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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 167
ऋषिः - कुसीदी काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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आ꣡ तू न꣢꣯ इन्द्र क्षु꣣म꣡न्तं꣢ चि꣣त्रं꣢ ग्रा꣣भ꣡ꣳ सं गृ꣢꣯भाय । म꣣हाहस्ती꣡ दक्षि꣢꣯णेन ॥१६७॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । तु । नः꣢ । इन्द्र । क्षुम꣡न्त꣢म् । चि꣣त्र꣢म् । ग्रा꣣भ꣢म् । सम् । गृ꣣भाय । महाहस्ती꣢ । म꣣हा । हस्ती꣢ । द꣡क्षि꣢꣯णेन ॥१६७॥
स्वर रहित मन्त्र
आ तू न इन्द्र क्षुमन्तं चित्रं ग्राभꣳ सं गृभाय । महाहस्ती दक्षिणेन ॥१६७॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । तु । नः । इन्द्र । क्षुमन्तम् । चित्रम् । ग्राभम् । सम् । गृभाय । महाहस्ती । महा । हस्ती । दक्षिणेन ॥१६७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 167
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा और राजा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
प्रथम—राजा के पक्ष में। हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली राजन् ! (महाहस्ती) बड़ी सूँडवाले हाथी के समान विशाल भुजावाले आप (तु) शीघ्र ही (दक्षिणेन) दाहिने हाथ से (नः) हमारे लिए अर्थात् हमें दान करने के लिए (क्षुमन्तम्) प्रशस्त अन्नों से युक्त (चित्रम्) आश्चर्यकारी (ग्राभम्) ग्राह्य धन को (आ) चारों ओर से (संगृभाय) संग्रह कीजिए ॥ द्वितीय—परमात्मा के पक्ष में। हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली परमात्मन् ! आप (तु) शीघ्र ही (नः) हमें देने के लिए (क्षुमन्तम्) भौतिक धन, अन्न आदि से युक्त (चित्रम्) अद्भुत (ग्राभम्) ग्राह्य अध्यात्मसम्पत्ति रूप धन को (संगृभाय) संगृहीत कीजिए, जैसे (महाहस्ती) विशाल भुजाओंवाला कोई मनुष्य (दक्षिणेन) अपने दाहिने हाथ से वस्तुओं का संग्रह करता है, अथवा, जैसे (महाहस्ती) प्रशस्त किरणोंवाला हिरण्यपाणि सूर्य (दक्षिणेन) अपने समृद्ध किरणजाल से भूमि पर स्थित जलों का संग्रह करता है अथवा जैसे (महाहस्ती) विशाल हाथी (दक्षिणेन) अपने बलवान् सूँड-रूप हाथ से विविध वस्तुओं का संग्रह करता है ॥३॥ इस मन्त्र श्लेषालङ्कार है। ‘महाहस्ती’ में लुप्तोपमा है ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर और राजा सब प्रजाजनों को पुरुषार्थी करके प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न, विद्यावान्, धार्मिक और योगविद्या के ऐश्वर्य से युक्त करें ॥३॥
पदार्थ
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (महाहस्ती) बड़े हाथों वाला—प्रशस्त दानी होता हुआ (दक्षिणेन) दक्षिण पार्श्व से—निज सखा सङ्गी बन (नः) हमारे लिये (क्षुमन्तं चित्रं ग्राभम्) प्रशस्त भोग वाले अद्भुत मुठ्ठी को (तु) अवश्य (आसंगृभाय) भलीभाँति प्रदान कर।
भावार्थ
