Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 168
ऋषिः - प्रियमेधः आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
24
अ꣣भि꣡ प्र गोप꣢꣯तिं गि꣣रे꣡न्द्र꣢मर्च꣣ य꣡था꣢ वि꣣दे꣢ । सू꣣नु꣢ꣳ स꣣त्य꣢स्य꣣ स꣡त्प꣢तिम् ॥१६८॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । प्र । गो꣡प꣢꣯तिम् । गो꣢ । प꣣तिम् । गिरा꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्च । य꣡था꣢꣯ । वि꣣दे꣢ । सू꣣नु꣢म् । स꣣त्य꣡स्य꣣ । स꣡त्प꣢꣯तिम् । सत् । प꣣तिम् ॥१६८॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि प्र गोपतिं गिरेन्द्रमर्च यथा विदे । सूनुꣳ सत्यस्य सत्पतिम् ॥१६८॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । प्र । गोपतिम् । गो । पतिम् । गिरा । इन्द्रम् । अर्च । यथा । विदे । सूनुम् । सत्यस्य । सत्पतिम् । सत् । पतिम् ॥१६८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 168
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में मनुष्य को प्रेरणा की गयी है।
पदार्थ
हे मनुष्य ! तू (गोपतिम्) सूर्य, पृथिवी आदि लोकों के अथवा राष्ट्रभूमि के स्वामी और पालनकर्ता, (सत्यस्य सूनुम्) सत्य ज्ञान और सत्य कर्म के प्रेरक, (सत्पतिम्) सज्जनों के रक्षक एवं दुष्टों को दण्ड देनेवाले (इन्द्रम्) परमात्मा और राजा को (अभि) लक्ष्य करके (गिरा) वाणी से (प्र अर्च) भली-भाँति स्तुति कर अर्थात् इनके गुण-कर्मों का वर्णन कर, (यथा) जैसे वे (विदे) उस स्तुति को जान लें ॥४॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि वे विविध गुणगणों से विभूषित परमेश्वर और राजा को लक्ष्य करके उनके यथार्थ गुण-कर्म-स्वभावों का ऐसा वर्णन करें कि वे उसे जान लें, क्योंकि स्तोतव्य की स्तुति तभी फलदायक होती है जब वह उसके अन्तःकरण को छू लेती है ॥४॥
पदार्थ
(यथाविदे) हे उपासक तू यथावत् वेत्ता होने के लिये (गोपतिम्) वेदवाणी के स्वामी—(सत्पतिम्) सत्पुरुषों—उपासकों के पालक (सत्यस्य-सूनुम्) सत्य के प्रेरक (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (अभि) पुनः पुनः उसे (गिरा प्रार्च) स्तुति से अर्चित कर।
भावार्थ
मानव तू यथार्थवेत्ता होने के लिये वेदवाणी के स्वामी, उपासकों के पालक, सत्य के प्रेरक परमात्मा की स्तुति से पुनः पुनः या निरन्तर अर्चना किया कर॥४॥
विशेष
ऋषिः—प्रियमेधः (प्रिय है मेधा जिसकी ऐसा जन)॥<br>
विषय
यथार्थ ज्ञान के लिए
पदार्थ
इस मन्त्र के ऋषि ‘प्रियमेध' को धारण करनेवाली बुद्धि ही प्रिय है। ज्ञान-मार्ग पर चलने के कारण विषय-प्रवण न होने से यह 'आङ्गिरस' = शक्तिशाली है।
यह अपने को ही आत्मप्रेरणा [auto-suggestion] के रूप में इस प्रकार कहता है- (यथा विदे) = जो वस्तु जैसी है उसे वैसा ही समझने के लिए - अर्थात् प्रत्येक वस्तु के तत्त्वज्ञान के लिए (इन्द्रम्) = उस ज्ञानरूप परमैश्वर्य के निधि-भूत प्रभु की (अर्च) = उपासना कर। वे प्रभु (गोपतिम्) = सब वेदवाणियों के पति हैं, (गिरा) = तू वेदवाणियों के ज्ञान के हेतु से इन्हीं के द्वारा अभि प्र उस प्रभु की ओर प्रकर्षेण चल। सदा उस प्रभु के सम्पर्क में रहने का प्रयत्न कर।
