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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1053
    ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    28

    अ꣣꣬भ्य꣢꣯र्ष स्वायुध꣣ सो꣡म꣢ द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सꣳ र꣣यि꣢म् । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣भि꣢ । अ꣣र्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सो꣡म꣢꣯ । द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सम् । द्वि꣣ । ब꣡र्ह꣢꣯सम् । र꣣यि꣢म् । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्यर्ष स्वायुध सोम द्विबर्हसꣳ रयिम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । अर्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सोम । द्विबर्हसम् । द्वि । बर्हसम् । रयिम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1053
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर परमात्मा और राजा से प्रार्थना है।

    पदार्थ

    हे (स्वायुध सोम) शस्त्रधारी के समान शासन करने में समर्थ परमात्मन् और उत्कृष्ट शस्त्रास्त्रों से युक्त राजन् ! आप (द्विबर्हसम्) व्यवहार और परमार्थ दोनों को बढ़ानेवाले (रयिम्) ऐश्वर्य को (अभ्यर्ष) प्राप्त कराइये। (अथ) इस प्रकार (नः) हमें (वस्यसः) अतिशय ऐश्वर्यवान् (कृधि) कर दीजिए ॥७॥

    भावार्थ

    भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार का धन मनुष्य के अभ्युदय और निःश्रेयस के लिए समर्थ होता है ॥७॥

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    पदार्थ

    (स्वायुध सोम) हे सु—शोभन—सर्वोत्तम आयु—मोक्ष की आयु को धारण कराने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू उपासकों के लिए (द्विबर्हसं रयिम्) दो लोकों में बढ़ कर ऐश्वर्य—अभ्युदय और निःश्रेयस को (अभ्यर्ष) प्रेरित कर—प्राप्त करा। शेष पूवर्वत्॥७॥

    विशेष

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    विषय

    'द्विबर्हस् रयि' =ब्रह्म+क्षत्र

    पदार्थ

    हमारे मनों पर वासनाओं का आक्रमण होता है, परन्तु यदि हम मन में प्रभु का स्मरण करते हैं तो इन वासनाओं का आक्रमण नहीं हो पाता । वे प्रभु 'स्वायुध' हैं - हमारे उत्तम आयुध हैं । प्रभु के द्वारा हम इन कामादि शत्रुओं को पराजित कर पाते हैं । हे (स्वायुध) = हमारे उत्तम आयुधरूप (सोम) = परमात्मन् ! आप हमें (द्विबर्हसम्) = द्युलोक व पृथिवीलोक में-मस्तिष्क व शरीर में (रयिम्) = सम्पत्ति को (अभ्यर्ष) = प्राप्त कराइए । आपकी कृपा से हमें मस्तिष्क की सम्पत्ति 'ज्ञान' तथा शरीर की सम्पत्ति 'बल' दोनों ही प्राप्त हों । हमें 'ब्रह्म व क्षत्र' दोनों ही प्राप्त हों और इस प्रकार हे प्रभो ! (अथ नः वस्यसः कृधि) = आप हमारे जीवनों को उत्कृष्ट बनाइए।

    भावार्थ

    हम प्रभु को अपना आयुध बनाएँ – शत्रुओं का विनाश करें और अपने 'ब्रह्म' व क्षत्र' का विकास करें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (सोम) सर्वप्रेरक ! हे (स्वायुध) उत्तम साधनों, बलों से युक्त ! (त्वं) तू (द्विबर्हसं) दोनों लोकों में बढ़ाने वाले (रयिं) प्राणरूप सामर्थ्य को (अभि अर्ष) दे। और (अथ नः०) हमें श्रेष्ठ बना।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मानं राजानं च प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (स्वायुध सोम) शस्त्रधर इव शासनसमर्थ परमात्मन्, उत्कृष्टशस्त्रास्त्रसम्पन्न राजन् वा ! त्वम् (द्विबर्हसम्) द्वयोः व्यवहारपरमार्थयोर्वर्धकम्२(रयिम्) ऐश्वर्यम् (अभ्यर्ष) प्रापय। (अथ) एवं च (नः) अस्मान् (वस्यसः) अतिशयेन वसुमतः (कृधि) कुरु ॥७॥

    भावार्थः

    भौतिकमाध्यात्मिकं चोभयविधं धनं मनुष्यस्याभ्युदयाय निःश्रेयसाय चालं भवति ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।४।७। २. द्विबर्हाः द्वयोर्व्यवहारपरमार्थयोर्वर्धकः—इति ऋ० १।११४।१० भाष्ये द०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, possessing manifold strength, grant us riches which expand through knowledge and action. Make us better than we are !

    Translator Comment

    Look upon Thos, means worship Thee.

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    Meaning

    Soma, creative and inspiring spirit of the world, noble wielder and controller of the dynamics of life, bless us with wealth and vision good enough for both this life and the life beyond, and thus make us happy and prosperous for the life divine for ever. (Rg. 9-4-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (स्वायुध सोम) હે સુ-શોભન-સર્વોત્તમ આયુ-મોક્ષની આયુને ધારણ કરાવનાર શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું ઉપાસકોને માટે (द्विबर्हसं रयिम्) બન્ને લોકોમાં વૃદ્ધિ કરનાર ઐશ્વર્ય-અભ્યુદય અને નિઃશ્રેયસને (अभ्यर्ष) પ્રેરિત કર-પ્રાપ્ત કરાવ. (अथ) અનન્તર (नः वस्यसः कृधे) અમને શ્રેષ્ઠ કરો-બનાવો. (૭)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    भौतिक व आध्यात्मिक दोन्ही प्रकारचे धन माणसाच्या अभ्युदय व नि:श्रेयस साठी समर्थ असते. ॥७॥

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