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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1620
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
48
इ꣡न्द्रं꣢ वो वि꣣श्व꣢त꣣स्प꣢रि꣣ ह꣡वा꣢महे꣣ ज꣡ने꣢भ्यः । अ꣣स्मा꣡क꣢मस्तु꣣ के꣡व꣢लः ॥१६२०॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । वः꣣ । विश्व꣡तः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । ह꣡वा꣢꣯महे । ज꣡ने꣢꣯भ्यः । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । अ꣣स्तु । के꣡व꣢꣯लः ॥१६२०॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रं वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्यः । अस्माकमस्तु केवलः ॥१६२०॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । वः । विश्वतः । परि । हवामहे । जनेभ्यः । अस्माकम् । अस्तु । केवलः ॥१६२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1620
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
प्रथम मन्त्र में इन्द्र नाम से परमात्मा का विषय है।
पदार्थ
हे साथियो ! (विश्वतः परि) सबसे ऊपर, हम (इन्द्रम्) विघ्ननाशक, परमैश्वर्यवान् परमात्मा को (जनेभ्यः वः) आप प्रजाजनों के लिए (हवामहे) पुकारते हैं। वह (अस्माकम्)हम श्रोताओं का (केवलः) अद्वितीय सखा (अस्तु) होवे ॥१॥
भावार्थ
भले ही माता, पिता, राजा आदि हमें सुख देनेवाले होते हैं, परन्तु सदा सहायक, सदा अशरण-शरण, सदा धैर्यप्रदाता सखा तो जगदीश्वर ही है ॥१॥
पदार्थ
(वः-जनेभ्यः) तुम जनों—साधारण जनों के—अनुपासकों के लिये (परि) पर्याप्त—बस भोग वस्तु द्वारा परिपालक है, परन्तु हम (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (विश्वतः-हवामहे) सर्व प्रकार से अपने अन्दर आमन्त्रित करते हैं—उपासनार्थ आमन्त्रित करते हैं (केवलः-अस्माकम्-अस्तु) बस वह हमारा इस रूप से सर्वथा सहायक हो॥१॥
विशेष
ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
विषय
सर्वोत्तम इच्छा- -केवल प्रभु की उपासना
पदार्थ
मधुच्छन्दा: [अत्यन्त मधुर इच्छाओंवाला, प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि] कहता है कि हम तो (विश्वतः) = सब दृष्टिकोणों से—क्या अभ्युदय व क्या निःश्रेयस — दोनों के ही विचार से (जनेभ्यः परि) = मनुष्यों को छोड़कर [परि=वर्जन, वर्जनार्थक परि के योग में ही ‘जनेभ्य:' यह पञ्चमी है] (वः इन्द्रम्) = तुम सबके परमैश्वर्यदाता प्रभु को ही (हवामहे) = पुकारते हैं और चाहते हैं कि (अस्माकम्) = हमारा तो (केवल: अस्तु) = वह प्रभु ही एकमात्र हव्य व उपास्य हो । हम प्रभु के साथ किसी अन्य की उपासना को न जोड़ दें ।
मन्त्र में ‘केवल:’ शब्द का प्रयोग है— अकेले प्रभु की उपासना नकि उसके साथ गुरु की भी । ‘जनेभ्यः परि’ मनुष्यों को छोड़कर हम केवल प्रभु की उपासना करते हैं। मनुष्य की उपासना आई और प्रभु की उपासना गयी। धर्म ‘धर्म' न रहा, वह सम्प्रदाय बन गया । मधुच्छन्दा कहता है कि 'हम तो केवल प्रभु की उपासना करते हैं।'
भावार्थ
हम सब एक प्रभु की पूजावाले बनकर एक हो जाएँ । 'य एक इद्धव्यश्चर्षणीनाम्' - इस वेदोपदेश को सुनें कि 'वह प्रभु ही एकमात्र मनुष्यों का उपास्य है।'
पदार्थ
शब्दार्थ = ( विश्वतः ) = सब पदार्थों वा ( जनेभ्यः ) = सब प्राणियों से ( परि ) = उत्तम गुणों के कारण श्रेष्ठतर ( इन्द्रं हवामहे ) = परमेश्वर को बारम्बार अपने हृदय में हम स्मरण करते हैं । ( वः ) = आपके ( अस्माकम् ) = और हमारे सब लोगों के ( केवलः ) = चेतन मात्र स्वरूप ही इष्ट देव और पूजनीय हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = हे चेतन स्वरूप प्रभो! आप परमैश्वर्यवाले चेतन मात्र प्रभु की ही हम उपासना करते हैं। आपसे भिन्न किसी जड़ वा चेतन मनुष्य वा किसी प्राणी को अपना इष्टदेव और पूजनीय नहीं मानते, क्योंकि आप ही सब देवों के देव चेतनास्वरूप अधिपति हैं। आपकी ही उपासना से धर्म, अर्थ काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं, आपको छोड़ इधर-उधर भटकने से तो हमारा दुर्लभ यह मनुष्य देह व्यर्थ चला जायगा, इसलिए हम सब, आपको ही अपना पूज्य और उपासनीय इष्टदेव जान आपकी उपासना और आपकी वेदोक्त आज्ञा पालने में मन को लगा कर मनुष्य देह को सफल करते हैं ।