वे प्रभु (सत्यस्य सूनुम्)=हृदयस्थ रूप से सदा सत्य की प्रेरणा (सू प्रेरणे) देनेवाले हैं।
प्रत्येक सृष्टि के प्रारम्भ में 'अग्नि' आदि ऋषियों को वे प्रभु हृदयस्थरूपेण वेदज्ञान दिया करते हैं। ऋषियों में प्रविष्ट उस वेदवाणी को ही समय प्रवाह में हम भी प्राप्त करने के योग्य होते हैं। वे ऋषि श्रेष्ठ व (अरिप्र) = निर्दोष अन्त:करणोंवाले थे। इसीलिए उन्होंने प्रभु के प्रकाश को देखा। हम भी (सत्) = श्रेष्ठ बनें और उस दिव्य प्रकाश को देखनेवाले हों। वे प्रभु (सत्पतिम्) = सयनों के पति=रक्षक हैं। हमारा कर्त्तव्य सयन बनना है| रक्षा का भार तो प्रभु पर है। प्रभु ज्ञान द्वारा हमारी रक्षा करते हैं।
भावार्थ
उस गोपति की अर्चना कर हम भी गोपति-वेदवाणियों के पति बनें।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे मनुष्य ! ( गोपतिं ) = वाणी और रश्मियों, इन्द्रियों के स्वामी पालक ( सत्यस्य सूनुम् ) = सत्य को उत्पन्न करने हारे, ( सत्पतिम् ) = सत्य पदार्थ या सज्जनों के पालक ( इन्द्रम् ) = इन्द्र को ( यथा विदे ) = यथार्थ ज्ञान के लिये ( अभि प्र-अर्च ) = साक्षात् रूप से स्तुति कर।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - प्रियमेधः ।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मनुष्यं प्रेरयति।
पदार्थः
हे मनुष्य ! त्वम् (गोपतिम्) गोपदवाच्यानां सूर्यपृथिव्यादिलोकानां राष्ट्रभूमेर्वा पतिं स्वामिनं पालकं च, (सत्यस्य सूनुम्) सत्यज्ञानस्य सत्यकर्मणश्च प्रेरकम्। षू प्रेरणे इति धातोः सुवः कित्। उ० ३।३५ इति नुः प्रत्ययः। (सत्पतिम्) सतां सज्जनानां पालयितारम्, असज्जनानां दण्डयितारमित्यर्थादापद्यते, (इन्द्रम्) परमेश्वरं राजानं च (अभि) अभिलक्ष्य (गिरा) वाचा (प्र अर्च) प्रकर्षेण स्तुहि, तद्गुणकर्माणि वर्णय, (यथा) येन प्रकारेण, सः (विदे२) तां स्तुतिं जानाति। विद ज्ञाने धातोश्छान्दसमात्मनेपदम्। लटि वित्ते इति प्राप्ते लोपस्त आत्मनेपदेषु, अ० ७।१।४१ इति तलोपः। विदे इत्यत्र यावद्यथाभ्याम्, अ० ८।१।६६ इति निघाताभावः ॥४॥ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥४॥
भावार्थः
मनुष्याणां योग्यमस्ति यत् ते विविधगुणगणविभूषितं परमेश्वरं राजानं चोद्दिश्य तयोर्यथार्थगुणकर्मस्वभावाँस्तथा वर्णयेयुर्यथा तौ तद् विजानीयाताम्, यतो हि स्तोतव्यस्य स्तुतिस्तदैव फलदायिनी भवति यदा सा तदन्तःकरणं स्पृशति ॥४॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।६९।४, साम० १४८९, अथ० २०।२२।४, ९२।१। २. यथा विदे जानामीत्यर्थः—इति वि०। यथा विदे ज्ञायते त्वया—इति भ०। यथा विदे स यथा स्वात्मानं स्तुतिप्रकारं जानाति, यथा वा यागं प्रति गन्तव्यमिति जानाति अर्च—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O man, sing with thy speech, for true knowledge, the praise of soul, the lord of light, the son of Truth, and the protector of Truth.
Translator Comment
The son of Truth menus the embodiment of truth.
