ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
नाना॒ ह्य१॒॑ग्नेऽव॑से॒ स्पर्ध॑न्ते॒ रायो॑ अ॒र्यः। तूर्व॑न्तो॒ दस्यु॑मा॒यवो॑ व्र॒तैः सीक्ष॑न्तो अव्र॒तम् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठनाना॑ । हि । अ॒ग्ने॒ । अव॑से । स्पर्ध॑न्ते । रायः । अ॒र्यः । तूर्व॑न्तः । दस्यु॑म् । आ॒यवः॑ । व्र॒तैः । सीक्ष॑न्तः । अ॒व्र॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नाना ह्य१ग्नेऽवसे स्पर्धन्ते रायो अर्यः। तूर्वन्तो दस्युमायवो व्रतैः सीक्षन्तो अव्रतम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठनाना। हि। अग्ने। अवसे। स्पर्धन्ते। रायः। अर्यः। तूर्वन्तः। दस्युम्। आयवः। व्रतैः। सीक्षन्तः। अव्रतम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! ये हि नानाऽव्रतं दस्युं तूर्वन्तो व्रतैः सीक्षन्त आयवोऽवसे स्पर्धन्ते तान् रायोऽर्य्यः स्वामी सत्कुर्य्यात् ॥३॥
पदार्थः
(नाना) अनेके (हि) खलु (अग्ने) विद्वन् (अवसे) रक्षणाद्याय (स्पर्धन्ते) परोत्कर्षं न सहन्ते (रायः) धनस्य (अर्य्यः) स्वामी (तूर्वन्तः) हिंसन्तः (दस्युम्) दुष्टम् (आयवः) मनुष्याः (व्रतैः) कर्मभिः (सीक्षन्तः) सोढुमिच्छन्तः (अव्रतम्) धर्म्यकर्म्मरहितम् ॥३॥
भावार्थः
ये दुष्टानां निवारणे प्रयतन्ते ते मनुष्याः श्रीपतयो भवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् ! जो (हि) निश्चय (नाना) अनेक (अव्रतम्) धर्म्मयुक्त कर्म्म से रहित (दस्युम्) दुष्ट जन की (तूर्वन्तः) हिंसा करते और (व्रतैः) कर्म्मों से (सीक्षन्तः) सहने की इच्छा करते हुए (आयवः) मनुष्य (अवसे) रक्षण आदि के लिये (स्पर्धन्ते) दूसरे की बड़ाई को नहीं सहते हैं, उनके (रायः) धन का (अर्य्यः) स्वामी सत्कार करे ॥३॥
भावार्थ
जो दुष्टों के निवारण में प्रयत्न करते हैं, वे मनुष्य धनवान् होते हैं ॥३॥
विषय
धन, सम्पदा के लिये स्पर्धा करने वाले क्षत्रिय और वैश्य दोनों का स्वामी विद्वान् ब्राह्मण है ।
भावार्थ
है ( अग्ने ) विद्वन् ! हे तेजस्विन् ! ( नाना ) बहुत से (आयवः ) लोग (व्रतैः ) अपने उत्तम कर्मों से ( अव्रतम् ) कर्महीन, व्रतादि रहित ( दस्युम् ) प्रजानाशक पुरुष को (सीक्षन्तः) पराजित करते और ( तूर्वन्तः ) उसका नाश करते हुए ( अर्यः रायः अवसे ) शत्रु के धन की प्राप्ति, और स्वामी के धन की रक्षा करने के लिये ( स्पर्धन्ते ) स्पर्धा करते हैं । अथवा ( रायः अवसे स्पर्धन्ते त्वं तेषामर्यः ) जो धन के प्राप्ति करने के लिये स्पर्धा करते हैं तू उनका स्वामी हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ।। छन्दः – १, ३ भुरिगुष्णिक् । २ निचृत्त्रिष्टुप् । ४ अनुष्टुप् । ५ विराडनुष्टुप् । ६ भुरिगतिजगती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
दस्यु पराभव
पदार्थ
[१] [अरि= Lord, master] गत मन्त्र के अनुसार जब हम प्रभु-स्तवन करते हैं तो (अग्ने) = हे परमात्मन् ! (अर्यः) = स्वामी जो आप हैं, उनके (रायः) = ये धन (अवसे) = उपासक के रक्षण के लिये (नाना स्पर्धन्ते) = नाना प्रकार से स्पर्धावाले होते हैं। एक-दूसरे से आगे बढ़कर ये ऐश्वर्य उस उपासक का रक्षण करते हैं। [२] (आयवः) = ये उपासना में चलनेवाले मनुष्य (दस्युम्) = दास्यव वृत्तियों को, विनाशक वृत्तियों को (तूर्वन्तः) = हिंसित करते हैं और (व्रतैः) = नियमित पुण्य कर्मों के द्वारा (अव्रतम्) = व्रतशून्यता के भाव को (सीक्षन्तः) = पराभूत करने की कामनावाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम व्रती बनें, दास्यव भावों को दूर करें। प्रभु के ऐश्वर्य हमारा रक्षण करेंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे दुष्टांचे निवारण करण्याचा प्रयत्न करतात ती धनवान होतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Successful people in the socio-economic field vie with each other in various ways for protection and progress, overcoming anti-social elements for the purpose of challenging and defeating the unprincipled by their ways of discipline.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What the men should do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned leader! the master of wealth should respect those several persons who punish the wicked man who is devoid of righteous acts, and by their noble deeds desire to overcome him and compete with one another for protection, while doing so.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men become prosperous who always try to remove the wicked persons.
Foot Notes
(तूर्वन्तः) हिंसन्तः । तुर्की-हिंसायाम् (भ्वा० ) | = Punishing, slaying. (सीक्षन्त:) सोढूमिच्छन्तः । षह-शक्तौ सागर्थ्यं (ताशकृत्स्न धातु-पाठे 3, 17)। = Desiring to put up with or subdue (अर्य्यः) स्वामी । अर्य इतीश्वरनाम । (NG 2, 22 ) (अर्य: स्वामिवैश्ययोः इति पाणिनीये Ed.) = Master.
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