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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 140
ऋषिः - श्रुतकक्षः आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
33
बो꣡ध꣢न्मना꣣ इ꣡द꣢स्तु नो वृत्र꣣हा꣡ भूर्या꣢꣯सुतिः । शृ꣣णो꣡तु꣢ श꣣क्र꣢ आ꣣शि꣡ष꣢म् ॥१४०॥
स्वर सहित पद पाठबो꣡ध꣢꣯न्मनाः । बो꣡ध꣢꣯त् । म꣣नाः । इ꣢त् । अ꣣स्तु । नः । वृत्रहा꣢ । वृ꣣त्र । हा꣢ । भू꣡र्या꣢꣯सुतिः । भू꣡रि꣢꣯ । आ꣣सुतिः । शृणो꣡तु꣢ । श꣣क्रः꣢ । आ꣣शि꣡ष꣢म् । आ꣣ । शि꣡ष꣢꣯म् ॥१४०॥
स्वर रहित मन्त्र
बोधन्मना इदस्तु नो वृत्रहा भूर्यासुतिः । शृणोतु शक्र आशिषम् ॥१४०॥
स्वर रहित पद पाठ
बोधन्मनाः । बोधत् । मनाः । इत् । अस्तु । नः । वृत्रहा । वृत्र । हा । भूर्यासुतिः । भूरि । आसुतिः । शृणोतु । शक्रः । आशिषम् । आ । शिषम् ॥१४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 140
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में यह कहा है कि परमेश्वर हमारी प्रार्थना को सुने।
पदार्थ
(वृत्रहा) पापों का विनाशक (भूर्यासुतिः) बहुत रसमय इन्द्र परमेश्वर (नः) हमारे लिए (बोधन्मनाः) मन को प्रबुद्ध करनेवाला (इत्) ही (अस्तु) होवे। वह (शक्रः) शक्तिशाली परमेश्वर (आशिषम्) हमारी महत्त्वाकांक्षा को (शृणोतु) सुने, पूर्ण करे ॥६॥ इस मन्त्र में ‘वृत्रहा’ और ‘शक्रः’ शब्द क्योंकि इन्द्र अर्थ में प्रसिद्धि पा चुके हैं, अतः पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार है। यौगिक अर्थ लेने पर पुनरुक्ति का परिहार हो जाता है। ‘शृणोतु’ में श्रु धातु की पूर्ण करने अर्थ में लक्षणा है ॥६॥
भावार्थ
जो परमात्मा दोषों का हन्ता, अधर्मों का पराजेता, पापों का विनाशक, आनन्दरस का सागर और सर्वशक्तिमान् है, वह हमारे मन को प्रबुद्ध करके हमारी दीर्घायुष्य, समृद्धि, विजय, मोक्ष आदि की महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करे ॥६॥
पदार्थ
(बोधन्मनाः) “बोधन्मनाः-बोधते जानाति मनोभावं यः स छान्दसः समासः” मन के भाव को जानने वाला (वृत्रहा) पापनाशक (भूर्य्यासुतिः) बहुत प्रकार की आनन्द धारा जिससे प्राप्त होती है ऐसा परमात्मा (इत्) अवश्य (नः-अस्तु) हमारा ही—है (शक्रः) वह शक्तिमान् परमात्मा (आशिषं शृणोतु) स्तुति प्रार्थना को सुने—सुनता है।
भावार्थ
परमात्मा हम उपासकों की पापवृत्तियों को नष्ट करता मनोभाव को जानता, बहुत प्रकार की आनन्द धाराओं को प्राप्त कराता और हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है—स्वीकार करता है॥६॥
विशेष
ऋषिः—श्रुतकक्षः (अध्यात्मकक्ष सुना है जिसने ऐसा कुशल उपासक)॥<br>
विषय
श्रुतकक्ष आङ्गिरस का जीवन
पदार्थ
इस मन्त्र का ऋषि 'श्रुतकक्ष' = ज्ञानरूपी शरणस्थानवाला 'आंगिरस' = रसमय अङ्गोंवाला अर्थात् शक्तिशाली अङ्गोवाला है। वह प्रार्थना करता है कि (नः) = हमारे लिए (शक्रः)=सर्वशक्तिमान् प्रभु (इत्)=निश्चय से (बोधन्मना:) = हमारे मनों को सुबोध करनेवाला (अस्तु) = हो । हमारे मस्तिष्करूपी द्युलोक में ज्ञान का सूर्य चमके। यह चमकता हुआ ज्ञान का सूर्य (वृत्रहा) = वृत्र का हनन करनेवाला हो। हमारे हृदयान्तरिक्ष में कामादि वासनाएँ उत्पन्न होकर ज्ञान को आवृत्त कर देती हैं। ज्ञान को आवृत्त करने के कारण ही इन्हें 'वृत्र' नाम दिया गया है। जैसे आकाश में उदय होकर प्रचण्ड सूर्य अन्तरिक्षस्थ मेघों को छिन्न-भिन्न कर देता है, उसी प्रकार यह ज्ञानरूपी सूर्य वासनारूप वृत्र का विनाश करनेवाला होता है। एवं, जब हमारा विज्ञानमयकोश ज्ञान से जगमगाता है तब वासना - विनाश होने से हमारा मन निर्मल हो उठता है। इस नैर्मल्य के परिणामस्वरूप (भूर्यासुतिः) = हमारा प्राणमयकोश अत्यधिक जीवनी शक्तिवाला होता है [भूरि- बहुत, आसुति:=enlivenment] । वासना ही शक्ति के अपव्यय का कारण हुआ करती है; वासना गई और शक्ति का कोश पूर्ण हुआ।
