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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1657
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चाङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    35

    प꣡न्यं꣢पन्य꣣मि꣡त्सो꣢तार꣣ आ꣡ धा꣢वत꣣ म꣡द्या꣢य । सो꣡मं꣢ वी꣣रा꣢य꣣ शू꣡रा꣢य ॥१६५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प꣡न्यं꣢꣯पन्यम् । प꣡न्य꣢꣯म् । प꣣न्यम् । इ꣢त् । सो꣣तारः । आ꣢ । धा꣣वत । म꣡द्या꣢꣯य । सो꣡म꣢꣯म् । वी꣣रा꣡य꣢ । शू꣡रा꣢꣯य ॥१६५७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पन्यंपन्यमित्सोतार आ धावत मद्याय । सोमं वीराय शूराय ॥१६५७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पन्यंपन्यम् । पन्यम् । पन्यम् । इत् । सोतारः । आ । धावत । मद्याय । सोमम् । वीराय । शूराय ॥१६५७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1657
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में १२३ क्रमाङ्क पर भक्तिरस के विषय में की जा चुकी है। यहाँ ज्ञानरस का विषय है।

    पदार्थ

    हे (सोतारः) ज्ञानरस को अभिषुत करनेवाले मनुष्यो ! तुम(मद्याय) आनन्दित किये जाने योग्य, (वीराय) काम-क्रोध आदि षड् रिपुओं को विशेषरूप से प्रकम्पित करनेवाले, (शूराय) शूरवीर जीवात्मा के लिए (पन्यम् पन्यम् इत्) प्रशंसनीय-प्रशंसनीय ही (सोमम्) अध्यात्म ज्ञान-रस को (आ धावत) पहुँचाओ ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिए कि वे प्रशंसा-योग्य ही भौतिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान का आत्मा में सञ्चय करें, जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस के मार्ग को भली-भाँति पार कर सकें ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या १२३)

    विशेष

    ऋषिः—मेधातिथिर्मेध्यातिथिश्च (परमात्मा में मेधा से अतन करने वाला और पवित्र हो अतन प्रवेश करने वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    सात्त्विक भोजन

    पदार्थ

    यह मन्त्र १२३ संख्या पर व्याख्यात है । मन्त्र का सरलार्थ निम्न है = (सोतार:) = हे प्रभु के उपासको ! (इत्) = निश्चय से (पन्यंपन्यम्) = स्तुत्य और स्तुत्य ही, अर्थात् सात्त्विक भोजनों का ही ग्रहण करो और इस प्रकार (सोमं आ धावत) = सोम को सर्वथा शुद्ध रक्खो । यह सुरक्षित सोम (मद्याय) = हर्ष के लिए होगा, (वीराय) = वीरत्व [Virtue] व गुणों के उत्पादन के लिए होगा तथा (शूराय) = [शृ हिंसायाम्] सब रोगों का शीर्ण करनेवाला होगा। 

    भावार्थ

    सोमरक्षा के लिए सात्त्विक भोजन आवश्यक है ।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    व्याख्या देखिये अवि० सं० [ १२३ ] पृ०।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः। २ श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। ३ शुनःशेप आजीगर्तः। ४ शंयुर्बार्हस्पत्यः। ५, १५ मेधातिथिः काण्वः। ६, ९ वसिष्ठः। ७ आयुः काण्वः। ८ अम्बरीष ऋजिश्वा च। १० विश्वमना वैयश्वः। ११ सोभरिः काण्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ कलिः प्रागाथः। १५, १७ विश्वामित्रः। १६ निध्रुविः काश्यपः। १८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। १९ एतत्साम॥ देवता—१, २, ४, ६, ७, ९, १०, १३, १५ इन्द्रः। ३, ११, १८ अग्निः। ५ विष्णुः ८, १२, १६ पवमानः सोमः । १४, १७ इन्द्राग्नी। १९ एतत्साम॥ छन्दः–१-५, १४, १६-१८ गायत्री। ६, ७, ९, १३ प्रागथम्। ८ अनुष्टुप्। १० उष्णिक् । ११ प्रागाथं काकुभम्। १२, १५ बृहती। १९ इति साम॥ स्वरः—१-५, १४, १६, १८ षड्जः। ६, ८, ९, ११-१३, १५ मध्यमः। ८ गान्धारः। १० ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १२३ क्रमाङ्के भक्तिरसविषये व्याख्याता। अत्र ज्ञानरसविषय उच्यते।

    पदार्थः

    हे (सोतारः) ज्ञानरसाभिषवकर्तारो मनुष्याः ! यूयम् (मद्याय) मादयितव्याय, (वीराय) कामक्रोधादीन् षड्रिपून् विशेषेण प्रकम्पयित्रे। [वीरो वीरयत्यमित्रान् वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणो वीरयतेर्वा। निरु० १।६।] (शूराय) बलिने जीवात्मने (पन्यं पन्यम् इत्) स्तुत्यं स्तुत्यम् एव (सोमम्) अध्यात्मं ज्ञानरसम्(आ धावत) आगमयत ॥१॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः प्रशंसार्हमेव भौतिकमध्यात्मं च ज्ञानमात्मनि संचेतव्यं येन तेऽभ्युदयनिःश्रेयसमार्गं सम्यक् सन्तरेयुः ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    0 priests, procure excellent Soma for the joyful, heroic and brave King!

    Translator Comment

    See verse 123.

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    Meaning

    O makers of soma, to Indra, offer the drink of soma, brave, ecstatic and heroic, and let each draught be more and more delicious and adorable. (Rg. 8-2-25)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोतारः) હે સ્તવન સંપાદન કરનારાઓ ! (मद्याय) હર્ષયિતા , (वीराय) શક્તિમાન (शूराय) પરાક્રમી ઇન્દ્ર પરમાત્માને માટે (पन्यं - पन्यं सोमम्) સ્તુત્ય સ્તુત્ય આત્મભાવથી હાર્દિક સ્તવન્ - સ્તુતિ પ્રવાહને (आधावत) સમર્પિત કરો. (૯)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે ઉપાસકો ! શક્તિમાન , પરાક્રમી અને હર્ષ કરાવનાર પરમાત્માને માટે અલ્પ સ્તવન નહીં , પરંતુ અત્યધિક હાર્દિક સ્તવન સમર્પિત કરો , જેથી તે અતિ હર્ષિત કરે. (૯)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी प्रशंसायोग्य भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञानाचा आत्म्यात संचय करावा, ज्यामुळे अभ्युदय व नि:श्रेयसचा मार्ग चांगल्या प्रकारे पार पडावा. ॥१॥

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