विषय
missing
भावार्थ
हे विद्वान् पुरुषो ! (वः जनेभ्यः) आप लोगों के हित लिये (विश्वत्तः) सबसे (परि) ऊपर विराजमान (इन्द्रम्) परमेश्वर इन्द्र की (हवामहे) उपासना करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वह (केवलः) अद्वितीय परमेश्वर (अस्माकं) हमारा सहायक (अस्तु) हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१, ७ शुनःशेप आजीगतिः। २ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। ३ शंयुर्वार्हस्पत्यः। ४ वसिष्ठः। ५ वामदेवः। ६ रेभसूनु काश्यपौ। ८ नृमेधः। ९, ११ गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १० श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। १२ विरूपः। १३ वत्सः काण्वः। १४ एतत्साम॥ देवता—१, ३, ७, १२ अग्निः। २, ८-११, १३ इन्द्रः। ४ विष्णुः। ५ इन्द्रवायुः। ६ पवमानः सोमः। १४ एतत्साम॥ छन्दः—१, २, ७, ९, १०, ११, १३, गायत्री। ३ बृहती। ४ त्रिष्टुप्। ५, ६ अनुष्टुप्। ८ प्रागाथम्। ११ उष्णिक्। १४ एतत्साम॥ स्वरः—१, २, ७, ९, १०, १२, १३, षड्जः। ३, ९, मध्यमः, ४ धैवतः। ५, ६ गान्धारः। ११ ऋषभः १४ एतत्साम॥
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादाविन्द्रनाम्ना परमात्मविषयमाह।
पदार्थः
हे सखायः ! (विश्वतः परि) सर्वेभ्यः उपरि वयम् (इन्द्रम्) विघ्नविदारकं परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (जनेभ्यः वः) प्रजाभ्यः युष्मभ्यम् (हवामहे) आह्वयामः। सः (अस्माकम्) स्तोतॄणाम्(केवलः) अद्वितीयः (सखा अस्तु) जायताम् ॥१॥२
भावार्थः
कामं मातापितृनृपत्यादयोऽस्माकं सुखप्रदा भवनति, परं सदा सहायः सदाऽशरणशरणः सदा धैर्यप्रदः सखा तु जगदीश्वर एव ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O learned persons, for your good, we worship God, Highest of all, May the Matchless God be our Helper!
Meaning
For the sake of you all of humanity, we invoke and worship Indra, the one lord ruler over the universe, and we pray He may be with us in vision in a state of absolute bliss. (Rg. 1-7-10)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वः जनेभ्यः) તમે જનો-સાધારણ જનોના અનુપાસકોને માટે (परि) પર્યાપ્ત-બસ, ભોગવસ્તુ દ્વારા પરિપાલક છે, પરંતુ અમે (इन्द्रम्) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને (विश्वतः हवामहे) સર્વ પ્રકારથી પોતાની અંદર આમંત્રિત કરીએ છીએ-ઉપાસના માટે આમંત્રિત કરીએ છીએ. (केवलः अस्माकम् अस्तु) બસ, તે અમારો એ રૂપમાં સહાયક બને. (૧)
बंगाली (1)
পদার্থ
ইন্দ্রং বো বিশ্বতস্পরি হবামহে জনেভ্যঃ।
অস্মাকমস্তু কেবলঃ।।৬৫।।
(সাম ১৬২০)
পদার্থঃ (বিশ্বতঃ) সমস্ত পদার্থ থেকে, (জনেভ্যঃ) সমস্ত প্রাণীর থেকে (পরি) উত্তম, গুণের শ্রেষ্ঠতম (ইন্দ্রম্ হবামহে) পরমেশ্বরকে বারংবার নিজের হৃদয়ে আমরা স্মরণ করি। (অস্মাকম্) আমাদের এবং (বঃ) তোমার (কেবলঃ) চেতন সত্তারূপ ইষ্টদেবই শুধুমাত্র পূজনীয় (অস্তু) হয়ে থাকেন।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে চৈতন্যস্বরূপ! পরমৈশ্বর্যশালী চেতন পরমেশ্বর! আমরা তোমারই উপাসনা করি। তুমি ভিন্ন কোন জড় বা চেতন মনুষ্য বা কোন প্রাণীকে নিজের ইষ্টদেব এবং উপাস্য মান্য করি না। কারণ, তুমিই সকল দেবের দেব, চেতনস্বরূপ অধিপতি। তোমারই উপাসনা দ্বারা ধর্ম, অর্থ, কাম এবং মোক্ষ এই চারটি পুরুষার্থ প্রাপ্ত করি। তোমার উপাসনা ছাড়া আমাদের এই দুর্লভ মনুষ্য দেহ ব্যর্থ হয়ে যাবে। এজন্য আমরা সবাই তোমাকেই পূজ্য এবং উপাস্য ইষ্ট দেব জেনে, তোমার উপাসনা এবং বেদোক্ত আজ্ঞা পালন করে মনুষ্য দেহকে সফল করি।।৬৫।।
मराठी (1)
भावार्थ
माता, पिता, राजा इत्यादी आम्हाला सुख देणारे असतात, परंतु सदैव सहायक, सदैव अशरण-शरण, सदैव धैर्य प्रदाता सखा जगदीश्वरच आहे. ॥१॥
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