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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1302
    ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा देवता - पवमानाध्येता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    96

    ये꣡न꣢ दे꣣वाः꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢णा꣣त्मा꣡नं꣢ पु꣣न꣢ते꣣ स꣡दा꣢ । ते꣡न꣢ स꣣ह꣡स्र꣢धारेण पावमा꣣नीः꣡ पु꣢नन्तु नः ॥१३०२

    स्वर सहित पद पाठ

    ये꣡न꣢꣯ । दे꣣वाः꣢ । प꣣वि꣡त्रे꣢ण । आ꣣त्मा꣡न꣢म् । पु꣣न꣡ते꣢ । स꣡दा꣢꣯ । ते꣡न꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢धारेण । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रेण । पावमानीः꣣ । पु꣣नन्तु । नः ॥१३०२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन देवाः पवित्रेणात्मानं पुनते सदा । तेन सहस्रधारेण पावमानीः पुनन्तु नः ॥१३०२


    स्वर रहित पद पाठ

    येन । देवाः । पवित्रेण । आत्मानम् । पुनते । सदा । तेन । सहस्रधारेण । सहस्र । धारेण । पावमानीः । पुनन्तु । नः ॥१३०२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1302
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 5
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर वेदाध्ययन हमें क्या प्राप्त कराये, यह कहा गया है।

    पदार्थ

    (देवाः) दिव्यगुणों से युक्त विद्वान् लोग (येन पवित्रेण) जिस पवित्र ब्रह्मानन्द से (आत्मानम्) अपने आत्मा को (सदा) हमेशा (पुनते) पवित्र करते हैं, (तेन सहस्रधारेण) उस हजार धाराओं से बहनेवाले दिव्य आनन्द से (पावमानीः) पवमान देवतावाली ऋचाएँ (नः) हमें (पुनन्तु) पवित्र करें ॥५॥

    भावार्थ

    पावमानी ऋचाओं के गान से और उनमें वर्णित रसमय परमात्मा में ध्यान लगाने से कोई अद्वितीय दिव्य आनन्दरस का प्रवाह बहता हुआ उपासकों के चित्तों को पवित्र कर जाता है ॥५॥

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    पदार्थ

    (देवाः) सुमुक्षु उपाजसकजन (येन पवित्रेण) जिस पवित्रकारक परमात्मा से—‘उसके ध्यान दर्शन हो जाने पर’ (आत्मानं सदा पुनते) अपने को सदा पवित्र करते हैं (तेन सहस्रधारेण) उस सहस्र आनन्द धारा वाले पवमान—परमात्मा के ध्यान दर्शन से (नः) हमें (पावमानीः पुनन्तु) स्तुतियाँ पवित्र करें॥५॥

    विशेष

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    विषय

    सहस्रधार पवित्र

    पदार्थ

    (देवाः) = देवलोग (येन) = जिस (पवित्रेण) = ज्ञान के द्वारा (नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते) (आत्मानम्) = अपने को (सदा) = हमेशा (पुनते) = पवित्र करते हैं तेन (सहस्रधारेण) = उस (सहस्रं धाराः यस्य, धारा=वाणी) सहस्रों वाणियोंवाले वेद से (पावमानीः) = ये पवित्र ऋचाएँ (नः) = हमें (पुनन्तु) = पवित्र कर डालें। वेद ज्ञान की वाणियों से परिपूर्ण है। ये ज्ञान की वाणियाँ ‘पावमानी’=पवित्र करनेवाली हैं। जैसे जलों की शतशः धाराएँ हमारे बाह्य मलों को धो डालती हैं, इसी प्रकार वेद की ये ज्ञानात्मक धाराएँ हमारे अन्तःकरणों को शुद्ध कर डालें। ज्ञान ही पवित्र है। ये ऋचाएँ ज्ञान से परिपूर्ण हैं, अतः ये सचमुच ‘पावमानी’ हैं।

    भावार्थ

    ये पावमानी ऋचाएँ हमारे लिए सचमुच पावमानी हों।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( येन पवित्रेण ) = पवित्र करनेवाले जिस कर्म से  ( देवाः ) = विद्वान्  ( आत्मानम् ) = अपने आत्मा को  ( सदा पुनते ) = सदा पवित्र करते हैं  ( तेन सहस्रधारेण ) = उस अनन्त धाराओंवाले कर्म से  ( पावमानी: ) = पवित्र करनेवाली वेद की ऋचाएँ  ( नः पुनन्तु ) = हमें पवित्र करें।
     