शक्ति के मद में हम औरों को घृणा से देखते हुए कहीं अपशब्दों का प्रयोग न करने लग जाएँ, अतः मन्त्र में आराधना है कि वह सर्वशक्तिमान् प्रभु (आशिषम्) = हमसे बोले जाते हुए शुभ शब्दों को ही (शृणोतु) = सुने, अर्थात् हमारी वाणी से कभी अशुभ शब्दों का उच्चारण न हो। ‘आशी:' का अर्थ है——the act of bestowing blesings on others' =औरों के लिए आशीर्वादात्मक शब्द बोलना, अर्थात् हम शक्ति प्राप्त करके शुभ शब्दों का प्रयोग करें। 'श्रुतकक्ष आङ्गिरस' बनने का यही मार्ग है।
भावार्थ
हमारा जीवन, 'ज्ञान, नैर्मल्य, शक्ति व शुभ वाणी' से अलंकृत हो ।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = ( नः ) = हमारा ( शक्रः ) = शक्तिशाली आत्मा ( वृत्रहा ) = तामस आवरणों का नाश करने वाला ( भूर्यासुतिः ) = अति अधिक समाहित वृत्ति वाला होकर, ( बोधन्मनाः ) = ज्ञानशील चित्त वाला ( इत् ) = ही ( अस्तु ) = हो। और वह ( आशिषम् ) = आशीर्वाद, उत्तम कामना को ( शृणोतु ) = सुने ।
टिप्पणी
१४० - 'बोधिन्मना' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - श्रुतकक्षः ।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
परमेश्वरोऽस्माकं प्रार्थनां शृणुयादित्याह।
पदार्थः
(वृत्रहा) पाप्मनां हन्ता। पाप्मा वै वृत्रः। श० ११।१।५।७। (भूर्यासुतिः२) बहुरसः रसो वै सः। तै० उ० २।७। आसूयन्ते निश्च्योत्यन्ते इति आसुतयः रसाः, षुञ् अभिषवे। इन्द्रः परमेश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (बोधन्मनाः३) बोधत् प्रबुध्यत् मनो यस्मात् सः, मनसः प्रबोधदायक इत्यर्थः। (इत्) एव (अस्तु) भवतु। सः (शक्रः) शक्तिमान् परमेश्वरः। शक्लृ शक्तौ, स्फायितञ्चिवञ्चिशकि०। उ० २।१३ इति रक् प्रत्ययः। (आशिषम्) अस्माकं महत्त्वाकाङ्क्षाम् (शृणोतु) आकर्णयतु, पूरयतु ॥६॥ अत्र वृत्रहा, शक्रः इत्यनयोरिन्द्रार्थे प्रसिद्धत्वात् पुनरुक्तवदाभासोऽलङ्कारः, यौगिकार्थग्रहणेन च पुनरुक्तेः परिहारः। शृणोतु इत्यस्य च पूरणे लक्षणा ॥६॥
भावार्थः
यः परमात्मा दोषाणां हन्ता, अधर्माणां निरस्ता, पापानां विनाशकः, आनन्दरसस्य सागरः, सर्वशक्तिमाँश्च विद्यते सोऽस्माकं मनः प्रबोध्य दीर्घायुष्य-समृद्धि-विजय-मोक्षादीनां महत्त्वाकांक्षाः पूरयेत्।
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।९३।१८, ऋषिः सुकक्षः। बोधिन्मना इति पाठः। २. भूरि आसुतिर्यस्य स भूर्यासुतिः बहुरस इत्यर्थः—इति वि०। भूर्यासुतिः बह्वन्नसोमपान इत्यर्थः—इति भ०। बहुषु देवेषु इन्द्रार्थं सोमा आसूयन्ते अभिषूयन्ते इति तादृशः, यद्वा बहूनि सोमादिहवींषि इन्द्रार्थम् आसूयन्ते हूयन्त इति तादृशः—इति सा०। ३. बुध्यति मनो यस्य बोधन्मनाः—इति वि०। बुध्यमानचित्तः स्तोमावधारणपरचित्तः—इति भ०। बुध अवगमने, औणादिकोऽत् प्रत्ययः। यस्य मनः स्तोतॄणामभिमतं बुध्यते जानातीति तथोक्तः—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
May the Omnipotent God, the Dispeller of ignorance, the Embodiment of infinite joy, listen to our prayer, and grant wisdom to our mind.
