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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1524
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
27
अ꣡वा꣢ नो अग्न ऊ꣣ति꣡भि꣢र्गाय꣣त्र꣢स्य꣣ प्र꣡भ꣢र्मणि । वि꣡श्वा꣢सु धी꣣षु꣡ व꣢न्द्य ॥१५२४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । अग्ने । ऊति꣡भिः꣢ । गा꣣यत्र꣡स्य꣢ । प्र꣡भ꣢꣯र्मणि । प्र । भ꣣र्मणि । वि꣡श्वा꣢꣯सु । धी꣣षु꣢ । व꣣न्द्य ॥१५२४॥
स्वर रहित मन्त्र
अवा नो अग्न ऊतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि । विश्वासु धीषु वन्द्य ॥१५२४॥
स्वर रहित पद पाठ
अव । नः । अग्ने । ऊतिभिः । गायत्रस्य । प्रभर्मणि । प्र । भर्मणि । विश्वासु । धीषु । वन्द्य ॥१५२४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1524
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
प्रथम मन्त्र में जगदीश्वर से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (वन्द्य) वन्दनीय (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! आप (गायत्रस्य) गायत्री आदि छन्दों से युक्त वेदज्ञान के (प्रभर्मणि) प्रकृष्ट रूप से ग्रहण करने में और (विश्वासु धीषु) सब कर्मों में (ऊतिभिः) अपनी रक्षाओं के साथ (नः) हमें (अव) प्राप्त होओ ॥१॥
भावार्थ
ज्ञानप्राप्ति के समय और कर्म करते समय जो जगदीश्वर को नहीं भूलते, वे श्रेष्ठ ज्ञान के अनुकूल श्रेष्ठ कर्म ही सदा करते हैं ॥१॥
पदार्थ
(विश्वासु धीषु वन्द्य) समस्त प्रज्ञानों में अध्यात्मध्यानों में वन्दनीय देव (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू (गायत्रस्य प्रभर्मणि) स्तुतिकर्म के३ प्रकृष्ट भरण, समर्पण या अनुष्ठान में (ऊतिभिः-नः-अव) रक्षाविधियों से हमारी रक्षा कर॥१॥
विशेष
ऋषिः—गोतमः (परमात्मा में अत्यन्त गति प्रवृत्ति वाला)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥<br>
विषय
स्वस्थ शरीर-सुरक्षित मन
पदार्थ
हे (अग्ने) = मार्ग-दर्शक प्रभो ! (विश्वासु धीषु वन्द्य) = सब प्रज्ञानों व कर्मों में वन्दनीय आप (नः) = हमें (गायत्रस्य) = प्राणों के [प्राणो गायत्रम्-ताण्ड्य ७.१.९] (प्रभर्मणि) = [a house] घर – इस शरीर में (ऊतिभिः) = रक्षणों के द्वारा (अव) = हमारी रक्षा कीजिए । अथवा (गायत्रस्य) = स्तुति के [नि० १.८] (प्रभर्मणि) = पोषण में आप हमारी रक्षा कीजिए ।
प्रभु अग्नि हैं—सदा अग्रेणी हैं— मार्गदर्शक हैं। हमें सब ज्ञानों व कर्मों में उस प्रभु की वन्दना करनी चाहिए। खाते-पीते, सोते-जागते, उठते-बैठते उस प्रभु का स्मरण तो करना ही चाहिए, साथ ही ज्ञानमात्र व कर्ममात्र के साफल्य को उस प्रभु का ही समझना चाहिए। उस प्रभु की कृपा से हमारा यह शरीर प्राणों का घर बनता है और परिणामतः सुरक्षित होकर हम रोगों का शिकार नहीं होते । स्तुति के पोषण से हमारा मन वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता । एवं, प्राणपोषण से शरीर तथा स्तुतिपोषण से मन क्रमशः रोगों व वासनाओं से बचे रहते हैं। सब इन्द्रियों के स्वस्थ व शक्तिशाली होने से हम 'गोतम' बनते हैं और वासनाओं के त्याग के कारण हम 'राहूगण' होते हैं ।
भावार्थ
सदा स्तुत्य प्रभु की कृपा से हमारा शरीर व मन स्वस्थ व सुरक्षित हो ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (अग्ने) परमात्मन् हे (वन्द्य) वन्दना करने योग्य परमात्मन् ! आप (गायत्रस्य) प्राणों के त्राण करने के साधन शरीर में, (प्रभर्मणि) उत्तम रीति से भरण पोषण करने के कार्य में (ऊतिभिः) अपने रक्षा साधनों से (नः) हमारी (विश्वासु) समस्त (धीषु) कार्यों से (अव) रक्षा कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ जगदीश्वरं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (वन्द्य) वन्दनीय (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! त्वम् (गायत्रस्य) गायत्र्यादिच्छन्दोमयस्य वेदज्ञानस्य (प्रभर्मणि) प्रकर्षेण हरणे ग्रहणे, (विश्वासु धीषु) सर्वेषु कर्मसु च (ऊतिभिः) स्वकीयैः रक्षणैः सह (नः) अस्मान् (अव) प्राप्नुहि ॥१॥२
भावार्थः
ज्ञानावाप्तिकाले कर्मकाले च ये जगदीश्वरं न विस्मरन्ति ते श्रेष्ठज्ञानानुकूलं श्रेष्ठं कर्मैव सदा कुर्वन्ति ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Adorable God, protect us in all actions with Thy aids, for nourishing the body!
Meaning
Lord adorable all over the world in the affairs of enlightenment, protect and advance us with your care and powers of defence and development in the transactions of knowledge and happiness of the people with your heart and soul. (Rg. 1-79-7)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (विश्वासु धीसु वन्द्य) સમસ્ત પ્રજ્ઞાઓમાં અધ્યાત્મ ધ્યાનોમાં વંદનીય દેવ (अग्ने) હે અગ્રણી પરમાત્મન્ ! તું (गायत्रस्य प्रभर्मणि) સ્તુતિ કર્મનાં પ્રકૃષ્ટ ભરણ, સમર્પણ અથવા અનુષ્ઠાનમાં (ऊतिभिः नः अव) રક્ષા વિધિઓથી અમારી રક્ષા કર. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
ज्ञानप्राप्ती करताना व कर्म करताना जे जगदीश्वराला विसरत नाहीत, ते श्रेष्ठ ज्ञानाच्या अनुकूल श्रेष्ठ कर्मच सदैव करतात. ॥१॥
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