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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 209
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    26

    अ꣡रं꣢ त इन्द्र꣣ श्र꣡व꣢से ग꣣मे꣡म꣢ शूर꣣ त्वा꣡व꣢तः । अ꣡र꣢ꣳ शक्र꣣ प꣡रे꣢मणि ॥२०९

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡र꣢꣯म् । ते꣣ । इन्द्र । श्र꣡व꣢꣯से । ग꣣मे꣡म꣢ । शू꣣र । त्वा꣡व꣢꣯तः । अ꣡र꣢꣯म् । श꣣क्र । प꣡रे꣢꣯मणि ॥२०९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरं त इन्द्र श्रवसे गमेम शूर त्वावतः । अरꣳ शक्र परेमणि ॥२०९


    स्वर रहित पद पाठ

    अरम् । ते । इन्द्र । श्रवसे । गमेम । शूर । त्वावतः । अरम् । शक्र । परेमणि ॥२०९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 209
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में इन्द्र परमात्मा से प्रार्थना की गई है।

    पदार्थ

    हे (शूर) विक्रमी (इन्द्र) ऐश्वर्यशाली परमात्मन् ! हम (त्वावतः) जिसके तुल्य अन्य कोई न होने से जो तू अपने समान ही है, ऐसे (ते) तेरे (श्रवसे) यश को पाने के लिए अथवा यशोगान के लिए (अरम्) पर्याप्तरूप से, तुझे (गमेम) प्राप्त करें। हे (शक्र) शक्तिशालिन्, सब कार्यों को करने में समर्थ जगदीश्वर ! हम (परेमणि) जिससे तेरा साक्षात्कार होता है, उस परा विद्या में (अरम्) पर्याप्तरूप में (गमेम) पारंगत हों ॥६॥

    भावार्थ

    अनुपम परमेश्वर का कीर्तिगान करने और उसके स्वरूप का हस्तामलकवत् साक्षात्कार करने में सबको प्रवृत्त होना चाहिए। केवल अपरा नामक विद्या की प्राप्ति से ही सन्तोष नहीं कर लेना चाहिए, प्रत्युत परा विद्या भी सीखनी चाहिए ॥६॥

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    पदार्थ

    (शूर-इन्द्र) हे विक्रमशील या विविध प्रगतिशील परमात्मन्! (ते) तेरे (श्रवसे) श्रवणीय यश के लिये “श्रवः श्रवणीयं यशः” [निरु॰ ११.९] (त्वावतः) हम तेरे वाले—तेरे आश्रय वाले—तुझे अपना बना चुके हुए (अरं गमेम) समर्थ हो जावें, तथा (शक्र परेमणि-अरम्) हे परमात्मन्! तेरे परत्वे-पर-अभीष्ट मोक्षस्वरूप के निमित्त भी पूर्ण समर्थ हो सकें। “परेमणि-पर शब्दात्, भावे-इमनिच् प्रत्ययः” “पृथ्वादिभ्य इमनिज् वा” [अष्टा॰ ५.१.१२१]।

    भावार्थ

    हे विक्रमशील परमात्मन्! संसार में फैले हुए तेरे सुनने योग्य विक्रम यश को अपने जीवन में धारणार्थ तुझे अपनाकर हम समर्थ होवें तथा तेरे पर—अभीष्ट मोक्षस्वरूप के निमित्त भी हम तेरे बने हुए पूर्ण समर्थ होवें यह हमारी आकांक्षा है॥६॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय उपासनीय देव जिसका है)॥<br>

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    विषय

    सत्सङ्ग व सदाचरण

    पदार्थ

    इस मन्त्र का ऋषि 'वामदेव गोतम' है- सुन्दर दिव्य गुणोंवाला, प्रशस्त इन्द्रियोंवाला अथवा उत्तम वेदवाणियोंवाला। यह प्रभु से प्रार्थना करता है कि (इन्द्र) = हे परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (शूर) = [शृ हिंसायाम्] सब वासनाओं का हिंसन करनेवाले प्रभो! हम (ते)= आपके (श्रवसे) = ज्ञान के श्रवण के लिए (त्वावतः) = आप-जैसे ब्रह्मनिष्ठ पुरुष के समीप (अरं गमेम) = खूब प्राप्त हों और (शक्र) = हे सर्वशक्तिमन् प्रभो! (परेमणि) = उत्कृष्ट मार्ग पर [एमन्=course, way] (अरं गमेम) = खूब चलें।

