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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1539
    ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    41

    वृ꣡षो꣢ अ꣣ग्निः꣡ समि꣢꣯ध्य꣣ते꣢ऽश्वो꣣ न꣡ दे꣢व꣣वा꣡ह꣢नः । त꣢ꣳ ह꣣वि꣡ष्म꣢न्त ईडते ॥१५३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृ꣡षा꣢꣯ । उ꣣ । अग्निः꣢ । सम् । इ꣣ध्यते । अ꣡श्वः꣢꣯ । न । दे꣣ववा꣡ह꣢नः । दे꣣व । वा꣡ह꣢꣯नः । तम् । ह꣣वि꣡ष्म꣢न्तः । ई꣣डते ॥१५३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषो अग्निः समिध्यतेऽश्वो न देववाहनः । तꣳ हविष्मन्त ईडते ॥१५३९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । उ । अग्निः । सम् । इध्यते । अश्वः । न । देववाहनः । देव । वाहनः । तम् । हविष्मन्तः । ईडते ॥१५३९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1539
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा की उपासना का फल वर्णित है।

    पदार्थ

    (वृषः) सुखों की वर्षा करनेवाला (अग्निः) जगन्नायक परमेश्वर (समिध्यते) उपासकों द्वारा अपने अन्तरात्मा में प्रदीप्त किया जाता है, जो (देववाहनः) विद्वानों के वाहन (अश्वः न) घोड़े के समान (देववाहनः) दिव्य गुणों का वाहक है। (तम्) उस परमेश्वर की (हविष्मन्तः) आत्मसमर्पण करनेवाले उपासक लोग (ईडते) आराधना करते हैं ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे रथ में नियुक्त किया हुआ वेगवान् घोड़ा शीघ्र ही मनुष्यों को लक्ष्य पर पहुँचा देता है, वैसे ही योगाभ्यास से अपने अन्तरात्मा में नियुक्त परमेश्वर दिव्य गुण प्राप्त करा कर उपासकों को शीघ्र ही उन्नत कर देता है ॥२॥

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    पदार्थ

    (वृषा-उ-अग्निः) अवश्य कामनावर्षक परमात्मा (देव-वाहनः-अश्वः-न समिध्यते) देव परमात्मदेव की ओर ले जाने वाला ‘न सम्प्रत्यर्थे पदपूरणो वा’ हृदय में प्रकाशित किया जाता है (तं हविष्मन्तः-ईडते) उसे आत्मसमर्पण करनेवाले स्तुत करते हैं॥२॥

    विशेष

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    विषय

    हविष्मान् ही उसका 'ईडन' करते हैं

    पदार्थ

    (अग्निः) = वह अग्रस्थान में स्थित ‘परमेष्ठी प्रभु' (समिध्यते) = हमसे अपने हृदयों में समिद्ध किया जाता है। कौन-सा प्रभु ?

    १. (वृष:) = जो सब कामनाओं का वर्षक है - सब मनोरथों का पूरक है ।

    २. (अश्वः न) = जो हमारी जीवन-यात्रा के लिए अश्व के समान है, जिसको आधार बनाकर हम जीवन-यात्रा को पूर्ण कर सकते हैं ।

    ३. (देववाहनः) = जो देवों का वाहन है । जिस प्रभु को धारण करने से हम सब दिव्य गुणों को

    प्राप्त कर पाते हैं। वह देव हममें देवताओं के साथ ही तो आते हैं 'देवो देवेभिरागमत्' । एवं, प्रभु की उपासना से १. हमारी कामनाएँ पूर्ण होती हैं । २. हमारी जीवन-यात्रा निर्विघ्नता से पूर्ण होकर हम लक्ष्यस्थान पर पहुँचनेवाले बनते हैं तथा ३. हमारे अन्दर दिव्य गुणों का विकास होता है ।

    (तम्) = इस प्रभु की (हविष्मन्तः) = हविष्मान् लोग ही (ईडते) = उपासना करते हैं । हविष्मान् लोग वे हैं जो दानपूर्वक अदन- भक्षण करते हैं— जो यज्ञशेष खाते हैं । पञ्चयज्ञ करके बचे हुए का सेवन अमृत का सेवन है। ये अमृतसेवी ही उस प्रभु के सच्चे उपासक हैं । यही उस यज्ञरूप प्रभु की यज्ञ के द्वारा आराधना है ('यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः') । 

