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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1306
    ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
    33

    त्वं꣡ वरु꣢꣯ण उ꣣त꣢ मि꣣त्रो꣡ अ꣢ग्ने꣣ त्वां꣡ व꣢र्धन्ति म꣣ति꣢भि꣣र्व꣡सि꣢ष्ठाः । त्वे꣡ वसु꣢꣯ सुषण꣣ना꣡नि꣢ सन्तु यू꣣यं꣡ पा꣢त स्व꣣स्ति꣢भिः꣣ स꣡दा꣢ नः ॥१३०६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । व꣡रु꣢꣯णः । उ꣣त꣢ । मि꣣त्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । अ꣣ग्ने । त्वा꣢म् । व꣣र्धन्ति । मति꣡भिः꣢ । व꣡सि꣢꣯ष्ठाः । त्वे꣢꣯ । इ꣢ति । व꣡सु꣢꣯ । सु꣣षणना꣡नि꣢ । सु꣣ । सनना꣡नि꣢ । स꣣न्तु । यूय꣢म् । पा꣣त । स्वस्ति꣡भिः꣢ । सु꣣ । अस्ति꣡भिः꣢ । स꣡दा꣢꣯ । नः ॥१३०६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं वरुण उत मित्रो अग्ने त्वां वर्धन्ति मतिभिर्वसिष्ठाः । त्वे वसु सुषणनानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥१३०६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । वरुणः । उत । मित्रः । मि । त्रः । अग्ने । त्वाम् । वर्धन्ति । मतिभिः । वसिष्ठाः । त्वे । इति । वसु । सुषणनानि । सु । सननानि । सन्तु । यूयम् । पात । स्वस्तिभिः । सु । अस्तिभिः । सदा । नः ॥१३०६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1306
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा की स्तुति करते हुए उससे प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन् ! (त्वम्) आप (वरुणः) पापों के निवारक (उत) और (मित्रः) विपत्ति से बचानेवाले मित्र हो। (वसिष्ठाः) अतिशय विद्या के ऐश्वर्य से युक्त विद्वान् उपासक लोग (मतिभिः) स्तुतियों से (त्वाम्) आपको (वर्धन्ति) बढ़ाते हैं, अर्थात् जन-जन में प्रसारित करते हैं। (त्वे) आपमें विद्यमान (वसु) ऐश्वर्य (सुषणनानि) सुप्राप्य (सन्तु) होवें। (यूयम्) आप (स्वस्तिभिः) योग-क्षेमों द्वारा (सदा) हमेशा (नः) हमारी (पात) रक्षा करते रहो ॥३॥

    भावार्थ

    जो कुछ भी ऐश्वर्य हमारे हाथ में है, वह सब परमात्मा द्वारा प्रदत्त ही है ॥३॥

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    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणी ज्ञानप्रकाशक परमात्मन्! (त्वं वरुणः-उत मित्रः) तू वरने वाला—अपनी ओर मोक्षार्थ वरण करने वाला और संसार में श्रेष्ठकर्म करणार्थ प्रेरित करने वाला है (वसिष्ठाः) तेरे में अत्यन्त वसने वाले उपासकजन (मतिभिः) स्तुति वाणियों से२ (त्वां वर्धन्ति) तुझे अपने अन्दर बढ़ाते हैं—अधिकाधिक साक्षात् करते हैं (त्वे) तेरे साक्षात् हो जाने पर (सुषणानि वसु सन्तु) सुखसम्भाजक धन—अध्यात्मधन हो (यूयं स्वस्तिभिः-नः सदा पात) तुम३ कल्याणसाधनों से हमारी रक्षा करो॥३॥

    विशेष

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    विषय

    नीरोगता-निष्पापता व उन्नति

    पदार्थ

    हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! १. (त्वम्) = आप (वरुणः) = सब बुराइयों का निवारण करनेवाले होने से वरणीय हैं, २. (उत) = और (मित्र:) = [प्रमीतेः त्रायते] आप पाप व मृत्यु से बचानेवाले हैं। ३. (वसिष्ठाः) = शरीर में उत्तम निवासवाले वशी लोग (मतिभिः) = ज्ञानों के द्वारा (त्वां वर्धन्ति) = आपको बढ़ाते हैं, आपकी भावना को अपने में अधिक और अधिक जगाते हैं । ४. हे प्रभो! (त्वे वसु) = आपमें रहनेवाले ये उत्तम धन (सुषणनानि) = उत्तम ढंग से संविभाग के योग्य (सन्तु) = हों । हम कभी धनों को अपना कमाया हुआ समझकर विलास में उनका व्यय न करने लग जाएँ । हमारी यह भावना बनी रहे कि धन तो सब आपके हैं । इस भावना से युक्त होकर हम धनों का सदा उचित संविभागपूर्वक ही सेवन करें । ५. (यूयम्) = हे वरुण, मित्र और अग्ने ! आप सब (स्वस्तिभिः) = उत्तम जीवन स्थितियों के द्वारा

