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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    ऋषिः - श्यावाश्वः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒दं वां॑ मदि॒रं मध्वधु॑क्ष॒न्नद्रि॑भि॒र्नर॑: । इन्द्रा॑ग्नी॒ तस्य॑ बोधतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । वा॒म् । म॒दि॒रम् । मधु॑ । अधु॑क्षन् । अद्रि॑ऽभिः । नरः॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । तस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं वां मदिरं मध्वधुक्षन्नद्रिभिर्नर: । इन्द्राग्नी तस्य बोधतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । वाम् । मदिरम् । मधु । अधुक्षन् । अद्रिऽभिः । नरः । इन्द्राग्नी इति । तस्य । बोधतम् ॥ ८.३८.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 38; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra and Agni, ruler and enlightened leader, the people, leading lights and all, create these exhilarating honey sweets of soma with mountainous efforts to felicitate you. Know this, recognise it, and honour them.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ब्राह्मण व क्षत्रिय यांना प्रसन्न व सुखी ठेवण्यासाठी प्रजा अति परिश्रमाने विविध प्रकारच्या वस्तू तयार करते ही गोष्ट त्यांनी विसरता कामा नये, तर स्मरणपूर्वक सर्वांचे रक्षण करण्यास प्रवृत्त व्हावे. ॥३॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदेवाह ।

    पदार्थः

    नरः=इतरे जनाः । वाम्=युवयोर्निमित्तम् । अद्रिभिः= पर्वतसदृशैः परिश्रमैः । मदिरम्=मदकरमानन्दप्रदम् । इदं मधु=इदं क्षीरादिमधुरं वस्तु । अधुक्षन्=दुहति । हे इन्द्राग्नी तस्य बोधतम् ॥३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    पुनः उसी को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्राग्नी) हे क्षत्रिय तथा ब्राह्मण यद्वा हे राजन् तथा हे दूत ! (तस्य+बोधतम्) उस विष को अच्छे प्रकार आज जानें कि (वाम्) आप लोगों के लिये (नरः) ये प्रजाजन (अद्रिभिः) पर्वतसमान परिश्रमों से (मदिरम्) आनन्दप्रद (इदम्+मधु) इस कृषिकर्मादि द्वारा मधुर-२ वस्तु (अधुक्षन्) पैदा कर रहे हैं ॥३ ॥

    भावार्थ

    ब्राह्मण और क्षत्रिय को प्रसन्न और सुखी रखने के लिये ये प्रजाजन अति परिश्रम से नाना वस्तु पैदा कर रहे हैं, यह बात इन्हें भूलना न चाहिये, किन्तु स्मरण रख सबकी रक्षा में ये प्रवृत्त रहें ॥३ ॥

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    विषय

    उनके तुल्य परस्पर सहायकों और विद्वानों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्राग्नी ) ऐश्वर्यवन् ! ज्ञानवन् ! वा शत्रुहन् ! नेतः ! ( वां ) आप दोनों के लिये ( नरः ) उत्तम नायक जन ( इदं मदिरं ) इस तृप्तिकारक हर्षदायक ( मधु ) मधुर रस, जल, अन्न, ज्ञानों और बल को ( अद्रिभिः ) मेघ, पर्वत और शस्त्रास्त्र बलों वा पाषाणादि से ( अधुक्षन् ) दोहें, प्राप्त करें। ( तस्य बोधतम् ) आप दोनों उस ज्ञान को भी भली प्रकार जानें। (अद्रिभिः मधु ) मेघों से जल और अन्न, पर्वतों से, पाषाणों से निर्झर और ओषधिरस शस्त्रों से ऐश्वर्य और बल, तथा (अद्रिभिः ) अखण्ड गुरुजनों से ज्ञान का दोहन किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः १, २, ४, ६, ९ गायत्री। ३, ५, ७, १० निचृद्गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    मदिरं मधु

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के दिव्य भावो ! (इदं) = यह (वां) = आपका (मदिरं) = उल्लास का जनक (मधु) = सब भोजन के रूप में ग्रहण की गई ओषधियों का सारभूत सोम [वीर्य] है। [२] (नरः) = उन्नति पथ पर चलनेवाले लोग (अद्रिभिः) = उपासनाओं के द्वारा (अधुक्षत्) = इसे अपने में प्रपूरित करते हैं । हे इन्द्राग्नी आप (तस्य) = उस जीवनयज्ञ का, जिसमें कि सोम का धारण किया जाता है, (बोधतम्) = ध्यान करो। आपको ही इस जीवनयज्ञ में सोम की आहुति देनी है।

    भावार्थ

    भावार्थ:- उपासना के द्वारा उन्नति पथ पर बढ़नेवाले लोग सोम का रक्षण करते हैं। यह सुरक्षित सोम बल व प्रकाश का वर्धन करता हुआ उल्लास का जनक होता है।

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