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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 208
    ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    29

    श्रु꣣तं꣡ वो꣢ वृत्र꣣ह꣡न्त꣢मं꣣ प्र꣡ शर्धं꣢꣯ चर्षणी꣣ना꣢म् । आ꣣शि꣢षे꣣ रा꣡ध꣢से म꣣हे꣢ ॥२०८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्रु꣣त꣢म् । वः꣣ । वृत्रह꣡न्त꣢मम् । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯मम् । प्र । श꣡र्ध꣢꣯म् । च꣣र्षणीना꣢म् । आ꣣शि꣡षे꣣ । आ꣣ । शि꣡षे꣢꣯ । रा꣡ध꣢꣯से । म꣣हे꣢ ॥२०८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रुतं वो वृत्रहन्तमं प्र शर्धं चर्षणीनाम् । आशिषे राधसे महे ॥२०८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    श्रुतम् । वः । वृत्रहन्तमम् । वृत्र । हन्तमम् । प्र । शर्धम् । चर्षणीनाम् । आशिषे । आ । शिषे । राधसे । महे ॥२०८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 208
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि हम कैसे इन्द्र की किस प्रयोजन के लिए स्तुति करें।

    पदार्थ

    हे मित्रो ! (श्रुतम्) सर्वत्र प्रख्यात, (वः) तुम्हारे (वृत्रहन्तमम्) पाप, विघ्न, अविद्या आदि को अतिशय विनष्ट करनेवाले, (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (प्र शर्धम्) अतिशय बल एवं उत्साह के प्रदाता परमेश्वर, राजा या आचार्य की (राधसे) ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए व कार्यसिद्धि के लिए, और (महे) महत्ता तथा पूज्यता की प्राप्ति के लिए, मैं (आशिषे) स्तुति करता हूँ ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य जगदीश्वर, राजा व आचार्य को उनके गुण-कर्मों का वर्णन करते हुए स्मरण करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, वे अविद्या, पाप, विघ्न, विपत्ति आदि को पार करके सब कल्याणों के भाजन बनते हैं ॥५॥

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    पदार्थ

    (वः-चर्षणीनाम्) तुम मनुष्यों के “चर्षणयः-मनुष्यनाम” [निघं॰ २.३] (आशिषे) इच्छा कामनापूर्ति के लिए तथा (महे राधसे) मोक्षरूप महान् ऐश्वर्य की सिद्धि के लिये केवल इन्द्र परमात्मा है अतः उस (श्रुतम्) प्रसिद्ध विख्यात—(वृत्रहन्तमम्) पाप भावना नाशक—आवरक हन्ता—(शर्धम्) बलवान् इन्द्र परमात्मा को “मत्वर्थीयोऽ-कारश्छान्दसः” (प्र) प्रार्थित करो “उपसर्गाद् योग्यक्रियाध्याहारः”।

    भावार्थ

    मनुष्यो! तुम अपनी इच्छा कामनाओं की पूर्ति एवं महान् ऐश्वर्य सिद्धि अर्थात् मोक्षप्राप्ति के लिये पापभावनाविनाशक विध्वंसक बलवान् प्रसिद्ध इन्द्र परमात्मा की प्रार्थना किया करो॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—सुकक्षः (शोभन कक्ष अध्यात्म कक्षा में रहने वाला)॥<br>

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    विषय

    आशीर्वाद = साफल्य का महत्त्व

    पदार्थ

    मन्त्र का ऋषि ‘सुकक्ष आङ्गिरस' = ज्ञानरूप उत्तम शरण स्थानवाला, वीर्यवान्, रसमय अङ्गोंवाला सुकक्ष कहता है कि १. (आशिषे) = शुभ आशीर्वादों [blesings, benedictions] के लिए २. (राधसे)=[राध्=संसिद्धि] सफलता के लिए और ३. (महे)= महत्त्व की प्राप्ति के लिए (श्रुतम्) = उस प्रभु का सदा श्रवण करो, जोकि (वः) = तुम्हारे (वृत्रहन्तमम्) = ज्ञान को आवृत करनेवाली वासनाओं का विनाश करनेवाला है और (चर्षणीनाम्) = श्रमशील मनुष्यों का (प्रशर्धम्)=उत्कृष्ट बल है।

