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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1109
    ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च क्रमेण गौपायना लौपायना वा देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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    तं꣡ त्वा꣢ शोचिष्ठ दीदिवः सु꣣म्ना꣡य꣢ नू꣣न꣡मी꣢महे꣣ स꣡खि꣢भ्यः ॥११०९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त꣢म् । त्वा꣣ । शोचिष्ठ । दीदिवः । सुम्ना꣡य꣢ । नू꣣न꣢म् । ई꣣महे । स꣡खि꣢꣯भ्यः । स । खि꣣भ्यः ॥११०९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः ॥११०९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । त्वा । शोचिष्ठ । दीदिवः । सुम्नाय । नूनम् । ईमहे । सखिभ्यः । स । खिभ्यः ॥११०९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1109
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे पुनः वही विषय है।

    पदार्थ

    हे (शोचिष्ठ) अत्यधिक पवित्र और अतिशय पवित्रकर्ता, (दीदिवः) सत्य के प्रकाशक परमात्मन्, राजन् वा आचार्य। (तं त्वा) उन आपसे हम (नूनम्) निश्चय ही (सखिभ्यः) साथियों के (सुम्नाय) सुख के लिए (ईमहे) याचना करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    जो स्वयं पवित्र ह्रदयवाला और सत्य का समर्थक है, वही दूसरों को वैसा बना सकता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (शोचिष्ठ) हे अत्यन्त दीप्तिमन्! (दीदिवः) तेजस्वी परमात्मन्! (तं त्वा) उस तुझे (सखिभ्यः) ‘सखायः’*107 हम तेरे सखि मित्र उपासक (सुम्नाय) सुख के लिए*108 (नूनम्-ईमहे) निश्चय प्रार्थित करते हैं—प्रार्थना में लाते हैं॥३॥

    टिप्पणी

    [*107. विभक्तिव्यत्ययः।] [*108. “सुम्नं सुखनाम” [निघं॰ ३.६]।]

    विशेष

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    विषय

    उत्तम मित्रों के साथ

    पदार्थ

    हे (शोचिष्ठ) = अत्यन्त दीप्तिमन्, पवित्र प्रभो ! (दीदिवः) = [देवयति क्रीडयति] सारे संसार को क्रीड़ा करानेवाले प्रभो ! (तं त्वा) = उस आपसे हम (नूनम्) = निश्चय से (सुम्नाय) = आपके स्तवन के लिए, सुख व रक्षण के लिए तथा (सखिभ्यः) = उत्तम मित्रों के लिए (ईमहे) = याचना करते हैं । वे प्रभु अत्यन्त दीप्त व पवित्र हैं - वे ही वस्तुतः इस संसार की सम्पूर्ण क्रीड़ा को कर रहे हैं । प्रभुकृपा से हमारा जीवन प्रभु-स्तवन करनेवाला हो । प्रभुकृपा से हम सुखी हों – प्रभु-रक्षण हमें सदा प्राप्त हो और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि प्रभु की दया से हम सदा उत्तम साथियों को प्राप्त करें ।

    भावार्थ

    हम प्रभु-स्तवन करें – प्रभु के आनन्द व रक्षण को प्राप्त करें । हमें उत्तम मित्रों के साथ रहने का प्रसङ्ग मिले । 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    हे (शोचिष्ठ) पवित्रतम अतिशयेन पवित्रकर्त्तः, (दीदिवः) सत्यप्रद्योतक परमात्मन् नृपते आचार्य वा ! (तं त्वा) तादृशं त्वाम्, वयम् (नूनम्) निश्चयेन (सखिभ्यः) सुहृद्भ्यः (सुम्नाय) सुखाय (ईमहे) याचामहे। [ईमहे इति याच्ञाकर्मसु पठितम्। निघं० ३।१९] ॥३॥२

    भावार्थः

    यः स्वयं पवित्रहृदयः सत्यसमर्थकश्च स एवान्यान् तादृशान्कर्तुं प्रभवति ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ५।२४।४। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं विदुषो यज्ञविषये व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    To Thee, O Most Bright, O Radiant God, verily do we pray for happiness for our friends !

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    Meaning

    Lord most pure and purifying, light of illumination, with all our friends, for sure, we pray to you for peace and lifes well being. (Rg. 5-24-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शोचिष्ठ) હે અત્યંત દીપ્તિમાન ! (दीदिवः) તેજસ્વી પરમાત્મન્ ! (तं त्वा) તે તને (सखिभ्यः) અમે તારા મિત્ર ઉપાસક (सुम्नाय) સુખને માટે (नूनम् ईमहे) નિશ્ચિત પ્રાર્થિત કરીએ છીએ-પ્રાર્થનામાં લાવીએ છીએ. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो स्वत: पवित्र हृदयाचा व सत्याचा समर्थक आहे, तोच दुसऱ्यांना तसेच बनवू शकतो. ॥३॥

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