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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1398
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
59
ब्र꣡ह्म꣢ प्र꣣जा꣢व꣣दा꣡ भ꣢र꣣ जा꣡त꣢वेदो꣣ वि꣡च꣢र्षणे । अ꣢ग्ने꣣ य꣢द्दी꣣द꣡य꣢द्दि꣣वि꣢ ॥१३९८॥
स्वर सहित पद पाठब्र꣡ह्म꣢꣯ । प्र꣣जा꣡व꣢त् । प्र꣡ । जा꣡व꣢꣯त् । आ । भ꣣र । जा꣡त꣢꣯वेदः । जा꣡त꣢꣯ । वे꣡दः । वि꣡च꣢꣯र्षणे । वि । च꣣र्षणे । अ꣡ग्ने꣢꣯ । यत् । दी꣣द꣡य꣢त् । दि꣣वि꣢ ॥१३९८॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्म प्रजावदा भर जातवेदो विचर्षणे । अग्ने यद्दीदयद्दिवि ॥१३९८॥
स्वर रहित पद पाठ
ब्रह्म । प्रजावत् । प्र । जावत् । आ । भर । जातवेदः । जात । वेदः । विचर्षणे । वि । चर्षणे । अग्ने । यत् । दीदयत् । दिवि ॥१३९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1398
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में भी आचार्य का ही विषय है।
पदार्थ
हे (विचर्षणे) शिष्यों का हित-अहित देखनेवाले, (जातवेदः) उत्पन्न पदार्थों वा विद्याओं के ज्ञाता (अग्ने) आचार्यवर ! आप, (प्रजावत्) उत्पन्न सृष्टि के विज्ञान से युक्त (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञान को (आभर) हमें प्रदान करो, (यत्) जो (दिवि) हमारे तेजस्वी आत्मा में (दीदयत्) चमके ॥३॥
भावार्थ
गुरु लोग विद्यार्थियों को सृष्टिविज्ञान, पदार्थविज्ञान, भूगोल-खगोल आदि के विज्ञान और शिल्पविज्ञान के साथ ब्रह्मविज्ञान भी सिखाएँ ॥३॥
पदार्थ
(विचर्षणे जातवेदः-अग्ने) हे विशेषद्रष्टा—विश्वद्रष्टा३ उत्पन्नमात्र के ज्ञाता प्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तू (प्रजावत्-ब्रह्म-आभर) मति वाले—बुद्धि वाले४ मन्त्रमय वेद को५ आभरित कर (यत्-दिवि दीदयत्) जो द्योतनात्मक तेरे स्वरूप में प्रकाशित हो रहा है६॥३॥
विशेष
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विषय
ज्ञानी सन्तान की कामना
पदार्थ
पिछले मन्त्र में उत्तम सन्तान का उल्लेख था । उसी प्रसङ्ग में कहते हैं कि हे प्रभो! यह सब तो आपकी कृपा से होता है । हे (जातवेदः) = सर्वज्ञ ! (विचर्षणे) = विशेषरूप से सबका ध्यान [चर्षणिः पश्यतिकर्मा—to look after] करनेवाले (अग्ने) = सबकी उन्नति-साधक प्रभो ! (प्रजावत्) = प्रजा की भाँति (ब्रह्म) = ज्ञान को भी तो (आभर) = समन्तात् हमारे अन्दर भरने का ध्यान कीजिए। आपने हमें सन्तान प्राप्त कराई है तो ज्ञान भी प्राप्त कराइए । मूर्ख सन्तान से तो 'अजात और मृत' सन्तानें ही अच्छी हैं। सन्तान न हुई हो अथवा होकर मर गयी हो तो उतना दुःख नहीं होता जितना कि मूर्खसन्तान से। पहली दो एक बार ही दुःख देनेवाली होती हैं— मूर्ख सन्तान तो पग-पग पर दुःख का कारण बनती है, इसलिए हे प्रभो ! हमें तो वही सन्तान दीजिए, (यत्) = जो (दिवि) = ज्ञान के प्रकाश में (दीदयत्) = खूब चमकनेवाली हो और (दिवि) = विद्वानों में (दीदयत्) = शोभा पाए । संक्षेप में हमारी सन्तान ‘भरद्वाज' – बल- सम्पन्न होती हुई 'बार्हस्पत्य' – ऊँचे ज्ञानवाली हो ।
भावार्थ
