बलिष्ठम् (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् ॥५॥
भावार्थः
ये जनाः सुसंस्कृतान्यन्नानि पक्त्वा यथारुचि भुञ्जते ते बलम्प्राप्य रोगातिरिक्ता भवितुमर्हेयुरैश्वर्य्यं प्राप्य धर्म्ममाप्तांश्च सेवेरन् ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब योग्य आहार-विहार विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जिनके (पुरोळाशम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न को (पक्तिः) पाक (रिरिच्यात्) बढ़ावें वे (नेमे) अन्य जन (आत्) अनन्तर (इत्) ही (इन्द्रियम्) धन को (यजन्ते) प्राप्त होते हैं और जिसके (आत्) अनन्तर (इत्) ही (सोमः) ऐश्वर्य (असुष्वीन्) जो प्राणों को प्राप्त होते हैं उनको (वि, पपृच्यात्) संयुक्त हो वह (आत्) अनन्तर (इत्) ही (यजध्यै) मिलने के लिये (वृषभम्) बलिष्ठ का (जुजोष) सेवन करता है (आत्) अनन्तर (इत्, ह) ही वे सब राज्य और बल को प्राप्त होने के योग्य होवें ॥५॥
भावार्थ
जो जन उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्नों का पाक करके रुचिपूर्वक भोजन करते हैं, वे बल को प्राप्त होके रोग से रहित होने के योग्य होवें और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होके धर्म्म और यथार्थवक्ता पुरुषों की सेवा करें ॥५॥
विषय
उपासना से सम्पर्क तक
पदार्थ
[१] गतमन्त्र के अनुसार जब वासनाओं के साथ संग्राम प्रारम्भ होता है (आत् इत् इ) = तभी निश्चय से (नेमे) = कई सौभाग्यशाली लोग (इन्द्रियं यजन्ते) = उस शक्ति के पुञ्ज [इन्द्रियं वीर्यं बलम्] प्रभु का उपासन करते हैं। (आत् इत्) = तभी (पक्तिः) = अपना ठीक परिपाक करनेवाला यह साधक (पुरोडाशम्) = [मस्तिष्को वै पुरोडाशः तै० ३।२८।७] मस्तिष्क को (रिरिच्यात्) = सब अशुभ विचारों से रिक्त करके पवित्र करता है। प्रभु की उपासना के समान जीवन को पवित्र करनेवाली अन्य वस्तु नहीं है। [२] (आत् इत्) = अब मस्तिष्क के पवित्र होने पर यह (सोमः) = सौम्य स्वभाव का पुरुष (असुष्वीन्) = यज्ञ आदि न करने की भावनाओं को (विपपृच्यात्) = अपने से पृथक् करता है। (आत् इत्)= इन अयज्ञिय भावनाओं को दूर करने के बाद यह (वृषभं यजध्यै) = उस शक्तिशाली प्रभु का यजन करने के लिए (जुजोष) = प्रीतिवाला होता है। उस प्रभु के साथ सम्पर्क को प्राप्त करता है।
भावार्थ
भावार्थ- कुछ ही लोग शक्तिशाली प्रभु का उपासन करते हैं। वे मस्तिष्क को कुविचारों से शून्य कर पाते हैं। अयज्ञिय भावों को अपने से पृथक् करते हैं और उस शक्तिशाली प्रभु का सम्पर्क प्राप्त करते हैं ।
विषय
राष्ट्र समृद्धि और आत्म समृद्धि का वर्णन ।
भावार्थ
(आत् इत्) अनन्तर (नेमे) कुछ जन (ह) निश्चय से (इन्द्रियं) इन्द्र, आत्मा के ऐश्वर्य को (यजन्ते) प्राप्त करते हैं और (आदित) अनन्तर (पक्तिः) परिपाक जिस प्रकार (पुरोडाशं) उत्तम अन्न को (रिरिच्यात्) अधिक गुण सम्पन्न कर देता है उसी प्रकार (पक्तिः) ज्ञान और तप की परिपक्कता (पुरोडाशं) प्रस्तुत किये आत्मा को (रिरिच्यात्) अधिक शक्तिशाली बना देता है । (आत् इत्) और अनन्तर (सोमः) शरीर के ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला वीर्य या वीर्यवान् पुरुष (असुष्वीन्) प्राणों द्वारा चलने वाले इन्द्रियगण को (वि पपृच्यात्) विषय सम्पर्क से शिथिल करने में समर्थ होता है । (आत् इत्) उसके अनन्तर वह (वृषभं) अन्तःकरण सुखों की वर्षा करने वाले धर्म मेघ रूप प्रभु को (यजध्यै) उपासना करने और प्राप्त करने के लिये (जुजोष) प्रेमपूर्वक चाहने लगता है । (२) राष्ट्रपक्ष में—नियन्ता लोग इन्द्र, राजा के राष्ट्र को सुसंगत सुव्यवस्थित करें। परिपाक उत्तम अन्न को और गुणकारी करे, खेती पके पर काटी जाय । (असुष्वीन्) प्राणी जनों को (सोमः) अन्न, ओषधिरस विशेष रूप से पुष्ट करे और लोग बलवान् ऐश्वर्यदाता, प्रबन्धक को प्राप्त करने में प्रेमभाव दर्शावें । इत्येकादशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप । २, ८ भुरिक् पंक्तिः । ६ स्वराट् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः । १० निचृदनुष्टुप् ॥ इत्येकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे उत्तम संस्कारित केलेले अन्न शिजवून रुचिपूर्वक भोजन करतात त्यांना बल प्राप्त होते व ती रोगरहित होतात. त्यांनी ऐश्वर्य प्राप्त करून धर्म व आप्त पुरुषांची सेवा करावी. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And then the warriors all work for the honour and excellence of the nation through joint action. And then let the fruit of the action and struggle, like delicious pudding seasoned, be consolidated and reserved. And then when the present and future is secured, let the soma of joy be prepared and ripened for the warriors of courage and valour, and then let all join Indra, virile and generous leader, in the celebration.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The utility of being regular in eating and walking etc. is emphasized.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! there are some whose Puro Dasha (nice and cooked nourishing food for oblations and eating) is excellent. They become strong by taking it, are able to earn money well. The person whose wealth is used for the good of living beings, cooperates with a mighty man. All such persons are fit to acquire kingdom and strength.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The persons who eat Puro Dasha food to their liking, get strength and are free from diseases. They should serve absolutely truthful persons and Dharma (righteousness) and thus they obtain wealth and prosperity.
Foot Notes
(नेमे) अन्ये । = Others, some. (इन्द्रियम्) धनम् । इन्द्रियम् इति धननाम (NG 2, 10 ) = Wealth. (सोम:) ऐश्वर्य्यम्। = Prosperity. (असुष्वीन) येसुनभिसुन्वन्ति । = Living beings.
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