परमात्मन्! हमारे लिए भोग और आनन्द दान करने को तू महादानी है विशाल हाथों वाला है “तू छप्पर फाड़ कर देने वाला है” ऐसी उक्ति भी है, तू सदा हमारे साथ दक्षिण पार्श्ववर्ती सखा के समान है तू उस अद्भुत आनन्द भोग वाली विचित्र मुट्ठी को हमें प्रदान कर देता है॥३॥
विशेष
ऋषिः—कुसीदी काण्वः (मेधावी का पुत्र योगभूमि पर बैठने वाला)॥<br>
विषय
अद्भुत ज्ञानधन
पदार्थ
पिछले मन्त्र में आत्मा के परमात्मा-तुल्य बनने का उल्लेख था । इस मन्त्र का ऋषि ‘कुसीदी' [कुस् संश्लेषणे] उस प्रभु से आलिङ्गन करनेवाला है। उस प्रभु से मेल करके उसके अनन्त आनन्द में भागी बनने में ही बुद्धिमत्ता है। इसीलिए यह कुसीदी ‘काण्व'=अत्यन्त मेधावी कहलाया है। यह 'कुसीदी काण्व' प्रभु से प्रार्थना करता है
हे (इन्द्र)=ज्ञान के परमैश्वर्यवाले प्रभो! (नः) = हमें (क्षुमन्तम्) = शब्दोंवाले, (चित्रम्) = उत्तम ज्ञान देनेवाले, (ग्राभम्)=ग्राह्य पदार्थ [posesion] अर्थात् वेदज्ञान को (तु) = निश्चय से (संगृभाय) = ग्रहण कराइए । ‘तु' शब्द की ठीक भावना 'पक्ष व्यावृत्ति' होती है। आप हमारी प्रवृत्ति को प्रकृति की ओर जाने व आसक्त होने से रोककर उस वेद - ज्ञान की ओर झुकाइए, जो हमें उत्तम ज्ञानधन का पोषण करनेवाली बनाएगी।
आप (महा-हस्ती) = हैं। महान् गति - ज्ञानवाले हैं [ हन् गति - ज्ञान ] । हस्त शब्द बनता है। हन् का अर्थ हिंसा के अतिरिक्त ज्ञान भी है। उस प्रभु का ज्ञान महान्, अनन्त व पूजनीय है, अतः प्रभु 'महा-हस्ती' कहलाते हैं। हे प्रभो! आप (दक्षिणेन)=हमारी दक्षता =उन्नति के हेतु से हमें भी अपना महान् ज्ञान प्राप्त कराइए । इस महनीय ज्ञान को प्राप्त करके हम भी आपके सखा बनें। आपके साथ मेल करके हम इस मन्त्र के ऋषि ‘कुसीदी' बनें। अज्ञानियों से दूर रहते हुए भी आप ज्ञानियों के समीप ही हैं। हम भी आपके इस सामीप्य को प्राप्त करनेवाले बनें ।
भावार्थ
प्रभुकृपा से हम अद्भुत सर्वज्ञानपूर्ण वैदिक सम्पत्ति के स्वामी बनें।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे इन्द ! ( महा हस्ती ) = बढ़े भारी हस्त=धारक प्रयत्न वाला तू ( द्युमन्तं ) = अन्न, और गृह से सम्पन्न ( ग्राभं ) = ग्रहण करने योग्य ( चित्रं ) = ज्ञान को ( दक्षिणेन ) = उत्तम साधन से ( आ संगृभाय ) = संग्रह कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - कुसीद काण्वः।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरो राजा च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
प्रथमः—राजपरः। हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशालिन् राजन् ! (महाहस्ती२) महाशुण्डो गज इव महाभुजः त्वम् (तु) क्षिप्रम् (दक्षिणेन) दक्षिणहस्तेन (नः) अस्मभ्यम् (क्षुमन्तम्३) प्रशस्तान्नयुक्तम्। क्षु इत्यन्ननाम। निघं० २।७। (चित्रम्४) अद्भुतम् (ग्राभम्५) ग्राह्यं धनम्। गृह्यते इति ग्राभः। हृग्रहोर्भश्छन्दसि इति वार्तिकेन हस्य भत्वम्। (आ) समन्तात् (सं गृभाय) सं गृहाण। ग्रह उपादाने धातोः छन्दसि शायजपि अ० ३।