    भावार्थ

    यज्ञमय जीवन के द्वारा यज्ञरूप प्रभु का हम यजन करें।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( वृषः ) = प्रभु सुखों की वर्षा करनेवाले  ( उ ) = निश्चय  ( देववाहन: ) = पृथिवी, वायु आदि सबके आधार होने से वाहन  ( अश्वः ) = प्राण के  ( न ) = समान वर्त्तमान  ( अग्निः ) = ज्ञानस्वरूप परमेश्वर  ( समिध्यते ) = हृदय में अच्छी प्रकार प्रकाशित होता है  ( तम् ) = आपकी  ( हविष्मन्त ईडते ) = भक्ति रूपी भेंटवाले महात्मा लोग स्तुति करते हैं। 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे सर्वाधार परमात्मन्! आप ही पृथिवी वायु आदि सब देव और सब लोकों के आधार और सबके सुख दाता सबके जीवन के हेतु, प्राणवत् परम प्यारे सबके हृदय में अन्तर्यामी होकर वर्त्तमान हैं। हम सबको योग्य है कि ऐसे परम पूज्य परमदयालु जगत्पति आपकी, अति प्रेम से भक्ति करें, जिससे हमारा सबका यह मनुष्य जन्म पवित्र और सफल हो ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (वृषः) सब सुखों के देने वाला, आत्मरूप (अग्निः) अग्नि, (देववाहनः) इन्द्रियों को वहन करने हारा (अश्वोः न) अश्व अर्थात् भोक्ता स्वामी के समान जाना जाकर (समिध्यते) युद्ध में विजिगीषु के अश्व के समान, योगाङ्गों द्वारा और भी तेजस्वी, तथा प्रज्वलित किया जाता है। (हविष्मन्तः) स्तुति उपासना करने हारे अथवा चरु आदि से युक्त याज्ञिक लोग भी (तं) उसकी ही (ईडते) स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ११ गोतमो राहूगणः। २, ९ विश्वामित्रः। ३ विरूप आंगिरसः। ५, ६ भर्गः प्रागाथः। ५ त्रितः। ३ उशनाः काव्यः। ८ सुदीतिपुरुमीळ्हौ तयोर्वान्यतरः । १० सोभरिः काण्वः। १२ गोपवन आत्रेयः १३ भरद्वाजो बार्हस्पत्यो वीतहव्यो वा। १४ प्रयोगो भार्गव अग्निर्वा पावको बार्हस्पत्यः, अथर्वाग्नी गृहपति यविष्ठौ ससुत्तौ तयोर्वान्यतरः॥ अग्निर्देवता। छन्दः-१-काकुभम्। ११ उष्णिक्। १२ अनुष्टुप् प्रथमस्य गायत्री चरमयोः। १३ जगती॥ स्वरः—१-३, ६, ९, १५ षड्जः। ४, ७, ८, १० मध्यमः। ५ धैवतः ११ ऋषभः। १२ गान्धरः प्रथमस्य, षडजश्चरमयोः। १३ निषादः श्च॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मोपासनायाः फलमाह।

    पदार्थः

    (वृषः) सुखवर्षकः (अग्निः) जगन्नायकः परमेश्वरः (समिध्यते) उपासकैः स्वान्तरात्मनि प्रदीप्यते, यः (देववाहनः) विदुषां वाहनभूतः (अश्वः न) तुरङ्ग इव (देववाहनः) दिव्यगुणानां वाहकः अस्ति। (तम्) परमेश्वरम् (हविष्मन्तः) आत्मसमर्पणवन्तः उपासकाः (ईडते) आराध्नुवन्ति ॥२॥२ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    यथा रथे योजितो वेगवानश्वो जनान् सद्यः लक्ष्यं प्रापयति तथैव योगाभ्यासेन स्वात्मनि नियुक्तः परमेश्वरो दिव्यगुणप्रापणेनोपासकान् सद्य उन्नयति ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    God, the. Giver of all joys, the Setter in motion of all planets, is kindled in the heart through Yogic practices, like the horse of a warrior desiring for victory in a battle. The worshippers pray unto Him.

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    Meaning

    Virile and generous, Agni is lighted and raised, it shines and blazes. It is the carrier of fragrance to the divinities of heaven and earth. Devotees bearing sacred offerings worship it in yajna. (Rg. 3-27-14)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वृषा उ अग्निः) અવશ્ય કામના વર્ષક પરમાત્મા (देव वाहनः अश्वः न समिध्यते) દેવ પરમાત્મની તરફ લઈ જનાર અથવા હૃદયમાં પ્રકાશિત કરી શકાય છે. (तं हविष्मन्तः ईडते) તેને આત્મ સમર્પણ કરનારાઓ સ્તુત કરે છે. [સમાધિ દ્વારા ધ્યાન ધરનારા ઉપાસકો પૂજે છે.] (૨)

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    বৃষো অগ্নিঃ সমিধ্যতেঽশ্বো ন দেববাহনঃ ।

    তং হবিষ্মন্ত ঈডতে।।৫৮।।

    (সাম ১৫৩৯)

    পদার্থঃ (বৃষঃ) পরমাত্মা সুখের বর্ষণকারী, (দেববাহনঃ) পৃথিবী, বায়ুসহ সকল বস্তুর আধারস্বরূপ হওয়ার কারণে বাহন। (অশ্বঃ) প্রাণের  (ন) ন্যায় বর্তমান (অগ্নিঃ) জ্ঞানস্বরূপ পরমেশ্বর (উ) নিশ্চয়ই (সমিধ্যতে) হৃদয়ে উত্তম প্রকারে প্রকাশিত হন। (তম্) হে ঈশ্বর! তোমাকে (হবিষ্মন্তঃ ঈডতে) ভক্তিরূপী উপহার দ্বারা মহাত্মাগণ তোমার স্তুতি করেন। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সর্বাধার পরমাত্মা! তুমিই পৃথিবী, বায়ুসহ সকল দেব এবং সকল লোকের আধার এবং সকল সুখের দাতা। সবার জীবনের প্রাণের সমান পরম প্রিয়, সকলের হৃদয়ে অন্তর্যামী হয়ে তুমি বর্তমান রয়েছ। আমাদের সকলের উচিত এরূপ পরম পূজ্য, পরমদয়ালু, জগৎপতি তোমাকে প্রেমের মাধ্যমে ভক্তি করা। যার মাধ্যমে আমাদের সবার এই পবিত্র  মনুষ্য জন্ম সফল হবে।।৫৮।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा रथाला जोडलेला वेगवान घोडा ताबडतोब माणसांना लक्ष्याकडे नेतो, तसेच योगाभ्यासाने आपल्या अंतरात्म्यात नियुक्त परमेश्वर दिव्य गुण प्राप्त करवून उपासकांना शीघ्र उन्नत करतो. ॥२॥

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