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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1526
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
34
आ꣡ नो꣢ अग्ने सुचे꣣तु꣡ना꣢ र꣣यिं꣢ वि꣣श्वा꣡यु꣢पोषसम् । मा꣣र्डीकं꣡ धे꣢हि जी꣣व꣡से꣢ ॥१५२६॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः꣣ । अग्ने । सुचेतु꣡ना꣢ । सु꣣ । चेतु꣡ना꣢ । र꣣यि꣢म् । वि꣣श्वा꣢यु꣢पोषसम् । वि꣣श्वा꣢यु꣢ । पो꣣षसम् । मार्डीक꣢म् । धे꣣हि । जीव꣢से꣢ ॥१५२६॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो अग्ने सुचेतुना रयिं विश्वायुपोषसम् । मार्डीकं धेहि जीवसे ॥१५२६॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । नः । अग्ने । सुचेतुना । सु । चेतुना । रयिम् । विश्वायुपोषसम् । विश्वायु । पोषसम् । मार्डीकम् । धेहि । जीवसे ॥१५२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1526
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आगे फिर वही विषयहै।
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! आप (नः जीवसे) हमारे जीवन के लिए (सुचेतुना) शुभ ज्ञान के साथ (विश्वायुपोषसम्) सब मनुष्यों के पोषक, (मार्डीकम्) सुखदायक (रयिम्) ऐश्वर्य को (आधेहि) प्रदान करो ॥३॥
भावार्थ
वह ज्ञान ज्ञान नहीं है और वह धन धन नहीं है, जो दूसरों के उपकार के लिए न हो ॥३॥
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू (नः) हमारे लिये (सुचेतुना) शोभन ज्ञान से युक्त (मार्डीकम्) सुख से भरे हुए (विश्वायुपोषकम्) समस्त आयु तक पोषणप्रद रमणीय ऐश्वर्य को (जीवसे) जीवन के लिये (आधेहि) आधान कर—स्थापित कर॥३॥
विशेष
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विषय
ज्ञान और धन
पदार्थ
हे (अग्ने) = प्रकाश प्राप्त करानेवाले प्रभो ! (नः) = हमें सुचेतुना उत्तम ज्ञान के साथ अथवा उत्तम ज्ञान के द्वारा (विश्व-आयु-पोषसम्) = सब मनुष्यों का पोषण करनेवाले नकि केवल हमारा ही पोषण करनेवाले (मार्डीकम्) = सुख के साधनभूत (रयिम्) = धन को (जीवसे) = उत्तम जीवन के लिए (आधेहि) = समन्तात् धारण कराइए ।
१. ज्ञानशून्य धन मनुष्य को विषयासक्त बनाता हैं, अतः हानिकर व अनुपादेय है। ज्ञानपूर्वक अर्जित धन ही ठीक है, उसके अभाव में हम by hook or by crook टेढ़े-मेढ़े सभी साधनों से धन कमाने लगते हैं । २. धन संविभागपूर्वक उपयुक्त होने पर अमृत तुल्य होता है और संविभाग के अभाव में हमें पापी बनाता है। ३. संविभक्त धन ही समाज की व्यवस्था को ठीक रखकर स्वस्थ समाज में हमारे जीवनों को सुखी करता है, अत: ऐसे ही धन की प्राप्ति के लिए यहाँ प्रभु से प्रार्थना की गयी है। वह धन हमें भोगासक्त न होने देकर प्रशस्तेन्द्रिय ‘गोतम' बनाता है । वही धन हमें त्याग की वृत्तिवाला 'राहूगण' बनाता है।
भावार्थ
हम ज्ञानपूर्वक सुपथ से धनार्जन करें। हमारा धन केवल हमारा ही पोषण न करे । यह हमें सुखी करनेवाला हो ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! आप (नः) हमें (जीवसे) जीवन के निमित्त (विश्वायुपोषसं) समस्त मनुष्यों के पालन पोषण में समर्थ (मार्डीकं) सुख, आरोग्य करने हारे (सुचेतुना) उत्तम ज्ञान सहित (रयिं) अन्न और प्राणबल (धेहि) दें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
पदार्थः
हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! त्वम् (नः जीवसे) अस्माकं जीवनाय (सुचेतुना) शोभनेन ज्ञानेन सह (विश्वायुपोषसम्) विश्वेषाम् आयूनां मनुष्याणां पोषसं पोषकम् (मार्डीकम्) सुखयितारम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (आ धेहि) प्रयच्छ ॥३॥२
भावार्थः
न तज्ज्ञानं ज्ञानं न च तद्धनं धनं यदन्येषामुपकारकं न जायते ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Grant us, O God, for completing our Yajna of life, wealth coupled with knowledge, that supports all living men, add gives us freedom from disease!
Translator Comment
Use for us: Preach unto us knowledge whereby we may be able to shun sins.
Meaning
Agni, lord of life, light and wealth, bring us and bless us with wealth along with knowledge, science and technology that may provide nourishment and health for all, soothing and joyful for happy living. (Rg. 1-79-9)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) હે અગ્રણી પરમાત્મન્ ! તું (नः) અમારે માટે (सुचेतुना) શ્રેષ્ઠ જ્ઞાનથી યુક્ત (मार्डीकम्) સુખથી ભરેલ (विश्वायुपोषकम्) સમસ્ત આયુ સુધી પોષણપ્રદ ઇચ્છનીય ઐશ્વર્યને (जीवसे) જીવનને માટે (आधेहि) આધાન કર-સ્થાપિત કર. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
ते ज्ञान ज्ञान नसते व ते धन धन नसते जे इतरांच्या उपकारांसाठी नसते. ॥३॥
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