१।८४ इति श्नः शायजादेशः। हस्य भत्वम् ॥ अथ द्वितीयः—परमात्मपरः। हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! त्वम् (तु) क्षिप्रमेव (नः) अस्मभ्यं दातुम् (क्षुमन्तम्) भौतिकधनान्नादियुक्तम् (चित्रम्) अद्भुतम् (ग्राभम्) ग्राह्यम् अध्यात्मसंपद्रूपं धनम् (आ) समन्तात् (संगृभाय) संगृहाण, यथा (महाहस्ती) विशालभुजः कश्चिन्मनुष्यः (दक्षिणेन) दक्षिणहस्तेन वस्तूनि संगृह्णाति। यद्वा, यथा (महाहस्ती) महनीयकिरणः हिरण्यपाणिः सविता सूर्यः (दक्षिणेन) समृद्धेन स्वकिरणजालेन भूमिष्ठानि जलानि संगृह्णाति। यद्वा, यथा (महाहस्ती) महागजः (दक्षिणेन) बलवता स्वकीयेन शुण्डादण्डेन खाद्यपेयादीनि वस्तूनि संगृह्णाति ॥३॥ अत्र श्लेषालङ्कारः। महाहस्ती इति च लुप्तोपमम् ॥३॥
भावार्थः
परमेश्वरो राष्ट्रस्य राजा च सर्वान् प्रजाजनान् पुरुषार्थिनो विधाय प्रभूतधनधान्यसम्पन्नान् विद्यावतो धार्मिकान् योगैश्वर्ययुक्ताँश्च विदधातु ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।८१।१, साम० ७२८। २. महाहस्ती। महाँश्चासौ हस्तश्च महाहस्तः। तस्मादिदं तृतीयैकवचनम्। महता हस्तेनेत्यर्थः—इति वि०। महान् हस्तो महाहस्तः। महाहस्तवान् त्वम्—इति भ०। ३. क्षुमन्तम्। क्षु शब्दे इत्येतस्येदं रूपम्। कीर्तिमन्तम्—इति वि०। कीर्तिमन्तं कीर्तिसहितम्—इति भ०। शब्दवन्तं स्तुत्यमित्यर्थः—इति सा०। ४. (चित्रम्) चक्रवर्तिराज्यश्रिया विद्यामणिसुवर्णहस्त्यश्वादि- योगेनाद्भुतम् इति ऋ० १।९।५ भाष्ये द०। ५. ग्राभं ग्राह्यं ग्रहणयोग्यम्, अभिसंस्कारैः संस्कृतमित्यर्थः।—इति वि०। ग्राभं धनम्। गृह्यते संगृह्यते सर्वैः इति ग्राहः—इति भ०। ग्राहकं ग्रहणार्हं वा धनम्—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O soul, full of exertion, gather intelligently the knowledge worthy of acquisition, that equips thee with food and habitation.
Meaning
Lord of mighty arms, Indra, gather by your expert right hand abundant riches for us which may be full of nourishment, energy, wonderful beauty and grace worth having as a prize possession. (Rg. 8-81-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તું (महाहस्ती) મહાન હાથોવાળો - પ્રશસ્ત દાની બનીને (दक्षिणेन) દક્ષિણ પાર્શ્વથી - મારો મિત્ર-સંગી બન (नः) અમારા માટે (क्षुमन्तं चित्रं ग्राभम्) પ્રશસ્ત ભોગ યુક્ત અદ્ભુત મુઠ્ઠીને (तु)અવશ્ય (आसंगृभाय) સારી રીતે પ્રદાન કર. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મન્ ! અમારા માટે ભોગ અને આનંદનું દાન કરનાર તું મહાદાની છે, વિશાળ હાથવાળો છે, તું છપ્પર ફાડ કર દેનેવાલા હૈ' એવી ઉક્તિ પણ છે, તું સદા અમારી સાથે દક્ષિણ પાર્શ્વવર્તી મિત્રની સમાન છે, તું તે અદ્ભુત આનંદ ભોગવાળી વિચિત્ર મુઠ્ઠી અમને પ્રદાન કર. (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
بُرائیوں کے ازدھا کو کُچل ڈالئے بھگوان!