    उल्लिखित मन्त्रार्थ में सत्सङ्ग को कारण बताया गया है, सदाचरण को उसका कार्य । हमें सदा उन लोगों का सङ्ग करना जो (त्वावतः) = प्रभु - जैसे हों। ब्रह्मनिष्ठ व्यक्तियों के सङ्ग से हमारी बुद्धि सुन्दर बनती है और हम उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करनेवाले बनते हैं। वेद के शब्दों में हमारा सङ्ग ‘ज्ञानी ब्राह्मणों, रक्षा में तत्पर क्षत्रियों व दानी वैश्यों से हो । इस प्रकार उत्कृष्ट सङ्ग को पाकर हम अपने ज्ञान को तो बढ़ाएँ ही, साथ ही हम सदा उत्कृष्ट मार्ग पर चलनेवाले बनें। प्रभुकृपा से हम सत्सगङ्ग को प्राप्त कर सदाचारी हों । 

    भावार्थ

    सत्सङ्ग हमारे जीवन के मार्ग को उत्कृष्ट बनाए।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( शक्र ) = हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! ( शूर ) = अनन्त सामर्थ्य युक्त  ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! ( त्वावत: ) = आपके ही तुल्य  ( ते श्रवसे ) = आपके यश के लिए  ( अरम् गमेम ) = सदा सर्वथा प्राप्त होवें और  ( परेमणि ) = मोक्षदायक समाधि में  ( अरम् ) = हम सर्वथा प्राप्त होवें ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे परमेश्वर ! आप सर्वशक्तिमान् और अनन्त सामर्थ्य युक्त हैं। आप ही अपने तुल्य हैं। कृपया हमको ऐसा सामर्थ्य दीजिये, जिससे आपके यश और ध्यान में मग्न होकर हम मोक्ष को प्राप्त हो सकें ।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = हे ( इन्द्र ) = आत्मन् ! हे ( शूर ) = शत्रुओं के हिंसक ! ( त्वावत: ते ) = तेरे समान !अद्वीतीय तेरे ही ( अवसे ) = कीर्तिगान करने के लिये हम ( अरं गमेम ) = खूब लगे रहें । हे ( शक्र ) = सर्वशक्तिमन् ! ( परमणि ) = तेरी परमता सौंदर्य, परम रूप में ही हम ( अरं ) = अच्छी प्रकार ( गमेम ) = लीन रहें, मग्न हों ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - वामदेवो:।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रं परमात्मानं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (शूर) विक्रमशालिन् (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! वयम् (त्वावतः१) त्वत्सदृशस्य (ते) तव (श्रवसे२) यशसे, त्वदीयं यशः प्राप्तुं, त्वदीयं यशो गातुं वेत्यर्थः। श्रवः श्रवणीयं यशः। निरु० ११।९। (अरम्) अलम् पर्याप्तम्, रलयोरभेदः। त्वाम् (गमेम) गच्छेम, प्राप्नुयाम। अत्र गम्लृधातोर्लिङि बहुलं छन्दसि। अ० २।४।७३ इति शपो लुकि गच्छादेशाभावः। हे (शक्र) शक्तिशालिन् सर्वकर्मक्षम जगदीश्वर ! शक्लृ शक्तौ धातोः स्फायितञ्चिवञ्चिशकि० उ० २।१३ इति रक् प्रत्ययः। वयम् (परेमणि३) परत्वे, अथ परा यया तदक्षरमधिगम्यते मु० उप० २।५ इति लक्षणलक्षितायां पराविद्यायामित्यर्थः। परस्य भावः परेमा तस्मिन् परेमणि। जनिमृङ्भ्यामिमनिन् उ० ४।१५० इत्यत्र परशब्दस्य पाठाभावेऽपि बाहुलकाद् औणादिकः इमनिन् प्रत्ययः। नित्वादाद्युदात्तत्वम्। (अरम्) पर्याप्तम्, गमेम पारंगता भवेम ॥६॥

    भावार्थः

    अनुपमस्य परमेश्वरस्य कीर्तिं गातुं परमं स्वरूपं च हस्तामलकवत् साक्षात्कर्तुं सर्वैः प्रवर्तितव्यम्, न केवलमपराख्याया विद्यायाः प्राप्त्या सन्तोष्टव्यम्, प्रत्युत पराविद्याप्यधिगन्तव्या ॥६॥