    [सु+अस्ति] (सदा) = हमेशा (नः पात) = हमारी रक्षा करें । 'वरुण' हमारे रोगों का निवारण करके हमें नीरोग व स्वस्थ बनाये । 'मित्र' हमें पाप से बचाकर द्वेषों को दूर करके स्नेहमय हृदयवाला बनाये । और 'अग्नि' सब प्रकार से हमारी उन्नति का साधक हो ।

    भावार्थ

    हमारा जीवन 'वरुण' के ध्यान से नीरोग बनें, 'मित्र' का ध्यान हमें निष्पाप करे और 'अग्नि' हमें मार्ग पर आगे और आगे बढ़ाए ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे अग्ने ज्ञानस्वरूप (त्वं) तू (वरुणः, उत मित्रः) सब पापों से निवारण करने और सर्वश्रेष्ठ होने से ‘वरुण’ और सबको स्नेह करने द्वारा और मृत्यु से बचाने वाला होने से ‘मित्र’ है। (वसिष्ठाः) अपने अपने वश में स्थित अथवा परमपद में वास करने हारे ज्ञानी अथवा अपने स्वरूप में स्थित मुमुक्षु लोग या प्राणगण (मतिभिः) मननशक्तियों द्वारा (त्वा) तुझे या तेरी महिमा को ही (वर्द्धन्ति) बढ़ाते हैं। (त्वे) तुझ में, तेरी साक्षिता में (वसूनि) समस्त ज्ञान, धन, (सुषणानि) उत्तम उत्तम सुख प्रदान करने वाले अथवा सुख से दान करने योग्य (सन्तु) हों। हे विद्वान् लोगो ! (यूयं) आप लोग भी (नः) हमें (सदा) नित्य (स्वस्तिभिः) कल्याणकारी कार्यों, उत्तम उपायों और आशीर्वादों से (पात) रक्षा करो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मानं स्तुवन् तं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन् ! (त्वम्, वरुणः) पापानां निवारकः (उत) अपि च (मित्रः) मरणात् त्राता सुहृत् असि। (वसिष्ठाः) अतिशयेन विद्यैश्वर्ययुक्ताः विद्वांसः उपासकाः (मतिभिः) स्तुतिभिः (त्वाम्) परमात्मानम् (वर्धन्ति) वर्धयन्ति, जने जने प्रसारयन्तीत्यर्थः। (त्वे) त्वयि विद्यमानानि (वसु) वसूनि ऐश्वर्याणि (सुषणनानि) सुसम्भजनानि (सन्तु) भवन्तु। (यूयम्) [आदरार्थम् बहुवचनम्।] (स्वस्तिभिः) योगक्षेमैः (सदा) नित्यम् (नः) अस्मान् (पात) रक्षत ॥३॥२

    भावार्थः

    यत्किञ्चिदप्यैश्वर्यमस्मद्धस्तगतं विद्यते तत्सर्वं परमात्मप्रदत्तमेव ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, Thou art Varuna and Mitra. Learned persons and seekers after salvation exalt Thee with their forces of contemplation. Through Thee, may knowledge and wealth be the givers of excellent happiness. Do ye preserve us evermore with blessings!

    Translator Comment

    God is Varuna as He saves us from sins. He is Mitra as He is the friend of all, and saves us from the pangs of death. Ye refers to learned persons.

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    Meaning

    O lord of light and life, Agni, you are the judge, you are the friend. Devotees and celebrants blest with settlement and prosperity exalt you with their will and wisdom. May those who repose their love and faith in you enjoy the gifts of your generosity. And may you all, scholars and leading lights, protect and promote us with peace, prosperity and all round well being of life. (Rg. 7-12-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अग्ने) અગ્રણી જ્ઞાનપ્રકાશક પરમાત્મન્ ! (त्वं वरुणः उत मित्रः) તું વરનાર પોતાની તરફ મોક્ષ માટે વરણ કરનાર અને સંસારમાં શ્રેષ્ઠ કર્મ કરવા માટે પ્રેરિત કરનાર છે. (वसिष्ठाः) તારામાં અત્યંત નિવાસ કરનારા ઉપાસકજનો (मतिभिः) સ્તુતિ વાણીઓથી (त्वां वर्धन्ति) તને પોતાની અંદર વિરસિત કરે છે. અધિકારિક સાક્ષાત્ કરે છે. (त्वे) તારો થઈ ગયા પછી (सुषणानि वसु सन्तु) સુખ સંભાજક ધન અધ્યાત્મધન બને. (यूयं स्वस्तिभिः नः सदा पात) તમે કલ્યાણ સાધનોથી અમારી રક્ષા કરો. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे आमच्याजवळ ऐश्वर्य आहे ते सर्व परमात्म्याद्वारे प्रदत्तच आहे. ॥३॥

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