Lafzi Maana
لفظی معنیٰ: ہے پرمیشور اِندر! آپ (نہ کھبومنتم) ہمارے پھُنکارتے ہوئے (چِترم گرابہم) عجیب و غریب بھیانک شکل کے پاپ رُوپ گراہ یا ازدھا کو (سم گربھائے) اچھی طرح سے پکڑ لیجئے۔ جیسے کہ (مہا ہستی دکھشنین) بڑا ہاتھی اپنی طاقت ور سُونڈ سے بڑے بڑے درختوں کو ٹہنوں کو مضبوطی سے پکڑ کر کھینچ لیتا ہے۔
Tashree
اُکھاڑتا ہے ٹہینوں کو ہاتھی جیسے درخت سے، بُرائیوں کی پھانس کو اُکھاڑو اپنے ہست سے۔
मराठी (2)
भावार्थ
परमेश्वर व राजा सर्व प्रजेला पुरुषार्थी करून प्रचुर धनधान्याने संपन्न, विद्यावान, धार्मिक व योगविद्येच्या ऐश्वर्याने युक्त करावे ॥३॥
विषय
पुढे परमेश्वराला आणि राजाला प्रार्थना केली आहे -
शब्दार्थ
(प्रथम अर्थ) (राजापर) - हे (इन्द्र) परम ऐश्वर्यशाली राजा, (महाहस्ती) विशाल सोंड असलेल्या हत्तीप्रमाणे तुझ्या भुजा विशाल असून (तु) त्वरित (दक्षिणेन) उजव्या हाताने (नः) आमच्यासाठी म्हणजे आम्हाला दान देण्यासाठी (क्षुमन्तम्) भरपूर अन्न धान्यादीनी भरलेले (चित्रम्) अद्भुत असे (ग्राभम्) धन (आ संगृराम) सर्वतः संग्रह कराव आम्हांस दान द्या।। द्वितीय अर्थ (परमात्मपर) हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली परमेश्वरा, (तु) तू लवकरच (नः) आम्हाला देण्यासाठी (क्षुमन्तम्) भौतिक धन, अन्न आदींनी संपन्न (चित्रम्) अद्भुत (ग्राभम्) ग्राह्य अध्यात्म संपत्ती वा आत्मिक शक्तीरूप धन (संगृ भाय) संग्रहीत करा (अथवा आपण हे भौतिक आमच्याभोवती वृक्ष, वनस्पती, जल, वायू आदी रूपाने भरून ठेवलेले आहेच. ज्याप्रमाणे (महाहस्ती) विशाल वाहू असलेला मनुष्य (दक्षिणेन) आपल्या उजव्या हाताने पदार्थांचा संग्रह करतो अथवा जसे (महाहस्ती) प्रशस्त किरणांचा स्वामी तेजस्वी सूर्य (दक्षिणेत) आपल्या समृद्ध किरण समूहरूप हातांनी भूमीवरील जलाचा संग्रह करतो अथवा (महाहस्ती) विशाल हत्ती (दक्षिणेन) आपल्या बलिष्ठ सोंडेने विविध पदार्थांचा संग्रह करतो (त्याप्रमाणे, हे परमेश्वरा, तू आम्हा उपासकांसाठी धन संपदेचा जो संग्रह तू आधीच सर्वत्र करून ठेवला आहेस, ते धन आम्हास प्राप्त व्हावे, असे कर. ।। ३।।
भावार्थ
परमेश्वराने आणि राजाने सर्व प्रजाजनांना पुरुषार्थाद्वारे प्रचुर धन- धान्य अजि४त करण्यास प्रेरणा द्यावी की ज्यायोगे सर्व जण धनसंपन्न, विद्यावन, धार्मिक व योगविद्याविशारद होतील ।। ३।।
विशेष
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. ‘महाहस्ती शब्दात लुप्तोपमा अलंकार आहे ।। ३।।
तमिल (1)
Word Meaning
(இந்திரனே) மேன்மையான கையுள்ளவனே! எங்களுக்கு சப்தத்துடன் நாடத்தகுந்த பற்றவேண்டியவைகளை, (வலதுகையால்) குவிக்கவும்.
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