Meaning
May Indra, lord of universal intelligence, destroyer of darkness, commander of universal success and joy, we pray, know our mind and listen to us for our hearts desire for success. (Rg. 8-93-18)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (बोधन्मनाः) મનના ભાવને જાણનાર (वृत्रहा) પાપનાશક (भूर्य्यासुतिः) અનેક પ્રકારની આનંદની ધારાઓને પ્રાપ્ત કરાવનાર પરમાત્મા (इत्) અવશ્ય (नः अस्तु) (शक्रः) અમારા જ છે. (आशिषं श्रृणोतु) તે શક્તિમાન પરમાત્મા સ્તુતિ , પ્રાર્થનાને સાંભળે છે. (૬)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મા અમારી ઉપાસકોની પાપવૃતિઓને નષ્ટ કરીને , મનોભાવને જાણીને , અનેક પ્રકારની આનંદધારાઓને પ્રાપ્ત કરાવીને તથા અમારી પ્રાર્થનાઓને સાંભળે છે , સ્વીકાર કરે છે. (૬)
उर्दू (1)
Mazmoon
ہماری پرارتھناؤں کو سُنیں!
Lafzi Maana
(شکر) شکتی مان بھگوان (نہ بودھن منہ استُو) ہمارے منوں کو ادھیاتمک گیان روحانی علوم سے روشن کرے (اِت ورترہا) جس سے ہماری بُرئیاں نشٹ ہوں۔ (بھُوری آسُوتی) پربھُو تک رسائی کے لئے ہم بہت زیادہ شردھا بھگتی اور گیان کی بھاوناؤں سے بھر گئے ہیں، وہ (ہماری آشِشم شِرنو تُو) منگل کامناؤں اور پرارتھناؤں کو کِرپا کر کے سُنیئے!
Tashree
ملتجی ہیں گیان بھگتی کے بھرے ہردیوں سے ہم، چُھوٹ جائیں بَدیوں سے فریاد سُن لیں اگر برہم۔
मराठी (2)
भावार्थ
जो परमात्मा दोषांचा हन्ता, अधर्माचा पराजेता, पापांचा विनाशक, आनंदरसाचा सागर व सर्वशक्तिमान आहे, त्याने आमच्या मनाला प्रबुद्ध करून आमचे दीर्घायुष्य, समृद्धी, विजय, मोक्ष इत्यादींच्या महत्त्वाकांक्षा पूर्ण कराव्यात ॥६॥
विषय
पुढील मंत्रात म्हटले आहे की परमेश्वराने आमची प्रार्थना ऐकावी -
शब्दार्थ
(वृत्रहा) पापनाशक आणि (भूर्यासुतिः) अत्यंत रसमय तो इन्द्र परमेश्वर (नः) आम्हासाठी (बोधन्मनाः) मन प्रबुद्ध करणारा (इत्) च (अस्तु) होवो. तो (शक्रः) शक्तिशाली परमेश्वर (आशिषम्) आमची महत्त्वाकांक्षा (शृणोतु) ऐको, पूर्ण करो ।। ६।।
भावार्थ
जो परमेश्वर दोषहारक, अधमपरजिता, पापविनाशक, आनंदसागर आणि सर्व शक्तिमान आहे, तो आमच्या मनास प्रबुद्ध करून दीर्घायुष्य, समृद्धी, विजय, मोक्ष आदी आमच्या ज्या महत्त्वाकांक्षा आहेत, त्या पूर्ण करोत. ।। ६।।
विशेष
या मंत्रात ‘वृत्रहा’ आणि ‘शक्र’ हे दोन शब्द इन्द्र वाचक शब्द म्हणून प्रसिद्ध आहेत. म्हणून येथे पुनरुक्त वदाभास अलंकार आहे. शब्दांचा यौगिक अर्थ घेतल्यामुळे पुनरुक्तीचा परिहार होतो. ङ्गशृणोतुफमध्ये श्रु धातू पूर्ण करण्याविषयी वापरलेला असल्यामुळे येथे लक्षणा शब्दश्कती आहे, हे जाणावे. (म्हणजे येथे ‘श्रु’ धातू श्रवण करणे या अर्थात वापरलेला नसल्यामुळे लक्षणा शक्तीद्वारे त्याचा अर्थ ‘पूर्ण करणे’ सा आहे.)।। ६।।
तमिल (1)
Word Meaning
விருத்திரனைக் கொல்லுபவன் ஹவிஷ்களுடனாய் மலர்ந்த மனமுடன் எங்களுக்கு (காப்ப வனாகட்டும்.) சத்துரு சம்ஹார [1]இந்திரன் எங்கள் துதியை செவிகொடுக்கட்டும்.
FootNotes
[1].இந்திரன் - சக்கரவன்மையுள்ளவன்
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