    भावार्थ

    भावार्थ = जिस प्रणव जप और वेदों के पवित्र मन्त्रों के स्वाध्याय रूप पवित्र कर्म से, प्रभु के उपासक, स्वाध्यायशील विद्वान् महात्मा लोग, अपने आत्मा को सदा पवित्र करते हैं, उस अनन्त धारण शक्तियों से सम्पन्न, ईश्वरप्राणिधान और वेद स्वाध्याय रूप से कर्म से, सारे संसार को पवित्र करनेवाली वेदों की ऋचाएँ हमको पवित्र करें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (देवाः) विदान् योगी जन (येन) जिस (पवित्रेण) समस्त संसार को पवित्र करने हारे उपाय से (सदा) नित्य अपने (आत्मानं) आत्मा को (पुनते) पवित्र करते हैं (तेन) उस (सहस्रधारेण) सहस्रों धारणा शक्तियों से सम्पन्न, योगसाधन या पतितपावन ईश्वर प्रणिधान से ही यह (पावमानीः) पवमान सोम-सम्बन्धी ऋचाएं भी (नः) हमें (पुनन्तु) पवित्र करें।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनर्वेदाध्ययनं नः किं प्रापयेदित्याह।

    पदार्थः

    (देवाः) दिव्यगुणयुक्ता विद्वांसः (येन पवित्रेण) येन पूतेन ब्रह्मानन्देन (आत्मानम्) स्वात्मानम् (सदा) सर्वदा (पुनते) पवित्रं कुर्वन्ति (तेन सहस्रधारेण) तेन सहस्रधाराभिः प्रवहता दिव्यानन्देन (पावमानीः) पवमानदेवताका ऋचः (नः) अस्मान् (पुनन्तु) पवित्रान् कुर्वन्तु ॥५॥

    भावार्थः

    पावमानीनामृचां गानेन तत्र वर्णिते रसागारे परमात्मनि ध्यानेन च कोऽपि दिव्यानन्दरसप्रवाहः प्रसरन्नुपासकानां चेतांसि पवित्रीकरोति ॥५॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The purifying source, wherewith the learned Yogis ever purify themselves, with that, in thousand currents, may the Soma verses of the Vedas purify us.

    Translator Comment

    The purifying source means Yoga.

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    Meaning

    That pure beatitude of divinity by which the holy sages for all time purify and sanctify themselves, by that very sacred thousand streamed shower of celestial light of divinity may the Vedic verses purify and elevate us.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (देवाः) મુમુક્ષુ ઉપાસકજન (येन पवित्रेण) જે પવિત્રકારક પરમાત્માથી "તેનું ધ્યાન દર્શન થઈ જતાં" (आत्मानं सदा पुनते) પોતાને સદા પવિત્ર કરે છે (तेन सहस्रधारेण) તે હજારો આનંદધારાવાળા પવમાન પરમાત્માના ધ્યાન દર્શનથી (नः) અમને (पावमानीः पुनन्तु) સ્તુતિઓ પવિત્ર કરે. (૫)
     

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    যেন দেবাঃ পবিত্রেণাত্মানং পুনতে সদা।

    তেন সহস্রধারেণ পাবমানীঃ পুনন্তু নঃ।।৯৪।।

    (সাম ১৩০২)

    পদার্থঃ (যেন পবিত্রেণ) পবিত্রকারী যে কর্মের দ্বারা (দেবাঃ) বিদ্বান (আত্মানম্) নিজের আত্মাকে (সদা পুনতে) সদা পবিত্র করেন, (তেন সহস্র ধারেণ) সেই অনন্ত ধারার কর্ম দ্বারা (পাবমানীঃ) পবিত্রকারী বেদ মন্ত্র (নঃ পুনন্তু) আমাদেরও পবিত্র করুক।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ যে প্রণব (ও৩ম্) জপ এবং বেদের পবিত্র মন্ত্রের স্বাধ্যায়রূপ পবিত্র কর্ম দ্বারা ঈশ্বরের উপাসক স্বাধ্যায়শীল বিদ্বান মহাত্মা ব্যক্তিরা নিজের আত্মাকে সদা পবিত্র করেন; সেই অনন্ত ধারণা, ঈশ্বর প্রণিধান এবং বেদ স্বাধ্যায়রূপ কর্ম দ্বারা সমস্ত সংসারের পবিত্রকারী বেদের ঋকসমূহ আমাদের পবিত্র করে।।৯৪।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पवित्र ऋचांच्या गायनाने व त्यांच्यात वर्णित रसमय परमात्म्यात ध्यान लावण्याने अद्वितीय दिव्य आनंदरसाचा प्रवाह वाहत उपासकांच्या चित्तांना पवित्र करतो. ॥५॥

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