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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 71/ मन्त्र 3
    ऋषिः - बाहुवृक्त आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उप॑ नः सु॒तमा ग॑तं॒ वरु॑ण॒ मित्र॑ दा॒शुषः॑। अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । नः॒ । सु॒तम् । आ । ग॒त॒म् । वरु॑ण । मित्र॑ । दा॒शुषः॑ । अ॒स्य । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप नः सुतमा गतं वरुण मित्र दाशुषः। अस्य सोमस्य पीतये ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। नः। सुतम्। आ। गतम्। वरुण। मित्र। दाशुषः। अस्य। सोमस्य। पीतये ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 71; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे मित्र वा वरुण ! युवामस्य दाशुषः सोमस्य पीतये नः सुतमुपागतम् ॥३॥

    पदार्थः

    (उप) समीपे (नः) अस्माकम् (सुतम्) निष्पन्नम् (आ) (गतम्) आगच्छतम् (वरुण) श्रेष्ठ (मित्र) मित्र (दाशुषः) दातुः (अस्य) (सोमस्य) महौषधिरसस्य (पीतये) पानाय ॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्या धार्मिकान् विदुष आहूय सदा सत्कुर्वन्त्विति ॥३॥ अत्र मित्रावरुणविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकसप्ततितमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मित्र) मित्र (वरुण) श्रेष्ठ ! आप दोनों (अस्य) इस (दाशुषः) देनेवाले के (सोमस्य) बड़ी औषधियों के रस को (पीतये) पीने के लिये (नः) हम लोगों के (सुतम्) उत्पन्न किये हुए पदार्थ के (उप) समीप में (आ, गतम्) आइये ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य धार्मिक विद्वानों को बुलाकर सदा उनका सत्कार करें ॥३॥ इस सूक्त में मित्र श्रेष्ठ और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकहत्तरवाँ सूक्त और नववाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    ज्ञानी और सर्वप्रिय जनों का ज्ञान और लोकोपयोगी कर्मों के बढ़ाने का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( वरुण मित्र ) श्रेष्ठ और स्नेहवान् जनो ! स्त्री पुरुषो! आप लोग ( दाशुषः ) दानशील, सुखप्रद ऐश्वर्य के देने वाले ( अस्य सोमस्य पीतये ) इस ऐश्वर्यमय राष्ट्र के पालन और उपभोग के लिये (नः) हमारे ( सुतम् ) बनाये इस यज्ञ, वा राष्ट्र वा अभिषिक्त नृपति आदि को ( उप आ गतम् ) प्राप्त होवो । इति नवमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बाहुवृक्त आत्रेय ऋषिः ।। मित्रावरुणौ देवते । गायत्री छन्दः ॥ तृचं सुक्तम् ॥

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    विषय

    मित्र वरुण का सोमपान -

    पदार्थ

    [१] हे (वरुण मित्र) = निर्देषता व स्नेह के भावो! आप (नः) = हमारे (सुतम्) = उत्पन्न हुए हुए इस सोम को (उप आगतम्) = समीपता से प्राप्त होवो। जिसमें सोम [वीर्य] का उत्पादन हुआ है, वह जीवनयज्ञ 'सुत' है। [२] आप (दाशुष:) = दानशील पुरुष के (अस्य) = इस (सोमस्य) = सोम के (पीतये) = पान के लिये होवो । वस्तुतः वैर-द्वेष आदि के भाव सोमरक्षण की अनुकूलतावाले नहीं । निर्दोष पुरुष ही सोम का रक्षण कर पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्नेह व निर्दोषता का धारण करता हुआ मैं सोम का रक्षण कर सकूँ । बाहुवृक्त ही कहते हैं -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी धार्मिक विद्वानांना आमंत्रित करून सदैव त्यांचा सत्कार करावा. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Mitra and Varuna, leading lights of love, friendship and felicity, justice and rectitude, our yajna is accomplished, the soma is distilled. Come, drink of the soma of this worshipful celebrant yajaka, share and bless our yajnic achievement of success and progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the enlightened persons are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O noble person and friend ! please come to (have. Ed.) the juice of the great invigorating plants and herbs which we have prepared. Come to drink this Soma of the liberal donor who is a great devotee of God.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the men to invite righteous and highly learned persons and honour them.

    Foot Notes

    (दाशुष:) दातुः । दाशू दाने (भ्वा०) = Of the donor. (सोमस्य ) महौषधिरस्य । रसः सोमः ( Stph 14, 1, 3, 12) = Of the juice of the great plants and herbs like Soma.

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