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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1325
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    20

    त्व꣡ꣳ सु꣢ष्वा꣣णो꣡ अद्रि꣢꣯भिर꣣꣬भ्य꣢꣯र्ष꣣ क꣡नि꣢क्रदत् । द्यु꣣म꣢न्त꣣ꣳ शु꣢ष्म꣣मा꣡ भ꣢र ॥१३२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्व꣢म् । सु꣣ष्वाणः꣢ । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । अभि꣢ । अ꣣र्ष । क꣡नि꣢꣯क्रदत् । द्यु꣣म꣡न्त꣢म् । शु꣡ष्म꣢꣯म् । आ । भ꣣र ॥१३२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वꣳ सुष्वाणो अद्रिभिरभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तꣳ शुष्ममा भर ॥१३२५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सुष्वाणः । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । अभि । अर्ष । कनिक्रदत् । द्युमन्तम् । शुष्मम् । आ । भर ॥१३२५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1325
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे पवित्र करनेवाले, रस के भण्डार परमेश्वर ! (अद्रिभिः) प्रणव-जप रूप सिलबट्टों से (सुष्वाणः) अभिषुत किये जाते हुए (त्वम्) आप (कनिक्रदत्) पुनः-पुनः उपदेश करते हुए (अभ्यर्ष) हमें प्राप्त होवो और (द्युमन्तम्) तेज से युक्त (शुष्मम्) आत्म-बल (आ भर) प्रदान करो ॥३॥

    भावार्थ

    उपासक यदि परमात्मा के पास से कर्तव्य-अकर्तव्य का उपदेश, तेजस्विता और आत्मबल नहीं प्राप्त कर पाता तो उसकी उपासना में कोई त्रुटि है, ऐसा समझना चाहिए ॥३॥

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    पदार्थ

    (त्वम्) हे सोम—परमात्मन्! तू (अद्रिभिः सुष्वाणः) स्तुतिकर्ता उपासकों द्वारा उपासित (कनिक्रदत्) साधु प्रवचन करता हुआ (अभि-अर्ष) प्राप्त हो (द्युमन्तं शुष्मम्-आभर) दीप्ति वाले बल को हमारे अन्दर आभरित कर॥३॥

    विशेष

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    विषय

    ज्योतिर्मय शक्ति

    पदार्थ

    'भारद्वाज बार्हस्पत्य' कैसे बनता है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रभु इन शब्दों में देते हैं—१. (त्वं अद्रिभिः) =[अद्रयः आदरणीयाः – नि० ९.८] आदरणीय माता-पिता व आचार्यों से तथा विद्वान् अतिथियों से (सुष्वाण:) = सदा उत्तम प्रेरणा प्राप्त करनेवाला हो । वस्तुत: जिस भी व्यक्ति को माता की उत्तम प्रेरणा प्राप्त होती है वही अपने जीवन को आदर्श ज्ञान व बल से युक्त कर पाता है । २. (कनिक्रदत्) = निरन्तर उस प्रभु का आह्वान करते हुए तू (अभ्यर्ष) = समन्तात् कार्यों में गतिवाला हो । इस प्रकार उत्तम प्रेरणा को प्राप्त होकर प्रभु स्मरणपूर्वक क्रियाओं में लगे रहने से तू ३. (द्युमन्तं शुष्मम्) = ज्योतिर्मय बल को अपने अन्दर (आभर) = समन्तात् भर ले । ज्योति को भरकर तू बार्हस्पत्य बनता है तो शक्ति सञ्चार के द्वारा भरद्वाज होता है ।

    भावार्थ

    बड़ों से प्राप्त प्रेरणा व प्रभु-स्मरण हमें 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' बनानेवाले हों ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (त्वं) तू (अद्रिभिः) विदीर्ण न होने वाले, अभेद्य, दृढ़, तपों या अखण्ड तपस्वियों द्वारा (सुष्वाणः) निष्पादित किया हुआ परिपक्व या अभ्यास किया हुआ (कनिक्रदत्) उत्तम ज्ञान का उपदेश देने हारा होकर (अभि अर्ष) प्रकट हो हमें प्राप्त हो। और (द्युमन्तं) यशोजनक (शुष्मं) बल को (आ भर) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    ‘शुष्ममुत्तममु’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे पवित्रीकर्त्तः रसागार परमेश ! (अद्रिभिः) प्रणवजपरूपैः पेषणपाषाणैः (सुष्वाणः) अभिषूयमाणः (त्वम् कनिक्रदत्) भूयो भूयः उपदिशन् (अभ्यर्ष) अस्मान् प्राप्नुहि, अपि च (द्युमन्तम्) तेजोयुक्तम् (शुष्मम्) आत्मबलम् (आ भर) आहर ॥३॥

    भावार्थः

    उपासकश्चेत् परमात्मनः सकाशात् कर्तव्याकर्तव्योपदेशं तेजस्वितामात्मबलं च न प्राप्नोति तदा तस्योपासनायां काचित् त्रुटिरस्तीति मन्तव्यम् ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, realised through austere penances, Thou, the preacher of knowledge, come unto us. Grant us brightly glorious strength of knowledge !

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    Meaning

    You, stirred by the brave celebrants in yajna and meditation, arise and sanctify loud and bold, pray bring us showers of bliss, highest and most vigorous strength and power for living a life of purity and happy fulfilment. (Rg. 9-67-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (त्वम्) હે સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (अद्रिभिः सुष्वाणः) સ્તુતિકર્તા ઉપાસકો દ્વારા ઉપાસિત (कनिक्रदत्) સુંદર પ્રવચન કરતાં (अभि अर्ष) પ્રાપ્ત થા. (द्युमन्तं शुष्मम् आभर) પ્રકાશમાન બળને અમારી અંદર આભરિત કર.-ભરી દે. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उपासक जर परमात्म्याकडून कर्तव्य-अकर्तव्याचा उपदेश, तेजस्विता व आत्मबल प्राप्त करू शकत नसेल तर त्याच्या उपासनेत काही तरी त्रुटी आहे, कमी आहे असे समजले पाहिजे. ॥३॥

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