Meaning
To the best of your knowledge and culture and with the best of your language, worship and adore Indra, protector of stars and planets, lands and cows, language and culture, creator of the dynamics of existence and protector of its constancy. (Rg. 8-69-4)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (यथाविदे) હે ઉપાસક તું યથાવત્ વેત્તા-જ્ઞાતા બનવા માટે (गोपतिम्) વેદવાણીના સ્વામી, (सत्पतिम्) સત્પુરુષો - ઉપાસકોના પાલક (सत्यस्यसूनुम्) સત્યના પ્રેરક (इन्द्रम्) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને (अभि) ફરી-ફરી (गिरा प्रार्च) સ્તુતિથી અર્ચિત કર. (૪)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે મનુષ્ય ! તું યથાર્થ જ્ઞાતા બનવા માટે વેદવાણીના સ્વામી, ઉપાસકોના પાલક, સત્યના પ્રેરક પરમાત્માની પુનઃ-પુનઃ અથવા નિરંતર અર્ચના કર્યા કર. (૪)
उर्दू (1)
Mazmoon
سچائی کے مُحافظ کی پُوجا کرو!
Lafzi Maana
لفظی معنیٰ: پیارے مانو! (یتھا وِدے) ستیہ گیان ودیا کی پراپتیک ے لئے (اِندرم) پرمیشور کی (ابھی اَرچ) بار بار سب جگہ اَرچنا، پرارتھنا کیا کر، ہر وقت کیا کر، جو پرمیشور (گوپتم) وید بانی اور پرتھوی گئو آدی پُشوؤں کا بھی پتی ہے اور (ستیہ سونُو) ستیہ کو پیدا کرنے اور سچائی کی رغبت دینے والا ہے اور (ست پتی) ستیہ کا پالک سچائی کا محافظ ہے۔
Tashree
سّچے گیان کی پراپتیہ ے تیرا انسانی حصُول، ستیہ کے پالک محافظ کی عبادت کو نہ بھُول۔
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी विविध गुणांनी विभूषित परमेश्वर व राजाला लक्ष्य करून त्यांच्या यथार्थ गुण-कर्म-स्वभावाचे असे वर्णन करावे की त्यांनी ते जाणावे. कारण प्रशंसकाची स्तुती तेव्हाच फलदायी होते, जेव्हा ती त्याच्या अंत:करणाला स्पर्श करते ॥४॥
विषय
आता मनुष्यांना प्रेरणा केली आहे -
शब्दार्थ
हे मनुष्य, तू (गोपतिम्) सूर्य, पृथ्वी आदी लोकांचे / अथवा राष्ट्रभूमीचे पालनकर्ता (सत्यस्य सूनुम्) सत्य ज्ञान / सत्य कर्माचे प्रेरक (सत्पतिम्) सज्जनांचे रक्षक आणि दुष्टांना दंड देणाऱ्या (इन्द्रम्) परमेश्वराची वा राजाची (अभि) उद्देशून (गिरा) आपल्या वाणीने (प्र अर्च) उत्तम प्रकारे सस्तुती कर म्हणजे यांच्या गुणकर्माचे वर्णन कर (तुझी स्तुती इतकी मनोभावे केलेली असावी की (यता) ज्यायोगे परमेश्वर व राजा तुझ्या स्तुतीला जाणून घेतील (म्हणजे तुझ्या भावना समजून घेतील) ।। ४।।
भावार्थ
मनुष्यासाठी हे हितकर आहे की त्यानी विविध गुण संपन्न परमेश्वर व राजाच्या गुण - कर्म- स्वभावाचे असे वर्णऩ करावे की ते त्याची नोंद घेतील. कारण असे की स्तोतव्य वा वंदनीय देवाची भक्ताने केलेली स्तुती तेव्हाच फलदायी होते, जेव्हा ती स्तुती देवाच्या अंतःकरणाचा ठाव घेते. ।। ४।।
विशेष
या मंत्रात अर्थश्लेष अलंका आहे ।। ४।।
तमिल (1)
Word Meaning
அறிபவனான (இந்திரனை) சோமனின் பதியை சத்தியத்தின் மகனான (சத்புருஷர்களின் தலைவனை) துதியால் மொழியால் தோத்திரஞ்
செய்யவும்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal