ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 82/ मन्त्र 3
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - सविता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
स हि रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता भगः॑। तं भा॒गं चि॒त्रमी॑महे ॥३॥
स्वर सहित पद पाठसः । हि । रत्ना॑नि । दा॒शुषे॑ । सु॒वाति॑ । स॒वि॒ता । भगः॑ । तम् । भा॒गम् । चि॒त्रम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स हि रत्नानि दाशुषे सुवाति सविता भगः। तं भागं चित्रमीमहे ॥३॥
स्वर रहित पद पाठसः। हि। रत्नानि। दाशुषे। सुवाति। सविता। भगः। तम्। भागम्। चित्रम्। ईमहे ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 82; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
यः सविता भगो दाशुषे रत्नानि सुवाति तं भागं चित्रमीमहे स हि दातोदारोऽस्ति ॥३॥
पदार्थः
(सः) (हि) (रत्नानि) धनानि (दाशुषे) दात्रे (सुवाति) जनयति (सविता) प्रसवकर्त्ता (भगः) ऐश्वर्य्यवान् (तम्) (भागम्) भगानामिमम् (चित्रम्) अद्भुतम् (ईमहे) प्राप्नुयाम जानीम वा ॥३॥
भावार्थः
ये मनुष्याः सर्वरत्नप्रदं परमात्मानं सेवन्ते तेऽद्भुतमैश्वर्य्यमाप्नुवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (सविता) उत्पन्न करनेवाला (भगः) ऐश्वर्य्यवान् परमात्मा (दाशुषे) दाताजन के लिये (रत्नानि) धनों को (सुवाति) उत्पन्न करता है (तम्) उस (भागम्) ऐश्वर्य्यसम्बन्धी (चित्रम्) अद्भुत को (ईमहे) प्राप्त होवें वा जानें और (सः, हि) वही उदार दाता है ॥३॥
भावार्थ
जो मनुष्य सम्पूर्ण रत्नों के देनेवाले परमात्मा की सेवा करते हैं, वे अद्भुत ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥
विषय
उससे ऐश्वर्यं की याचना ।
भावार्थ
भा० - जो ( सविता ) सर्वोत्पादक ( भगः सन् ) सर्वैश्वर्यवान् प्रभु है वह ( दाशुषे ) दानशील दाता पुरुष के हितार्थ ( रत्नानि ) नाना रमण करने योग्य ऐश्वर्यो को ( सुवाति ) प्रदान करता है ( तं ) उस (भागं) सेवा करने योग्य, भजनीय एवं भग अर्थात् ऐश्वर्यो के स्वामी ( चित्रम् ) अद्भुत आश्चर्यकारी को लक्ष्य करके हम ( ईमहे ) याचना करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः । सविता देवता ॥ छन्दः – १ निचृदनुष्टुप् । २, ४, ९ निचृद् गायत्री । ३, ५, ६, ७ गायत्री । ८ विराड् गायत्री ।। नवर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'चित्र' धन
पदार्थ
[१] (सः) = वह (सविता) = उत्पादक व प्रेरक (भगः) = उपासनीय प्रभु (हि) = निश्चय से (दाशुषे) = दानशील पुरुष के लिये (रत्नानि सुवाति) = रमणीय धनों को देता है। हम दानशील बनें, प्रभु देंगे ही 'spend and God will send', [२] (तम्) = उस (भागम्) = भजनीय-उपास्य प्रभु से (चित्रम्) = चायनीय अथवा 'चित्' ज्ञान के वर्धक धन को हम ईमहे याचना करते हैं। चित्र धन वह है जब कि हम धन के दास नहीं बन जाते, धन के वाहक बनकर हम 'लक्ष्मी वाहन' उल्लू ही तो बनते हैं। प्रभु से प्राप्त धन हमें उल्लू नहीं बनाता। हम धन पर आरूढ़ रहकर सदा ज्ञानयुक्त बने रहते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम दानशील बनें, प्रभु हमें धन देंगे ही। प्रभु से दिया जानेवाला यह धन हमारे ज्ञान का वर्धक होता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे सर्व रत्ने देणाऱ्या परमेश्वराची सेवा करतात त्यांना अद्भुत ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Only Savita, lord of power, honour and excellence, creates and augments the jewel wealths of life for the man of yajnic generosity. We pray we may know and receive his favour and grace for a share of that wonderful glory.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The supremacy of God is described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
He is the Creator of the world, who is the Lord of all wealth and grants riches to the liberal donor. Let us attain or know the wonderful portion of the (Divine. Ed.) wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons who worship God who is the Giver of all precious and charming riches, attain wonderful wealth.
Foot Notes
(सविता ) प्रसवकर्त्ता । सबिता वै प्रसविता (कोषीतकी ब्राह्मणे ६, १४) सविता वै देवानां प्रसविता (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे २, ३७१ शतपथे १, १, २, १७) = Creator. (दाशुषे ) दात्रे = For the liberal donor. ( ईमहे ) प्राप्नुयाम | जानीयाम् वा । ई-गतौ ( दिवा० ) | = Attain or know.
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