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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1209
    ऋषिः - उचथ्य आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    39

    स꣡ प꣢वस्व मदिन्तम꣣ गो꣡भि꣢रञ्जा꣣नो꣢ अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । ए꣡न्द्र꣢स्य ज꣣ठ꣡रं꣢ विश ॥१२०९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । प꣣वस्व । मदिन्तम । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣣ञ्जानः꣢ । अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । आ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । ज꣣ठ꣡र꣢म् । वि꣣श ॥१२०९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पवस्व मदिन्तम गोभिरञ्जानो अक्तुभिः । एन्द्रस्य जठरं विश ॥१२०९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः । पवस्व । मदिन्तम । गोभिः । अञ्जानः । अक्तुभिः । आ । इन्द्रस्य । जठरम् । विश ॥१२०९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1209
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 5
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर परमेश्वर से प्रार्थना है।

    पदार्थ

    हे (मदिन्तम) सबसे बढ़कर आनन्ददाता जगदीश्वर ! आप (अक्तुभिः) प्रकाशक (गोभिः) अध्यात्मप्रकाश की किरणों से (अञ्जानः) प्रकाश देते हुए (आ पवस्व) आओ। (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (जठरम्) अन्दर (आ विश) प्रविष्ट हो जाओ ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा को प्राप्त करके जीवात्मा प्रकाशमय हो जाता है ॥५॥ इस खण्ड में स्तोत्रगान के द्वारा परमेश्वर का साक्षात्कार करने तथा परमेश्वर से प्रार्थना का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ नवम अध्याय में चतुर्थ खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (मदिन्तम) हे अत्यन्त हर्षप्रद सोम—परमात्मन्! तू (सः) वह (अक्तुभिः-गोभिः) कमनीय स्तुति वाणियों से (अञ्जानः) प्रसिद्ध हुआ (इन्द्रस्य जठरम्-आविश) उपासक आत्मा के अन्दर१० आविष्ट हो—प्राप्त हो॥५॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु में निवास

    पदार्थ

    हे उचथ्य! (सः) = वह तू १. (मदिन्तम) = सर्वथा प्रसन्न मनोवृत्तिवाला बना हुआ, २. (गोभिः पवस्व) = वेदवाणियों के अनुसार गतिशील हो– सदा वैदिक क्रिया में लगा रह और इस प्रकार अपने जीवन को पवित्र बना। ३. (अक्तुभिः) = वेद के द्वारा ही प्रकाश की किरणों से [अक्तु=a ray of light] (अञ्जानः) = अपने जीवन को अलंकृत करता हुआ तू (इन्द्रस्य जठरम्) = प्रभु के उदर में (आविश) = प्रवेश कर, प्रभु के गर्भ में निवास करनेवाला बन, अर्थात् प्रभु को प्राप्त कर|

    भावार्थ

    १. हम प्रसन्न मनोवृत्तिवाले हों २. वेदानुसार क्रियाओं में लगे रहें ३. प्रकाश की किरणों से अपने जीवन को अलकृंत करें और इस प्रकार सदा प्रभु में निवास करनेवाले बनें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (मदिन्तम) आनन्द प्रदान करने हारे आत्मन् ! (अक्तुभिः) ज्ञान-साधनों और (गोभिः) आदित्यरश्मियों, वेदवाणियों द्वारा (अञ्जानः) अभिव्यक्त और भी प्रकाशमान होकर (सः) वह परम रूप होकर (पवस्व) क्षरित हो, गति कर, उद्योग कर और (इन्दस्य) ऐश्वर्यशील परमात्मा के (जठरे) भीतर गर्भ में (विश) प्रवेश कर, उसी में रम।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (मदिन्तम) आनन्दयितृतम जगदीश्वर ! त्वम् (अक्तुभिः) व्यञ्जकैः (गोभिः) अध्यात्मप्रकाशरश्मिभिः (अञ्जानः) प्रकाशयन् (आ पवस्व) आगच्छ। (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (जठरम्) अभ्यन्तरम् (आ विश) प्रविश ॥५॥

    भावार्थः

    परमात्मानं प्राप्य जीवात्मा प्रकाशमयो जायते ॥५॥ अस्मिन् खण्डे स्तोत्रगानद्वारा परमेश्वरसाक्षात्कारस्य परमेश्वरप्रार्थनायाश्च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।५०।५, ‘इन्द॒विन्द्रा॑य पी॒तये॑’ इति तृतीयः पादः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O soul, the hest giver of delight, anointed with wise acts and Vedic teachings, exert thou hard, and revel in God!

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    Meaning

    Flow on, most exhilarating Spirit, adored and exalted by concentrative mind and senses of the seeker in meditation, flow on for ecstatic experience of the soul. (Rg. 9-50-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मन्दितम) હે અત્યંત હર્ષપ્રદ સોમ-પરમાત્મન્ ! તું (सः) તે (अक्तुभिः गोभिः) મનોહર સુંદર વાણીઓથી (अञ्जानः) પ્રસિદ્ધ થઈને (इन्द्रस्य जठरम् आविश) ઉપાસકના આત્માની અંદર આવિષ્ટ થા - પ્રાપ્ત થા.
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराला प्राप्त करून जीवात्मा प्रकाशमय होतो ॥५॥ या खंडात स्तोत्रगानाद्वारे परमेश्वराचा साक्षात्कार करण्यासाठी व परमेश्वराला प्रार्थना केल्याचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे

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