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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 55/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्दो॒ यथा॒ तव॒ स्तवो॒ यथा॑ ते जा॒तमन्ध॑सः । नि ब॒र्हिषि॑ प्रि॒ये स॑दः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्दो॒ इति॑ । यथा॑ । तव॑ । स्तवः॑ । यथा॑ । ते॒ । जा॒तम् । अन्ध॑सः । नि । ब॒र्हिषि॑ । प्रि॒ये । स॒दः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्दो यथा तव स्तवो यथा ते जातमन्धसः । नि बर्हिषि प्रिये सदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्दो इति । यथा । तव । स्तवः । यथा । ते । जातम् । अन्धसः । नि । बर्हिषि । प्रिये । सदः ॥ ९.५५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 55; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमेश्वर ! (यथा तव स्तवः) येन प्रकारेण भवद्यशः सर्वस्मिन् संसारे व्याप्नोति अथ च (यथा ते अन्धसः जातम्) येन प्रकारेणान्नादिपदार्थानां राशिर्भवतैव निर्मितः तेनैव प्रकारेण (निषदः प्रिये बर्हिषि) यदिह भवतः प्रियं यज्ञपदं तस्मिन् आगत्य विराजताम् ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (यथा तव स्तवः) जिस प्रकार आपका यश संसारभर में व्याप्त है और (यथा ते अन्धसः जातम्) जिस प्रकार अन्नादि पदार्थों का समूह आप ही ने रचा है, उसी प्रकार (निषदः प्रिये बर्हिषि) जो आपका प्रिय यज्ञस्थल है, उसमें आकर आप विराजमान होवें ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा यज्ञादि स्थानों को अपने विचित्र भावों से विभूषित करता है ॥२॥

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    विषय

    सोमरक्षण के दो प्रमुख साधन

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = सोम ! (यथा तव स्तवः) = जिस प्रकार हम तेरा स्तवन करनेवाले हैं, और (यथा) = जिस प्रकार (ते) = तेरा (अन्धसः) = सोम्य अन्न के द्वारा (जातम्) = विकास व प्रादुर्भाव हुआ है तू प्रिये पवित्रता के कारण प्रीति कर (बर्हिषि) = वासनाशून्य हृदय में (निषदः) = आसीन हो । [२] सोमरक्षण के दो साधन हैं— [क] एक तो हम सोम का स्तवन करते हुए सोमरक्षण के महत्त्व को समझें और सोमरक्षण के लिये प्रबल आकांक्षावाले हों। [ख] और इस सोमरक्षण के उद्देश्य से सदा सात्त्विक अन्न का ही सेवन करें। सोम्य अन्न के भक्षण से उत्पन्न हुआ हुआ सोम अवश्य शरीर में सुरक्षित रहेगा। 'जैसा अन्न वैसा मन' [आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः ] अन्तःकरण की शुद्धि से यह सोम शरीर में ही व्याप्त होगा ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सोमरक्षण के महत्त्व का ध्यान करें और इसके रक्षण के उद्देश्य से सोम्य अन्नों का ही सेवन करें।

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    विषय

    प्रजा के प्रति राजा के सत् कर्त्तव्य। पक्षान्तर में परमेश्वर से प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! (अन्धसः) तेरे प्राणधारक (तव) तेरी यथा (स्तवः) स्तुति है और (यथा ते जातम्) जैसा तेरा स्वभाव है, वैसा ही तू (प्रिये बर्हिषि) प्रिय आसन (प्रतिष्ठा) पर (नि सदः) विराज।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २ गायत्री। ३, ४ निचृद गायत्री॥ चतुऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of beauty and grace, as you pervade your own glory of adoration, your own creation, power and nourishments of food and inspiration, so pray come, bless our vedi of yajna, our life and work through the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा यज्ञ इत्यादी स्थानांना आपल्या विविध भावांनी विभूषित करतो. ॥२॥

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