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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1221
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
25
उ꣡द्यस्य꣢꣯ ते꣣ न꣡व꣢जातस्य꣣ वृ꣢꣫ष्णोऽग्ने꣣ च꣡र꣢न्त्य꣣ज꣡रा꣢ इधा꣣नाः꣢ । अ꣢च्छा꣣ द्या꣡म꣢रु꣣षो꣢ धू꣣म꣡ ए꣢षि꣣ सं꣢ दू꣣तो꣡ अ꣢ग्न꣣ ई꣡य꣢से꣣ हि꣢ दे꣣वा꣢न् ॥१२२१॥
स्वर सहित पद पाठउ꣢त् । य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । न꣡व꣢꣯जातस्य । न꣡व꣢꣯ । जा꣣तस्य । वृ꣡ष्णः꣢꣯ । अ꣡ग्ने꣢꣯ । च꣡र꣢꣯न्ति । अ꣣ज꣡राः꣢ । अ꣣ । ज꣡राः꣢꣯ । इ꣣धानाः꣢ । अ꣡च्छ꣢꣯ । द्याम् । अ꣣रुषः꣢ । धू꣣मः꣢ । ए꣣षि । स꣢म् । दू꣣तः꣢ । अ꣣ग्ने । ई꣡य꣢꣯से । हि । दे꣣वा꣢न् ॥१२२१॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्यस्य ते नवजातस्य वृष्णोऽग्ने चरन्त्यजरा इधानाः । अच्छा द्यामरुषो धूम एषि सं दूतो अग्न ईयसे हि देवान् ॥१२२१॥
स्वर रहित पद पाठ
उत् । यस्य । ते । नवजातस्य । नव । जातस्य । वृष्णः । अग्ने । चरन्ति । अजराः । अ । जराः । इधानाः । अच्छ । द्याम् । अरुषः । धूमः । एषि । सम् । दूतः । अग्ने । ईयसे । हि । देवान् ॥१२२१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1221
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में फिर विद्वान् का ही विषय है।
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्रनायक विद्वन् ! (यस्य) जिस (नवजातस्य) नवस्नातक, (वृष्णः) विद्या, सुख आदि की वर्षा करनेवाले (ते) आपकी (अजराः) नष्ट न होनेवाली, (इधानाः) जाज्वल्यमान दीप्तियाँ (उत् चरन्ति) उठती हैं, (सः) वह (अरुषः) तेजस्वी (धूमः) अविद्या, भ्रष्टाचार दुःख आदि को कँपा देनेवाले आप (द्याम् अच्छ) विद्या आदि के प्रकाश को लक्ष्य करके (एषि) कर्म करते हो। हे (अग्ने) विद्वन् ! (दूतः) दूत के समान आचरण करनेवाले आप (देवान्) प्रजाजनों से (सम् ईयसे हि) मिलते-जुलते हो ॥३॥
भावार्थ
नवस्नातक गुरुकुल से बाहर जाकर अपने तेज के प्रभाव को फैलाकर, अज्ञान, दुराचार आदि को कँपा कर जन-समाज को उन्नत करे ॥३॥
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! (ते यस्य नवजातस्य वृष्णः) जिस तुझ साक्षात् सुखवर्षक के (अजराः-ईधानाः-उच्चरन्ति) अजर ज्ञान ज्योतियाँ उपासक के ऊपर—उपासक के अन्दर उद्भूत होती हैं (अरुषः-धूमः-अच्छद्याम्-एषि) आरोचमान काम आदि का कम्पाने वाला हो उपासक को अमृतमोक्षधाम की ओर ले जाती हैं (दूतः-देवान् हि समीयसे) प्रेरक हुआ मुमुक्षु उपासकों को प्राप्त हो जाता है७॥३॥
विशेष
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विषय
नवजात अग्नि का धूम
पदार्थ
वैदिक मर्यादा में जब ब्रह्मचारी आचार्याकुल से बाहर आता है तब इस नवजात ब्रह्मचारी को देखने के लिए कितने ही विद्वान् आते हैं, हे अग्ने नेतः ! यस्य ते नवजातस्य-जिस तेरे नवीन उत्पन्न हुए वृष्णः= शक्तिशाली अथवा ज्ञान की वर्षा करनेवाले की अजरा:- जीर्ण न होनेवाली इधाना:ज्ञानदीप्तियाँ चरन्ति प्रजाओं में फैलती हैं, वह तू १. अरुषः = क्रोध से ऊपर उठा हुआ, किसी प्रकार की हिंसा न करनेवाला, २. धूम:= [धू कम्पने] प्रजाओं में हलचल मचा देनेवाला, तपोजनित क्रियाशीलता से उन्हें कम्पित कर देनेवाला, ३. द्याम् अच्छ- ज्ञान के प्रकाश की ओर एषि= जाता है, सदा अपने ज्ञान को बढ़ाने में लगा रहता है । ४. हे अने- प्रकाश फैलानेवाला ! दूतः - अशुभों का निवारण करनेवाला तू हि = निश्चय से ५. देवान् - दिव्य गुणों को समीयसे प्राप्त होता है। अपने अन्दर अधिकाधिक दिव्य गुणों को बढ़ाकर तू औरों में भी दिव्य गुणों की वृद्धि कर सकेगा।
भावार्थ
हम अग्नि के गुणों को धारण करते हुए लोकहित के लिए ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाले बनें ।
विषय
missing
