ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 5/ मन्त्र 7
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒श्याम॒ तं काम॑मग्ने॒ तवो॒ती अ॒श्याम॑ र॒यिं र॑यिवः सु॒वीर॑म्। अ॒श्याम॒ वाज॑म॒भि वा॒जय॑न्तो॒ऽश्याम॑ द्यु॒म्नम॑जरा॒जरं॑ ते ॥७॥
स्वर सहित पद पाठअ॒श्याम॑ । तम् । काम॑म् । अ॒ग्ने॒ । तव॑ । ऊ॒ती । अ॒श्याम॑ । र॒यिम् । र॒यि॒ऽवः॒ । सु॒ऽवीर॑म् । अ॒श्याम॑ । वाज॑म् । अ॒भि । वा॒जय॑न्त्:। अ॒श्याम॑ । द्यु॒म्नम् । अ॒ज॒र॒ । अ॒जर॑म् । ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्याम तं काममग्ने तवोती अश्याम रयिं रयिवः सुवीरम्। अश्याम वाजमभि वाजयन्तोऽश्याम द्युम्नमजराजरं ते ॥७॥
स्वर रहित पद पाठअश्याम। तम्। कामम्। अग्ने। तव। ऊती। अश्याम। रयिम्। रयिऽवः। सुऽवीरम्। अश्याम। वाजम्। अभि। वाजयन्तः। अश्याम। द्युम्नम्। अजर। अजरम्। ते ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 5; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 7
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैः कस्य सङ्गेन किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे अजर रयिवोऽग्ने ! तवोती वयं तं काममश्याम सुवीरं रयिमश्याम वाजयन्तो वयं वाजमभ्यश्याम तेऽजरं द्युम्नमश्याम ॥७॥
पदार्थः
(अश्याम) प्राप्नुयाम (तम्) (कामम्) इच्छाम् (अग्ने) विद्वन् राजन् (तव) (ऊती) रक्षणाद्येन कर्मणा (अश्याम्) प्राप्नुयाम (रयिम्) श्रियम् (रयिवः) बहुधनयुक्त (सुवीरम्) उत्तमवीरप्रापकम् (अश्याम) (वाजम्) अन्नादिकम् (अभि) आभिमुख्ये (वाजयन्तः) विज्ञापयन्तः (अश्याम) (द्युम्नम्) यशो धनं वा (अजर) (अजरम्) जरारहितम् (ते) तव ॥७॥
भावार्थः
मनुष्यैरिदमेषितव्यं वयमाप्तस्योपदेशेनेच्छासिद्धिं पुष्कलं धनं वीरपुरुषानविनाशियशश्चाप्नुयामेति ॥७॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
मनुष्यों को किसके सङ्ग से क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अजर) वृद्धावस्थारहित (रयिवः) बहुत धन और (अग्ने) विद्या से युक्त राजन् ! (तव) आपके (ऊती) रक्षण आदि कर्म्म से हम लोग (तम्) उस (कामम्) मनोरथ को (अश्याम) प्राप्त होवें और (सुवीरम्) उत्तम वीरों की प्राप्ति करनेवाले (रयिम्) धन को (अश्याम) प्राप्त होवें तथा (वाजयन्तः) जानते हुए हम लोग (वाजम्) अन्न आदि को (अभि) सन्मुख (अश्याम) प्राप्त होवें और (ते) आपके (अजरम्) जीर्ण होने से रहित (द्युम्नम्) यश वा धन को (अश्याम) प्राप्त होवें ॥७॥
भावार्थ
मनुष्यों को ऐसी इच्छा करनी चाहिये कि हम लोग यथार्थ वक्ता जन के उपदेश से इच्छा की सिद्धि, बहुत धन, वीर पुरुषों और नहीं नष्ट होनेवाले यश को प्राप्त होवें ॥७॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पाँचवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी अशी इच्छा बाळगावी की, आम्हाला विद्वानाच्या उपदेशाने इच्छेची पूर्ती, पुष्कळ धन, वीर पुरुष व अक्षय यश प्राप्त व्हावे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, leading light of the world, ruler and pioneer of humanity, by virtue of your protection and spirit of advancement, let us realise that will and desire we pray for. O lord creator and giver of wealth, let us achieve that wealth and honour blest with the brave we cherish. O lord imperishable, let us win, while we press forward, that energy, sustenance and progress, let us be blest with that honour and excellence which is immortal.
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