    मन्त्रार्थ से स्पष्ट है कि मनुष्य के दो कर्त्तव्य हैं १. प्रभु के गुण-स्तवन को सुनना और २. सदा कार्यशील बनकर ‘चर्षणि' नाम को सार्थक करना । यदि मनुष्य प्रभु के गुणों का श्रवण करता है तो प्रभु उसकी वासनाओं को विनष्ट करते हैं और जब मनुष्य श्रमशील होता है तो यह श्रम उसकी शक्ति को बढ़ाता है। श्रम करनेवाले के प्रभु भी सहायक होते हैं और श्रमशीलता वासनाओं से बचने में सहायक होती है।

    जब मनुष्य प्रभु का सेवक व श्रमशील बनता है तब उसे सदा शुभ आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, वह संसार में कभी असफल नहीं होता अपितु महत्त्व प्राप्त करता है। 'प्रभु स्मरण के साथ कार्यों में लगे रहना' कारण बनता है और आशीर्वाद, साफल्य व महत्त्व उसके कार्य होते हैं।

    भावार्थ

    हम उन विरल व्यक्तियों में होने का प्रयत्न करें जो क्रियाशीलता द्वारा सदा प्रभु-स्तवन में लगे हैं।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = ( वः ) = आप लोग ( श्रुतम् ) = वेद में विख्यात या जगत् में प्रसिद्ध ( शद्धं ) = उत्कृष्ट बलशाली ( बृत्रहन्तमं  ) = विघ्नों के नाश करने वालों में सबसे श्रेष्ठ की ( चर्षणीनां ) = प्रजाओं की ( आशिषे  ) = उत्तम कामनाओं की  पूर्ति और ( महे ) = श्रेष्ठ ( राधसे ) = साधना या ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये ( प्र ) = उपासना करो ।
     

    टिप्पणी

    २०८ - आशुष  इति पाठभेद ऋ०

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - सुकक्ष :।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वयं कीदृशम् इन्द्रं कस्मै प्रयोजनाय स्तुवीमहीत्याह।

    पदार्थः

    हे सखायः ! (श्रुतम्) सर्वत्र प्रख्यातम् (वः) युष्माकम् (वृत्रहन्तमम्) वृत्राणां पापविघ्नाविद्यादोनाम् अतिशयेन हन्तारम्, (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम्। चर्षणय इति मनुष्यनाम। निघं० २।३। (प्र शर्धम्) प्रकर्षेण बलोत्साहप्रदम्, इन्द्रं परमात्मानं राजानम् आचार्यं वा। शर्धति उत्साहयतीति शर्धस्तम्। शर्धतिः उत्साहकर्मा। निरु० ४।१९। (राधसे) ऐश्वर्याय कार्यसिद्ध्यर्थ वा। राधस् इति धननाम। निघं० २।१०। संसिद्ध्यर्थकाद् राध धातोर्निष्पन्नत्वात् कार्यसिद्धिवाचकमपि। (महे) महत्त्वपूज्यत्वप्राप्तये च। महि वृद्धौ, मह पूजायाम् वा धातोर्भावे क्विप्। अहम् (आशिषे२) स्तौमि। शिष असर्वोपयोगे, शिष्लृ विशेषणे वा धातोर्लडर्थे लिटि उत्तमैकवचने रूपम्। अत्र स्तुत्यर्थो ज्ञेयः ॥५॥

    भावार्थः

    ये जना जगदीश्वरं नृपतिमाचार्यं वा तत्तद्गुणकर्मवर्णनपूर्वकं स्मरन्ति सेवन्ते च तेऽविद्यापापविघ्नविपदादिभ्यः पारं गत्वा सर्वश्रेयोभागिनो जायन्ते ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९३।१६, आशुषे इति पाठः। २. आशिषे अधिगच्छामि प्रार्थये इत्यर्थः—इति वि०। आशिषे इति श्वयतेरर्थनाकर्मणः शवतेः श्रयतेः वा लटि रूपम्, अभिगच्छामि—इति भ०। अश्नोतेर्लेटि उत्तमे इटि सिप् प्रत्ययः। छन्दस्यपि दृश्यते पा० ६।४।७३ इत्याडागमः—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O men, for the sake of great munificence and fulfillment of the desires of mankind, worship the Mighty God, highly spoken of in the Vedas !

