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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 10/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नू न॑श्चि॒त्रं पु॑रु॒वाजा॑भिरू॒ती अग्ने॑ र॒यिं म॒घव॑द्भ्यश्च धेहि। ये राध॑सा॒ श्रव॑सा॒ चात्य॒न्यान्त्सु॒वीर्ये॑भिश्चा॒भि सन्ति॒ जना॑न् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु । नः॒ । चि॒त्रम् । पु॒रु॒ऽवाजा॑भिः । ऊ॒ती । अग्ने॑ । र॒यिम् । म॒घव॑त्ऽभ्यः । च॒ । धे॒हि॒ । ये । राध॑सा । श्रव॑सा । च॒ । अति॑ । अ॒न्यान् । सु॒ऽवीर्ये॑भिः । च॒ । अ॒भि । सन्ति॑ । जना॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नू नश्चित्रं पुरुवाजाभिरूती अग्ने रयिं मघवद्भ्यश्च धेहि। ये राधसा श्रवसा चात्यन्यान्त्सुवीर्येभिश्चाभि सन्ति जनान् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नु। नः। चित्रम्। पुरुऽवाजाभिः। ऊती। अग्ने। रयिम्। मघवत्ऽभ्यः। च। धेहि। ये। राधसा। श्रवसा। च। अति। अन्यान्। सुऽवीर्येभिः। च। अभि। सन्ति। जनान् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 10; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! त्वं पुरुवाजाभिरूती नो मघवद्भ्यश्च चित्रं रयिं नू धेहि ये सुवीर्य्येभिः राधसा श्रवसा चान्याञ्जनान्दधमाना अभि सन्ति तेऽति प्रतिष्ठां च लभन्ते ॥५॥

    पदार्थः

    (नू) सद्यः (नः) अस्मभ्यम् (चित्रम्) अद्भुतम् (पुरुवाजाभिः) बहुज्ञानपुरुषार्थयुक्ताभिः (ऊती) रक्षादिक्रियाभिः (अग्ने) आप्तविद्वन् (रयिम्) धनम् (मघवद्भ्यः) धनाढ्येभ्यः (च) (धेहि) (ये) (राधसा) धनेन (श्रवसा) अन्नादिना (च) (अति) (अन्यान्) (सुवीर्य्येभिः) सुष्ठु वीर्य्यं बलं पराक्रमो वा येषान्तैः (च) (अभि) आभिमुख्ये (सन्ति) (जनान्) मनुष्यान् ॥५॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! ये युष्मभ्यं विद्यां श्रियं च दधति तेषां यूयमतिप्रतिष्ठां कुरुत ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) यथार्थवक्ता विद्वन् ! आप (पुरुवाजाभिः) बहुत ज्ञान और पुरुषार्थ से युक्त (ऊती) रक्षा आदि क्रियाओं से (नः) हम लोगों और (मघवद्भ्यः) धन से युक्त जनों के लिये (च) भी (चित्रम्) अद्भुत (रयिम्) धन को (नू) शीघ्र (धेहि) धारण कीजिये (ये) जो (सुवीर्य्येभिः) श्रेष्ठ बल वा पराक्रम जिनके उन और (राधसा) धन और (श्रवसा) अन्न आदि से (च) भी (अन्यान्) अन्य (जनान्) मनुष्यों को धारण करते हुए (अभि) सन्मुख (सन्ति) हैं, वे (अति) अत्यन्त प्रतिष्ठा को (च) भी प्राप्त होते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो आप लोगों के लिये विद्या और लक्ष्मी को धारण करते हैं, उनकी आप लोग अत्यन्त प्रतिष्ठा करो ॥५॥

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    विषय

    राजा के अन्यान्य कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( ये ) जो लोग (राधसा) धनैश्वर्य, ईश्वराराधन और कार्य साधन से और ( श्रवसा ) यश और ज्ञान से और ( सु-वीर्येभिः च ) उत्तम वीर्यवान् पुरुषों, बलयुक्त कार्यों और सामर्थ्य से भी ( जनान् ) साधारण जनों से (अभि सन्ति) बढ़ जाते हैं, हे ( अग्ने ) अग्रणी नायक ! एवं हे तेजस्विन् ! तु उन ( मघवद्भ्यः ) दान करने योग्य ज्ञान और ऐश्वर्यों के स्वामियों से ( च ) भी ( चित्रं रयिम् ) आश्चर्यजनक ऐश्वर्य ( पुरु-वाजाभिः उती ) बहुत अन्न और बलवाली भूमियों, सेना और रक्षाकारी उपायों से ( नः ) हमें ( धेहि ) प्रदान कर और हमें पालन पोषण कर । अर्थात् राजा को चाहिये कि धनवानों के धनों से भूमियों और सेनाओं को पुष्ट करे और उन द्वारा सामान्य प्रजाओं का पालन और पोषण करने की व्यवस्था करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः १ त्रिष्टुप् । ४ आर्षी पंक्ति: । २, ३, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् । ७ प्राजापत्या बृहती ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    राधस्-श्रवस् व सुवीर्य

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (नु) = अब (नः) = हम (मघवद्भूयः) = [मघ-मख] यज्ञशील पुरुषों के लिये (पुरुवाजाभिः) = पालक व पूरक अन्नोंवाले (ऊती) = [ऊतिभिः] रक्षणों से (चित्रं रयिम्) = अद्भुत धन को अथवा [चित्र] ज्ञान को देनेवाले धन को (धेहि) = धारण करिये। हमें आप पालक व पूरक अन्न प्राप्त कराइये तथा उस धन को प्राप्त कराइये जो हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाला हो। [२] (च) = और हमारे लिये आप उन सन्तानों को प्राप्त कराइये (ये) = जो (राधसा) = कार्यसाधक धनों से (च) = तथा (श्रवसा) = यश व ज्ञान से (च) = और (सुवीर्येभिः) = उत्तम शक्तियों से (अन्यान् जनान्) = अन्य जनों को (अभिसन्ति) = अभिभूत करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ– यज्ञशील पुरुषों को प्रभु कृपा करके [क] पालक व पूरक अन्नों के द्वारा रक्षित करते हैं, [ख] ज्ञानवर्धक धन को प्राप्त कराते हैं, [ग] ऐश्वर्य व यशवाला बनाते हैं, [घ] तथा उत्तम शक्ति-सम्पन्न सन्तानों को प्राप्त कराते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जे तुमच्यासाठी विद्या व लक्ष्मी धारण करतात त्यांचा तुम्ही सन्मान करा. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, leading light of life, for all time with wonderful vigour, power and forces of action in perfect safety and protection, bear and bring abundant wealth and excellence for us and for those leaders of magnificence who stand out before other people by means and materials, honour and fame, courage and fortitude.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O absolutely truthful person ! shining like fire with your protections endowed with much knowledge and exertion, confer wonderful wealth upon us and wealthy persons. Those persons get much respect who stand pre-eminent, surpassing others in offering liberal gifts, in (order to promote Ed.) fame and heroic virtues.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! respect them much who give you knowledge and wealth.

    Foot Notes

    (पुरुवाजाभिः) बहुज्ञानपुरुषार्थयुक्ताभिः । वाज:-वज गतौ । गतोस्त्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थग्रहणम् । वाज इति बलनाम (NG 2, 9) तेन पुरुषार्थ परकोर्थः सो बलमूलक एवं सम्भवति । = Endowed with much knowledge. and industriousness. (श्रवसा) अन्नादिना । श्रव इत्यननाम (NG 2, 7)। = With food and other things.

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