Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1353
    ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - आदित्यः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    55

    उ꣣त꣢ स्व꣣रा꣢जो꣣ अ꣡दि꣢ति꣣र꣡द꣢ब्धस्य व्र꣣त꣢स्य꣣ ये꣢ । म꣣हो꣡ राजा꣢꣯न ईशते ॥१३५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ꣣त꣢ । स्व꣣रा꣡जः꣢ । स्व꣣ । रा꣡जः꣢꣯ । अ꣡दि꣢꣯तिः । अ । दि꣣तिः । अ꣡द꣢꣯ब्धस्य । अ । द꣣ब्धस्य । व्रत꣡स्य꣢ । ये । म꣣हः꣢ । रा꣡जा꣢꣯नः । ई꣣शते ॥१३५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्वराजो अदितिरदब्धस्य व्रतस्य ये । महो राजान ईशते ॥१३५३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत । स्वराजः । स्व । राजः । अदितिः । अ । दितिः । अदब्धस्य । अ । दब्धस्य । व्रतस्य । ये । महः । राजानः । ईशते ॥१३५३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1353
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में जगन्माता अदिति और विद्वान् जनों का वर्णन है।

    पदार्थ

    (उत) और (स्वराजः) स्वराज्यसम्पन्न उपासक विद्वान् जन तथा (अदितिः) अखण्डनीय जगन्माता, (ये) जो (अदब्धस्य) अटूट (व्रतस्य) संकल्प तथा कर्म के (राजानः) राजा हैं, वे (महः) महान् ऐश्वर्य के (ईशते) स्वामी होते हैं अर्थात् महान् ऐश्वर्य देने की क्षमता रखते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    जो लोग परमात्मा की तथा चरित्रवान् विद्वानों की सङ्गति करते, हैं वे परमैश्वर्यवान् हो जाते हैं ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (अदितिः) ‘अदितेः’ अखण्ड सुख सम्पत्ति—मुक्ति का (ये स्वराजः) जो स्वयं राजा (उत) अपि—और (अदब्धस्य व्रतस्य) अहिंसनीय—अबाध्य कर्म का (महः राजान ईशते) महान् राजा होकर शासन करता है॥३॥

    विशेष

    <br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    संयम तथा व्रत

    पदार्थ

    (उत) = और १. (ये) = जो (स्वराजः) = अपना शासन करनेवाले होते हैं, अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखते हैं, अपने जीवन को सूर्य-चन्द्रमा की भाँति सुमर्यादित [well regulated] करते हैं २. और (अदब्धस्य व्रतस्य) = अहिंसित-अखण्डित व्रत के (अदितिः) = न खण्डन करनेवाले होते हैं, अर्थात् व्रत को कभी टूटने नहीं देते। ये (राजानः) = देदीप्यमान, मर्यादित जीवनवाले व्यक्ति (महः) = तेज का (ईशते) = ईशन करते हैं । १ वशिष्ठ तेजस्वी है, क्योंकि वह अपने पर काबू रखनेवाला है और उसका जीवन व्रती है । 
     

    भावार्थ

    हम जितेन्द्रिय तथा व्रती बनें जिससे तेजस्विता के ईश हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    missing

    भावार्थ

    (उत्) और (यः) जो (अदितिः) अखण्डित चरित्र वाले (अदब्धस्य) अविनाशी, सुसम्पादित (व्रतस्य) व्रत, कर्तव्य कर्म के कारण (स्वराजः) स्वतः अपने अन्तरात्मा के बल से प्रकाशित होने वाले हैं। वे ही (महः राजानः) बड़े ऐश्वर्यशील होकर (ईशते) सब पर शासन करते हैं। व्रत का पालक सदाचारी दढ़ पुरुष ही महान् वशी हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ६ मेधातिथिः काण्वः। १० वसिष्ठः। ३ प्रगाथः काण्वः। ४ पराशरः। ५ प्रगाथो घौरः काण्वो वा। ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ८ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा। ९ हिरण्यस्तूपः। ११ सार्पराज्ञी। देवता—१ इध्मः समिद्धो वाग्निः तनूनपात् नराशंसः इन्द्रश्चः क्रमेण। २ आदित्याः। ३, ५, ६ इन्द्रः। ४,७-९ पवमानः सोमः। १० अग्निः। ११ सार्पराज्ञी ॥ छन्दः-३-४, ११ गायत्री। ४ त्रिष्टुप। ५ बृहती। ६ प्रागाथं। ७ अनुष्टुप्। ४ द्विपदा पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ स्वरः—१,३, ११ षड्जः। ४ धैवतः। ५, ९ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८ पञ्चमः। ९, १० निषादः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ जगन्माता अदितिः विद्वांसो जनाश्च वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (उत) अपि च (स्वराजः) स्वराज्य-संपन्नाः उपासकाः विद्वांसः (अदितिः) अखण्डनीया जगन्माता च (ये अदब्धस्य) अखण्डितस्य (व्रतस्य) संकल्पस्य कर्मणश्च (राजानः) सम्राजः सन्ति ते (महः) महतः ऐश्वर्यस्य (ईशते) ईश्वरा भवन्ति, महदैश्वर्यं प्रदातुं क्षमन्ते इत्यर्थः। [महः इत्यत्र ‘अधीगर्थदयेषां कर्मणि’। अ० २।३।५२ इति कर्मणि षष्ठी] ॥३॥

    भावार्थः

    ये परमात्मनश्चरित्रवतां विदुषां च संगतिं कुर्वन्ति ते परमैश्वर्यवन्तो जायन्ते ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those persons of spotless character, who shine through their soul force, by observing inviolate vow, become fit to rule over others through their supremacy.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    And the self-refulgent Adityas, self-governing and great imperishable ruling powers of nature, and mother Infinity, who observe and maintain the great law of existence and disciplines of life, may guide us and protect us over the paths of progress. (Rg. 7-66-6)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अदितिः) અખંડ સુખ સંપત્તિ-મુક્તિનો (ये स्वराजः) જે સ્વયં રાજા (उत) અને (अदब्धस्य व्रतस्य) અહિંસનીય-અબાધ્યકર્મનો (महः राजान् ईशते) મહાન રાજા બનીને શાસન કરે છે. (૩)
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक परमेश्वराची व चरित्रवान विद्वानांची संगती करतात, ते परम ऐश्वर्यवान बनतात. ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top