भावार्थ
हे अग्ने ! (नवजातस्य) सावित्री के गर्भ से अभी नये ही बाहर आये नवस्नातक, (वृष्णः) ज्ञानों के वर्षण करने हारे (यस्य ते) जिस तेरे (अजराः) जरारहित होकर बलवान् प्रखर, (इधानाः) तेज (उच्चरन्ति) प्रकट होते हैं। और (अरुषः) कान्तिमान् (धूमः) प्रति पक्षियों में कम्पना उत्पन्न करने हारा होकर (द्याम्) सूर्य या तेज प्रकाशक और ज्ञान को (एषि) प्राप्त करता है वह तू हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! (देवान्) विद्वानों के प्रति (दूतः) ज्ञान संदेश ले जाने के लिये दूत या-गुरु के समान उन तक (ईयसे) पहुंचता है। साधक की आत्मा के भीतर जब नया ऋतम्भरा प्रज्ञा का उदय होता है उस समय विशोक चितिशक्ति या प्रदीप्त आत्मा की जो दशा होती है उसका भी वर्णन इन तीनों मन्त्रों में साथ ही किया है। तीसरे में—अजरा=प्राणगण। धूमः=प्राणों को गति देने हारा आत्मा। दूत=गतिशील, प्रेरक आत्मा। देवान्=इन्द्रियों को। ईयसे=प्राप्त होता है, वश करता है। शेष स्पष्ट है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि विद्वद्विषयमाह।
पदार्थः
हे (अग्ने) अग्रनेतः विद्वन् ! (यस्य) नवजातस्य नवस्नातकस्य, (वृष्णः) विद्यासुखादिवर्षकस्य (ते) तव (अजराः) अजीर्णाः, (इधानाः) जाज्वल्यमाना दीप्तयः (उत् चरन्ति) उद्गच्छन्ति, सः (अरुषः) आरोचमानः (धूमः) अविद्याभ्रष्टाचारादीनां प्रकम्पकः त्वम्। [धूनोति कम्पयतीति धूमः। धूञ् कम्पने, इत्यस्माद् ‘इषियुधीन्धिदसिश्याधूसूभ्यो मक्’ उ० १।१४५ इति मक् प्रत्ययः।] (द्याम् अच्छ) विद्यादिप्रकाशम् अभिलक्ष्य (एषि) गच्छसि, कार्यं करोषि। हे (अग्ने) विद्वन् ! (दूतः) दूत इवाचरन् त्वम् (देवान्) प्रजाजनान् (सम् ईयसे हि) संगच्छसे खलु ॥३॥२
भावार्थः
नवस्नातको गुरुकुलाद् बहिर्गत्वा स्वकीयं तेजःप्रभावं विस्तार्याज्ञानकदाचारादीन् प्रकम्प्य जनसमाजमुन्नयेत् ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ७।३।३, ‘एषि’ इत्यत्र ‘ए॑ति॒’। २. एतमपि मन्त्रमृग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्विद्युत्पक्षे व्याचष्टे।
इंग्लिश (2)
Meaning
O learned sow graduate, thy kindled flames of dignity, showering knowledge, rise upward. O lovely young scholar, striking terror in the hearts of the opponents, thou gainest knowledge, O learned fellow, thou approachest the teamed persons as their teacher and messenger of learning !
Translator Comment
$ नवजातस्य means a young man, who has just finished his studies, and been declared a graduate स्नातक, i.e. who has just come out of the womb of the goddess of learning, .
Meaning
Agni, abundant energy divine, as your flames arise, new and undecaying, the radiant waves traverse the heights of heaven in space, and thus you move like a messenger to the divinities of nature at the one end and to the brilliant scholars at the other. (Rg. 7-3-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) હે અગ્રણી પરમાત્મન્ ! (ते यस्य नवजातस्य वृष्णः) જે તારા સાક્ષાત્ સુખવર્ધકની (अजराः ईधानाः उच्चरन्ति) અજર જ્ઞાન જ્યોતિઓ ઉપાસકની ઉપર-ઉપાસકની અંદર અદ્ભુત હોય છે. (अरूषः धूमः अच्छद्याम् एषि) પ્રકાશમાન કામ આદિને કંપાવનાર છે. ઉપાસકને અમૃત મોક્ષધામની તરફ લઈ જાય છે. (दूतः देवान् हि समीयसे) પ્રેરક બનેલ મુમુક્ષુ ઉપાસકોને પ્રાપ્ત થઈ જાય છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
नवस्नातकाने गुरुकुलमधून बाहेर आल्यानंतर आपल्या तेजाचा प्रभाव फैलावून अज्ञान, दुराचार इत्यादींना कंपायमान करून समाजाला उन्नत करावे. ॥३॥
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