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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1339
    ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    36

    बृ꣣ह꣢꣫न्निदि꣣ध्म꣡ ए꣢षां꣣ भू꣡रि꣢ श꣣स्त्रं꣢ पृ꣣थुः꣡ स्वरुः꣢꣯ । ये꣢षा꣣मि꣢न्द्रो꣣ यु꣢वा꣣ स꣡खा꣢ ॥१३३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह꣢न् । इत् । इ꣣ध्मः꣢ । ए꣣षाम् । भू꣡रि꣢꣯ । श꣣स्त्र꣢म् । पृ꣣थुः꣢ । स्व꣡रुः꣢꣯ । ये꣡षा꣢꣯म् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । यु꣡वा꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥१३३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्त्रं पृथुः स्वरुः । येषामिन्द्रो युवा सखा ॥१३३९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    बृहन् । इत् । इध्मः । एषाम् । भूरि । शस्त्रम् । पृथुः । स्वरुः । येषाम् । इन्द्रः । युवा । सखा । स । खा ॥१३३९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1339
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर वही विषय है।

    पदार्थ

    (येषाम्) जिन मनुष्यों का (युवा) युवा (इन्द्रः) वीर परमेश्वर वा वीर राजा (सखा) सहायक हो जाता है, (एषाम्) उनका (बृहन् इत्) महान् ही (इध्मः) प्रताप, (भूरि) बहुत (शस्त्रम्) स्तोत्र वा शस्त्रास्त्र और (पृथुः) विशाल (स्वरुः) यज्ञ होता है ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के उपासक तथा श्रेष्ठ राजा को राजसिंहासन पर बैठानेवाले लोग यशस्वी, विजयी यज्ञपरायण बन जाते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (येषां युवासखा-इन्द्रः) जिन उपासकों का सदा अजर—बलवान् ऐश्वर्यवान् परमात्मा साथी हो गया (एषाम्) इनका—उनका (बृहन्-इत्-इध्मः) महान् तेज (भूरि शस्त्रम्) बहुत७ स्तुतिवाणी८ (पृथुः स्वरुः) प्रथित अचनाकर्म९ होता है॥२॥

    विशेष

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    विषय

    ‘ज्ञान, स्तवन, त्याग'

    पदार्थ

    (येषाम्) = जिनका (इन्द्रः) = सब ऐश्वर्यों का प्रभु और सब शत्रुओं का विदारण करनेवाला परमात्मा (युवा) = शुभ से संपृक्त करनेवाला और अशुभ से पृथक् करनेवाला (सखा) = मित्र है, १. (एषाम्) = इनकी (इध्मः) = ज्ञान की दीप्ति (इत्)= सचमुच (बृहन्) = विशाल होती है अथवा सदा वृद्धि को प्राप्त होनेवाली होती है। २. इनका (शस्त्रम्) = [स्तोत्र] प्रभु-स्तवन (भूरि) = [भृ=धारण-पोषण] धारण व पोषण करनेवाला होता है। यह प्रभु का स्तवन करता है और इससे उसे शक्ति प्राप्त होती है । ३. इनका (स्वरु:) = त्याग [Sacrifice] (पृथु:) = विशाल होता है। प्रभु की मित्रता प्राप्त होने पर अन्य सब वस्तुएँ इतनी तुच्छ हो जाती हैं कि वह इनमें फँसता नहीं, इनके त्याग में आनन्द का अनुभव करता है । इस प्रकार प्रभु की मित्रता इसमें ‘ज्ञान, स्तवन व त्याग' की भावना उत्पन्न करके इसे 'त्रिशोक' बना देती है । यह ज्ञान, स्तुति व त्याग से संसार में चमकता है ।

    भावार्थ

    मैं ज्ञानी बनूँ, प्रभु का स्तोता बनूँ, और त्याग की वृत्तिवाला होऊँ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (युवा) बलवान् (इन्द्रः) परमेश्वर या आत्मा (येषां) जिनका (सखा) मित्र है (एषां) इनका (इध्मः) तेज (बृहत् इत्) बहुत ही बड़ा है और (शस्त्रं) उनकी स्तुति, महिमा गान करने वाली वाणी भी (भूरि) बहुत है और (स्वरुः) उनका स्वर या प्राण बल या तेज भी (पृथुः) बड़ा है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः स एव विषय उच्यते।

    पदार्थः

    (येषाम्) जनानाम् (युवा) तरुणः (इन्द्रः) वीरः परमेश्वरो वीरो नृपतिर्वा (सखा) सहायको जायते (एषाम्) तेषाम् एतेषाम् (बृहन् इत्) महान् एव (इध्मः) प्रतापः, (भूरि) प्रचुरम् (शस्त्रम्) स्तोत्रम् आयुधं वा, किञ्च (पृथुः) विशालः (स्वरुः) यूपः, यूपोपलक्षितो यज्ञः इत्यर्थः, भवति ॥२॥

    भावार्थः

    परमेश्वरोपासकाः श्रेष्ठनृपाभिषेक्तारश्च यशस्विनो विजयिनो यज्ञपरायणाश्च जायन्ते ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Great is their glory, much their laud, deep is their force of breath, whose friend is God ever Young.

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    Meaning

    Great is their fuel and fire, profuse their praise and song of adoration, expansive their yajna and high their ensign whose friend is Indra, youthful soul, their ruler and defender. (Rg. 8-45-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (येषां युवासखा इन्द्रः) ઉપાસકોનો સદા અજર-બળવાન ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા સાથી બની ગયો (एषाम्) તેનું (बृहन् इत् इध्मः) મહાન તેજ (भूरि शस्त्रम्) બહુજ સ્તુતિવાણી (पृथुः स्वरुः) વિસ્તૃત અર્ચનાકર્મ બને છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचे उपासक व श्रेष्ठ राजाला राजसिंहासनावर बसविणारे लोक यशस्वी, विजयी, यज्ञपरायण बनतात. ॥२॥

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