प्रभुकृपा से हम ज्ञानी सन्तान प्राप्त करें ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (जातवेदः) समस्त संसार के उत्पन्न पदार्थों को जानने हारे ! (विचर्षणे) सबके द्रष्टः ! आप हमें (प्रजावद्) पुत्र आदि सहित (ब्रह्म) ऐसे अन्न और ज्ञान को (आ भर) प्राप्त कराइये (यत्) जो (दिवि) दिव्यगुण से युक्त ज्ञानमय उत्कृष्ट लोक में भी (दीदयत्) प्रकाशित रहे। अर्थात् ऐसा अन्न और ज्ञान प्राप्त कराओ जिसका परलोक और विद्वानों में भी आदर हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१ गोतमो राहूगणः, वसिष्ठस्तृतीयस्याः। २, ७ वीतहव्यो भरद्वाजो वा बार्हस्पत्यः। ३ प्रजापतिः। ४, १३ सोभरिः काण्वः। ५ मेधातिथिमेध्यातिथी काण्वौ। ६ ऋजिष्वोर्ध्वसद्मा च क्रमेण। ८, ११ वसिष्ठः। ९ तिरश्वीः। १० सुतंभर आत्रेयः। १२, १९ नृमेघपुरुमेधौ। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १५ नोधाः। १६ मेध्यातिथिमेधातिथिर्वा कण्वः। १७ रेणुर्वैश्वामित्रः। १८ कुत्सः। २० आगस्त्यः॥ देवता—१, २, ८, १०, १३, १४ अग्निः। ३, ६, ८, ११, १५, १७, १८ पवमानः सोमः। ४, ५, ९, १२, १६, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—१, २, ७, १०, १४ गायत्री। ३, ९ अनुष्टुप्। ४, १२, १३, १६ प्रागाथं। ५ बृहती। ६ ककुप् सतोबृहती च क्रमेण। ८, ११, १५, १० त्रिष्टुप्। १७ जगती। १६ अनुष्टुभौ बृहती च क्रमेण। २९ बृहती अनुष्टुभौ क्रमेण॥ स्वरः—१, २, ७, १०, १४ षड्जः। ३, ९, १०, गान्धारः। ४-६, १२, १३, १६, २० मध्यमः। ८, ११, १५, १८ धैवतः। १७ निषादः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरप्याचार्यविषयो वर्ण्यते।
पदार्थः
हे (विचर्षणे) शिष्याणां हिताहितयोर्द्रष्टः, (जातवेदः) उत्पन्नानां पदार्थानां विद्यानां वा वेत्तः (अग्ने) आचार्यवर ! त्वम् (प्रजावत्)उत्पन्नसृष्टिविज्ञानसहितम् (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानम् (आभर) अस्मभ्यम् आहर, प्रदेहि, (यत् दिवि) द्योतनात्मके अस्माकमात्मनि (दीदयत्) दीप्येत ॥३॥२
भावार्थः
गुरवो विद्यार्थिनः सृष्टिविज्ञानेन पदार्थविज्ञानेन भूगोलखगोलादिविज्ञानेन शिल्पविज्ञानेन च सह ब्रह्मविज्ञानमपि शिक्षयेयुः ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the Knower of all created objects in the universe, the Seer of all, grant us knowledge along with progeny that is valued by the learned !
Meaning
Agni, lord all knowing, all watching, who shine in the light of the sun, bless us with the food of life that sustains the children of the earth. (Rg. 6-16-36)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (विचर्षणे जातवेदः अग्ने) હે વિશેષ દ્રષ્ટા-વિશ્વદ્રષ્ટા ઉત્પન્ન માત્રના જ્ઞાતા પ્રકાશમાન પરમાત્મન્ ! તું (प्रजावत् ब्रह्म आभर) મતિવાળા-બુદ્ધિવાળા મંત્રમય વેદને આભરિત કર-ભરી દે, (यत् दिवि दीदयत्) જે પ્રકાશાત્મક તારા સ્વરૂપમાં પ્રકાશિત થઈ રહેલ છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
गुरूंनी विद्यार्थ्यांना सृष्टि विज्ञान, पदार्थविज्ञान व शिल्पविज्ञानाबरोबर ब्रह्मविज्ञानही शिकवावे. ॥३॥
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