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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 99 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 99/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राविष्णू छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒यं म॑नी॒षा बृ॑ह॒ती बृ॒हन्तो॑रुक्र॒मा त॒वसा॑ व॒र्धय॑न्ती । र॒रे वां॒ स्तोमं॑ वि॒दथे॑षु विष्णो॒ पिन्व॑त॒मिषो॑ वृ॒जने॑ष्विन्द्र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । म॒नी॒षा । बृ॒ह॒ती । बृ॒हन्ता॑ । उ॒रु॒ऽक्र॒मा । त॒वसा॑ । व॒र्धय॑न्ती । र॒रे । वा॒म् । स्तोम॑म् । वि॒दथे॑षु । वि॒ष्णो॒ इति॑ । पिन्व॑तम् । इषः॑ । वृ॒जने॑षु । इ॒न्द्र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयं मनीषा बृहती बृहन्तोरुक्रमा तवसा वर्धयन्ती । ररे वां स्तोमं विदथेषु विष्णो पिन्वतमिषो वृजनेष्विन्द्र ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । मनीषा । बृहती । बृहन्ता । उरुऽक्रमा । तवसा । वर्धयन्ती । ररे । वाम् । स्तोमम् । विदथेषु । विष्णो इति । पिन्वतम् । इषः । वृजनेषु । इन्द्र ॥ ७.९९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 99; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (बृहन्ता, उरुक्रमा) हे अनन्तशक्ते परमात्मन् ! (इयम्, मनीषा) इयं बुद्धिः (बृहती) या न्यायरक्षणाय पर्याप्तास्ति (तवसा) बलं दत्त्वा (वर्धयन्ती) पोषयन्ती अतः (विष्णो) परमात्मन् ! (वाम्) तुभ्यम् (स्तोमम्) इमां स्तुतिं (ररे) करोमि येन (विदथेषु) क्रतुषु (वृजनेषु) सङ्ग्रामेषु च (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (इषः) ऐश्वर्यं (पिन्वतम्) वर्धयतु ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (बृहन्तोरुक्रमा) हे अनन्तशक्ते परमात्मन् ! (इयं) यह (मनीषा) बुद्धि (बृहती) जो न्याय की रक्षा के लिये सबसे बड़ी है, (तवसा) बल देकर (वर्धयन्ती) बढ़ाती है, इसलिये (विष्णो) हे परमात्मन् ! (वां) आपकी यह (स्तोमं) स्तुति हम (ररे) कहते हैं, ताकि (विदथेषु) यज्ञों और (वृजनेषु) युद्धों में (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (इषः) हमारे ऐश्वर्य्य को आप (पिन्वतं) बढ़ाएँ ॥६॥

    भावार्थ

    जो ऐश्वर्य के बढ़ानेवाली इस वाणी को सेवन करते हैं अर्थात् (ब्रह्मयज्ञ) ईश्वरोपासना (और वीरयज्ञ) अन्याय के दमन करने के लिये वीरता करना, इस प्रकार भक्तिभाव और वीरभाव इन दोनों का अनुष्ठान करते हैं, वे सब प्रकार की विपत्तियों को नाश कर सकते हैं ॥६॥

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    विषय

    राजा-सेनापति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (विष्णो ) व्यापक सामर्थ्य वाले ! हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे शत्रुहन्तः ! ( इयं ) यह ( बृहती ) बड़ी, ( मनीषा ) मन की प्रेरक शक्ति, प्रज्ञा, (उरुक्रमा) बड़े पराक्रम वाले, (बृहन्ता) बड़े सामर्थ्यवान् ( वां ) आप दोनों को ( तवसा ) बल से ( वर्धयन्ती ) बढ़ाती हुई ( विदथेषु ) संग्रामों के अवसरों में ( स्तोभं ररे ) उत्तम संघ-बल को प्रदान करती है । आप दोनों ( वृजनेषु ) शत्रुओं को दूर करने में समर्थ प्रयाणकारी बलों में ( इषः पिन्वतम् ) अन्नादि तथा, तीव्र प्रेरणाओं को प्रदान करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १—३, ७ विष्णुः। ४—६ इन्द्राविष्णु देवते॥ छन्दः—१, ६ विराट् त्रिष्टुप्। २, ३ त्रिष्टुप्। ४, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    मन की प्रेरक शक्ति

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (विष्णो) = व्यापक वीर! हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (इयं) = यह (बृहती) = बड़ी, की प्रेरक शक्ति, (उरुक्रमा) = बड़े पराक्रमी (बृहन्ता) = बड़े सामर्थ्यवान् (वां) = आप दोनों को (तवसा) = बल से (वर्धयन्ती) = बढ़ाती हुई (विदथेषु) = संग्रामों में (स्तोमं ररे) = उत्तम संघ - बल देती है। आप दोनों (वृजनेषु) = शत्रु नाशक प्रयाणकारी बलों में (इषः पिन्वतम्) = तीव्र प्रेरणाएँ दो ।

    भावार्थ

    भावार्थ-संग्रामों में विजय पाने के लिए मनोबल का सुदृढ़ होना आवश्यक है। राजा व सेनापति दृढ़ इच्छाशक्ति से संयुक्त होकर अपनी सेना का मनोबल बढ़ावें इससे सेनाएं संगठित होकर शत्रुओं पर विजय पाने के लिए तीव्रता से प्रेरित होंगी।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This resounding song of thoughtful and conscientious adoration exalting the grand, versatile and mighty Indra-Vishnu, I offer in honour of the lord. Indra- Vishnu, pray exhort our power and exalt our honour and excellence in our yajnic battles of life on the paths of progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे ऐश्वर्यवृद्धी करणाऱ्या वाणीचे सेवन करतात. अर्थात (ब्रह्मयज्ञ) ईश्वरोपासना (वीरयज्ञ) अन्यायाचे दमन करण्यासाठी वीरता दाखविणे. या प्रकारे भक्तिभाव व वीरभाव या दोन्हींचे अनुष्ठान करतात ते सर्व प्रकारच्या विपत्तींचा नाश करू शकतात. ॥६॥

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