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    Meaning

    O lord of light, refulgent and glorious stars and planets such as sun, earth and moon bear your power and potential and they bear the jewels of life for the generous yajamana. O celebrants, celebrate Indra and pray for the devotees that the lord may bless. (Rg. 8-93-26)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वः चर्षणीनाम्) તું મનુષ્યોની (आशिषे) ઇચ્છા-કામના પૂર્તિને માટે તથા (महे राधसे) મોક્ષરૂપ મહાન ઐશ્વર્યની સિદ્ધિ માટે માત્ર ઇન્દ્ર પરમાત્મા છે તેથી તે (श्रुतम्) પ્રસિદ્ધ- વિખ્યાત, (वृत्रहन्तमम्) પાપભાવના નાશક-આવરક હન્તા, (शर्धम्) બળવાન ઇન્દ્ર પરમાત્માને (प्र) પ્રાર્થિત કરો. (૫)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : મનુષ્યો ! તમે પોતાની ઇચ્છા-કામનાઓની પૂર્તિ અને મહાન ઐશ્વર્ય સિદ્ધિ અર્થાત્ મોક્ષ પ્રાપ્તિ માટે પાપભાવવિનાશક, વિધ્વંસક, બળવાન, પ્રસિદ્ધ ઇન્દ્ર પરમાત્માની પ્રાર્થના કર્યા કરો. (૫)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    تیرے ملنے کی ہوس!

    Lafzi Maana

    ہے عابد عرفان انسانو! جو ایشور وید شاستر اور ادب و اخلاق کے عالمی ذخیرے کے ذریعے مشہور عالم ہے اور جو جہالت کے پردوں کو پھاڑ دیتا ہے، تتھا منش ماتر (انسانوں) میں جو سب سے بالاتر طاقتِ عظیم ہے، اُس کو حآصل کرنے کے لئے میں کوشاں ہوں۔ جس سے آپ سب کو اور مجھے اُس کا وصال نصیب ہو۔

    Tashree

    جہل اور کفر کے پردوں کو ہٹانے والے، تیرے ملنے کی فقط ایک ہوس ہے باقی۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे जगदीश्वर, राजा व आचार्य यांना त्यांच्या गुणकर्मांचे वर्णन करत स्मरण करतात व त्यांची सेवा करतात ते अविद्या, पाप, विघ्न, विपत्ती इत्यादी पार करून सर्व कल्याणाचे भाजन (पात्र) बनतात. ॥५॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात आम्ही इंद्राची स्तुती कशा प्रकारे आणि कोणत्या हेतूसाठी करावी, याविषयी सांगितले आहे -

    शब्दार्थ

    मित्रहो, (वः) तुमचे (वृक्षहन्तमम्) पाप, विघ्न, अविद्या आदींना नष्ट करणाऱ्या (श्रृतम्) सुविख्यात आणि (चर्षणीनाम्) मनुष्यांना (प्र शर्घम्) शक्ती व उत्साह देणाऱ्या त्या परमेश्वराची, राजाची वा आचार्याची मी (एक उपासक) (राधसे) ऐश्वर्य प्राप्तीसाठी व कार्यसिद्धीसाठी आणि (महे) महत्ता व पूज्यता प्राप्तीसाठी (आशिषे) स्तुती करतो।। ५।।

    भावार्थ

    जे लोक जगदीश्वराच्या, राजाच्या वा आचार्याच्या गुण - कर्मांचे वर्णन करीत त्यांचे स्मरण करतात आणि त्यांची सेवा करतात, ते अविद्या, पाप, विघ्न, विपत्ती आदींना दूर सारून सर्व प्रकारचे कल्याण प्राप्त करतात।। ५।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சிறப்பான விருத்திரனைக் கொல்லுபவனான பலவானாய் மனிதர்களின் தலைவனை மகத்தான ஐசுவரியத்திற்கு நாடுகிறேன்.

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