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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1571
ऋषिः - प्रयोगो भार्गवः पावकोऽग्निर्बार्हस्पत्यो वा गृहपति0यविष्ठौ सहसः पुत्रावन्यतरो वा
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
29
य꣡स्य꣢ त्रि꣣धा꣡त्ववृ꣢꣯तं ब꣣र्हि꣢स्त꣣स्था꣡वस꣢꣯न्दिनम् । आ꣡प꣢श्चि꣣न्नि꣡ द꣢धा प꣣द꣢म् ॥१५७१॥
स्वर सहित पद पाठय꣡स्य꣢꣯ । त्रि꣣धा꣡तु꣢ । त्रि꣣ । धा꣡तु꣢꣯ । अ꣡वृ꣢꣯तम् । अ । वृ꣣तम् । बर्हिः꣢ । त꣣स्थौ꣢ । अ꣡स꣢꣯न्दिनम् । अ । स꣣न्दिनम् । आ꣡पः꣢꣯ । चि꣣त् । नि꣢ । द꣣ध । पद꣢म् ॥१५७१॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य त्रिधात्ववृतं बर्हिस्तस्थावसन्दिनम् । आपश्चिन्नि दधा पदम् ॥१५७१॥
स्वर रहित पद पाठ
यस्य । त्रिधातु । त्रि । धातु । अवृतम् । अ । वृतम् । बर्हिः । तस्थौ । असन्दिनम् । अ । सन्दिनम् । आपः । चित् । नि । दध । पदम् ॥१५७१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1571
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में अन्तरिक्ष के महत्त्व द्वारा परमात्मा का महत्त्व वर्णित है।
पदार्थ
(यस्य) जिस जगदीश्वर का (त्रिधातु) वायु, बिजली और सूर्य, इन तीनों धातुओं से युक्त, (अवृतम्) न समेटा हुआ अर्थात् विस्तृत (बर्हिः) अन्तरिक्ष (असन्दिनम्) खुला हुआ (तस्थौ) स्थित है, जिस अन्तरिक्ष में (आपः चित्) मेघ-जल भी (पदम्) स्थिति को (नि दध) धारण किये हुए हैं। [हे मनुष्यो ! उसकी महिमा को तुम जानो] ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर से रचे हुए अन्तरिक्ष आदि की महिमा से परमेश्वर की ही महिमा प्रकाशित होती है ॥२॥
पदार्थ
(यस्य) जिस अग्नि—ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा को (त्रिधातु—अवृतम्—असन्दितं पदम्) तीन धारणाओं—स्तुति प्रार्थना उपासनाओं वाला या श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा अवृत—प्रत्यक्ष—साक्षात् ‘असन्दित’ सर्वथा अविचल१ एकरस पद—स्वरूप (बर्हिः-तस्थौ) हृदय आकाश में स्थित है उसे (आपः-चित्) आप्तजन२ ऊँचे उपासक३ (निदधा) अपने अन्दर धारण करते हैं॥२॥
विशेष
<br>
विषय
हविष्कृत् का जीवन
पदार्थ
गत मन्त्र में कहा था कि हविष्कृत को वायु के समान बल की प्राप्ति होती है । उसी हविष्कृत् के लिए कहते हैं कि यह वह है १. (यस्य) = जिसका (त्रिधातु) = प्रकृति, जीव व परमात्मा के ज्ञान को धारण करनेवाला मस्तिष्करूप द्युलोक (अवृतम्) = वासनाओं के मेघों से आवृत्त नहीं होता । इसकी ज्ञानाग्नि को वासना का धुँआ ढक नहीं लेता। कामरूप वृत्र से इसका ज्ञान आवृत्त नहीं हो जाता २. (बर्हिः) = इसका हृदयान्तरिक्ष (असन्दिनम्) = [असन्दितम्]=वासनाओं से अबद्ध (तस्थौ) = रहता है । इसके जीवन में परम प्रभु का स्मरण विषयरस को समाप्त कर देता है । ३. इसके शरीर में (आपः) = शक्तिरूप में रहनेवाले जल [आपः रेतो भूत्वा०–ऐ०] (पदम्) = पग को (चित्) = निश्चय से निदधा रखते हैं, अर्थात् इसके शरीर में शक्ति सुरक्षित रहती है ।
इस प्रकार यह मस्तिष्क में उत्कृष्ट ज्ञान के योगवाला होता है, हृदय में पवित्रता के योग को प्राप्त करता है और शरीर में शक्ति के योगवाला होकर सचमुच 'प्रयोग' प्रकृष्ट योगवाला होता है।
भावार्थ
हमारा जीवन उत्कृष्ट ज्ञान, पवित्रता व शक्ति से युक्त हो ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथान्तरिक्षस्य महत्त्वेन परमात्ममहत्त्वमाह।
पदार्थः
(यस्य) जगदीश्वरस्य (त्रिधातु) वायुविद्युत्सूर्यरूपैः त्रिभिर्धातुभिर्युक्तम्, (अवृतम्) असंवेष्टितम् (बर्हिः) अन्तरिक्षम्। [बर्हिरित्यन्तरिक्षनाम। निघं० १।३।] (असन्दिनम्) अबद्धम्। [संपूर्वो दो अवखण्डने धातुर्बन्धने दृश्यते।] (तस्थौ) तिष्ठति। यस्मिन् अन्तरिक्षे (आपः चित्) मेघजलानि अपि (पदम्) स्थितिम् (नि दध) निदधति। [नि पूर्वाद् दधातेर्लडर्थे लिटि व्यत्ययेन प्रथमपुरुषस्य स्थाने मध्यमबहुवचनम्, ‘द्व्यचोऽतस्तिङः’ अ० ६।३।१३५, इति दीर्घः।] हे मनुष्याः ! तस्य महिमानं यूयं जानीत इति वाक्यपूर्तिर्विधेया ॥२॥
भावार्थः
परमेश्वरेण रचितस्यान्तरिक्षादिकस्य महिम्ना परमेश्वरस्यैव महिमा प्रकाशते ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This three-fold r visible, grand moving universe rests in God. In Him do all worlds find their shelter.
Meaning
The three-quality mind of the celebrant with sattva, rajas and tamas, open and unfettered, is the seat of Agni where peace and potential for action both have their seat. (Rg. 8-102-14)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (यस्य) જે અગ્નિ-જ્ઞાન પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્માને (त्रिधातु अवृतम् असन्दितं पदम्) ત્રણેય ધારણાઓ-સ્તુતિ, પ્રાર્થના, ઉપાસનાઓવાળા અથવા શ્રવણ, મનન, નિદિધ્યાસન દ્વારા અવૃત-પ્રત્યક્ષ સાક્ષાત્ ‘અસન્દિત’ સર્વથા અવિચલ એકરસ પદ-સ્વરૂપ (बर्हिः तस्थौ) હૃદય આકાશમાં સ્થિર છે તેને (आपः चित्) આપ્તજન શ્રેષ્ઠ ઉપાસક (निदधा) પોતાની અંદર ધારણ કરે છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर रचित अंतरिक्ष इत्यादीची महिमा ही परमेश्वराची महिमा प्रकाशित करते. ॥२॥
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