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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
उद॑स्य बा॒हू शि॑थि॒रा बृ॒हन्ता॑ हिर॒ण्यया॑ दि॒वो अन्ताँ॑ अनष्टाम्। नू॒नं सो अ॑स्य महि॒मा प॑निष्ट॒ सूर॑श्चिदस्मा॒ अनु॑ दादप॒स्याम् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठउत् । अ॒स्य॒ । बा॒हू इति॑ । शि॒थि॒रा । बृ॒हन्ता॑ । हि॒र॒ण्यया॑ । दि॒वः । अन्ता॑न् । अ॒न॒ष्टा॒म् । नू॒नम् । सः । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । प॒नि॒ष्ट॒ । सूरः॑ । चि॒त् । अ॒स्मै॒ । अनु॑ । दा॒त् । अ॒प॒स्याम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदस्य बाहू शिथिरा बृहन्ता हिरण्यया दिवो अन्ताँ अनष्टाम्। नूनं सो अस्य महिमा पनिष्ट सूरश्चिदस्मा अनु दादपस्याम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठउत्। अस्य। बाहू इति। शिथिरा। बृहन्ता। हिरण्यया। दिवः। अन्तान्। अनष्टाम्। नूनम्। सः। अस्य। महिमा। पनिष्ट। सूरः। चित्। अस्मै। अनु। दात्। अपस्याम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजादिजनः कीदृशः स्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्याः ! यः सूरश्चिदिवास्मा अपस्यामनु दात् यस्यास्य स महिमाऽस्माभिर्नूनं पनिष्ट यस्यास्य दिवोऽन्तान् हिरण्यया बृहन्ता शिथिरा बाहू उदनष्टां स एवाऽस्माभिः प्रशंसनीयोऽस्ति ॥२॥
पदार्थः
(उत्) (अस्य) पूर्णविद्यस्य (बाहू) भुजौ (शिथिरा) शिथिलौ दृढौ (बृहन्ता) महान्तौ (हिरण्यया) हिरण्यया भूषणयुक्तौ (दिवः) प्रकाशस्य (अन्तान्) समीपस्थान् (अनष्टाम्) प्रसिद्धाम् (नूनम्) निश्चयः (सः) (अस्य) (महिमा) महती प्रशंसा (पनिष्ट) पन्यते स्तूयते (सूरः) सूर्यः (चित्) इव (अस्मै) (अनु) (दात्) (अपस्याम्) आत्मनः कर्मेच्छाम् ॥२॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्याः ! यस्य सूर्यवन्महिमा प्रतापः सर्वबलयुक्तौ बाहू वर्तेते स एवास्य राष्ट्रस्य मध्ये महीयते ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजादि जन कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (सूरः) सूर्य के (चित्) समान (अस्मै) इस विद्वान् के लिये (अपस्याम्) अपने को कर्म की इच्छा (अनु, दात्) अनुकूल दे जिस (अस्य) इसकी (सः) वह (महिमा) अत्यन्त प्रशंसा हम लोगों से (नूनम्) निश्चय (पनिष्ट) स्तुति की जाती है जिस (अस्य) इस (दिवः) प्रकाश के (अन्तान्) समीपस्थ पदार्थ वा (हिरण्यया) हिरण्य आदि आभूषणयुक्त (बृहन्ता) महान् (शिथिरा) शिथिल दृढ़ (बाहू) भुजा (उत्, अनष्टाम्) उत्तमता से प्रसिद्ध होती, वही हम लोगों से प्रशंसा करने योग्य है ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिसका सूर्य के समान महिमा, प्रताप, सर्व बलयुक्त बाहू वर्तमान हैं, वही इस राज्य के बीच पूजित होता है ॥२॥
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
( अस्य ) इसकी ( शिथिरा ) शिथिल, दृढ़ ( बृहन्ता ) बड़ी २ ( हिरण्यया) सुवर्ण से मण्डित (बाहू ) बाहुएं ( दिवः अन्तान् ) समस्त कामना और विजय योग्य व्यवहारों के पार तक ( उत् अनष्टाम्) उत्तम रीति से पहुंचती हैं। ( नूनं ) निश्चय से (अस्य) इसका ( सः महिमा ) वह महान् सामर्थ्य ( पनिष्ट ) स्तुति योग्य होता है कि ( सूरः चित्) विद्वान् पुरुष भी ( अस्मै ) इसकी ( अपस्याम् ) कर्माभिलाषा में (अनु दात्) सहयोग देता है । ( २ ) परमेश्वर—सर्वोत्पादक सविता की बाहुओं के समान निग्रहानुग्रह की शक्तियां समस्त आकाश के दूर २ तक फैली हैं। उसकी महिमा गाई जाती है, सूर्य भी उसी की कर्मशक्ति के पीछे २ चलता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ सविता देवता॥ छन्दः – १ विराट् त्रिष्टुप् । २ त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत्त्रिष्टुप्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
विषय
कर्म का महत्त्व
पदार्थ
पदार्थ - (अस्य) = इसकी (शिथिरा) = शिथिल (बृहन्ता) = बड़ी-बड़ी (हिरण्यया) = सुवर्ण-मण्डित (बाहू) = बाहुएँ (दिवः अन्तान्) = विजय-योग्य व्यवहारों के पार तक (उत् अनष्टाम्) = उत्तम रीति से पहुँचती हैं। (नूनं) = निश्चय से (अस्य) = इसका (सः महिमा) = वह सामर्थ्य (पनिष्ट) = स्तुति- योग्य है कि (सूरः चित्) = विद्वान् पुरुष (अस्मै) = इसकी (अपस्याम्) = कर्माभिलाषा में (अनु दात्) = सहयोग देता है।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र को समृद्ध बनाने की ऐश्वर्यशाली योजनाएँ तथा विजय प्राप्ति की नीतियों को विद्वानों के सहयोग से तैयार कर पूर्ण करनेवाले राजा को कर्म कुशलता निश्चय से प्रशंसनीय है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्याचे बाहू सूर्याप्रमाणे महान, प्रतापी, बलयुक्त असतात तोच राज्यात पूजनीय ठरतो. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mighty are his hands and arms, vast and extensive, golden generous, reaching unto the bounds of heaven. Truly that grandeur of his is adorable. May the brave refulgent sun inspire us with will and passion for initiative and action.
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