    टिप्पणीः

    १. द्रष्टव्यम्—१९३ संख्यकमन्त्रेऽस्य शब्दस्य व्याख्यानम्। २. ते तव श्रवसे श्रवणीयां त्वदीयां कीर्तिं श्रोतुम्—इति सा०। ३. अयं शब्दो वेदेषु न क्वचिदन्यत्र प्रयुक्तः। “परम् उत्कृष्टं स्वर्गाख्यं स्थानम्। तत्र गम्यते येन सः परेमा यज्ञः ज्योतिष्टोमादिः तत्रेत्यर्थः”—इति वि०। पॄ पालनपूरणयोः इत्यस्मात् परेमा, तस्मिन्निमित्ते तद्रक्षणार्थं च अरं गमेमहि—इति भ०। परेमणि, परत्वे उत्कर्षनिमित्तम्—इति सा०। परेमणि परमुत्कृष्टं मोक्षपदं गम्यते येन तस्मिन् समाधौ—इति तुलसी। परात् परस्मिंस्त्वयि अरम् अलं तिष्ठेम, त्वय्येव वयमनुरक्ता भवेम—इति भगवदाचार्यः। पर अभीष्ट मोक्षस्वरूप के निमित्त—इति ब्रह्ममुनिः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Valiant God, may we continue singing Thy fame, the fame of one like Thee. O Omnipotent God, may we fully realise Thee through deep meditation!

    Translator Comment

    $ The fame of one like Thee means Thy fame alone, as none else ii like God who is Unique and Incomparable. Griffith says the meaning of the words ‘Premani' is uncertain. Stevenson translates this as 'In our most solemn sacrifice'. The word प्रेमाणि means परमुत्कृष्टं मोक्षपदं गम्यने येन तस्मिनसमाधौ i.e., deep meditation.

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    Meaning

    Indra, lord of boundless power and holy action, under your kind care and protection, let us reach close enough to your adorable presence and your divine glory in song and deep meditation.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शूर इन्द्र) હે વિક્રમશીલ વા વિવિધ પ્રગતિશીલ પરમાત્મન્ ! (ते) તારા (श्रवसे) શ્રવણીય યશને માટે (त्वावतः) અમે તારાવાળા-તારા આશ્રયવાળા તને પોતાનો બનાવીને (अरं गमेम्) સમર્થ બની જાય; તથા (शक्र परेमणि अरम्) હે પરમાત્મન્ ! તારા પરત્વ-પર-અભીષ્ટ મોક્ષસ્વરૂપનાં કારણે પૂર્ણ સમર્થ બની શકીએ. (૬)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે વિક્રમશીલ પરમાત્મન્ ! સંસારમાં પ્રસરેલ તારા સાંભળવા યોગ્ય વિક્રમ યશને અમારા જીવનમાં ધારણ કરવા માટે તેને અપનાવીને અમે સમર્થ બનીએ તથા તારા પર-અભીષ્ટ મોક્ષ સ્વરૂપને કારણે પણ અમે તારા બનીને પૂર્ણ સમર્થ બનીએ એ અમારી આકાંક્ષા છે. (૯)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    مخزنِ طاقت

    Lafzi Maana

    شکتیوں کے بھنڈار پرمیشور! بل اور طاقت میں آپ کا ثانی خود آپ ہیں لامثال۔ جس کی معرفت کو گانے یا حمد و ثنا کے لئے ہم سب اکٹھے ہو کر آپ کی پرستش کرتے ہیں آپ کو حاصل کرنے کے لئے۔

    Tashree

    ہے اِندر تیری کیرتی گا لے میں ہم سب لگ رہیں، اور اِسی شاہراہ سے تُجھ کو پربھُو حاصل کریں۔

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    অরং ত ইন্দ্র শ্রবসে গমেম শূর ত্বাবতঃ।

    অরং শক্র পরেমণি।।৮৪।।

    (সাম ২০৯)

    পদার্থঃ (শক্র) হে সর্বশক্তিমান পরমাত্মা! (শূর) অনন্ত সামর্থ্যযুক্ত (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (ত্বাবতঃ) তোমারই তুল্য (তে শ্রবসে) তোমার যশের জন্য আমরা (অরম্ গমেম) সদা সর্বদা (অরম্) প্রাপ্ত হব এবং (পরেমণি) মোক্ষদায়ক সমাধিকে (অরম্) আমরা সর্বদা প্রাপ্ত হব।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে পরমেশ্বর! তুমি সর্বশক্তিমান এবং অনন্ত সামর্থ্যযুক্ত। তোমার তুলনা তুমি নিজেই । তুমি কৃপা করে আমাদের এমন সামর্থ্য দান করো যাতে তোমার যশ এবং ধ্যানে মগ্ন হয়ে আমরা মোক্ষসুখ প্রাপ্ত হই।।৮৪।।

     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    अनुपम परमेश्वराचे कीर्तिगान गाण्यासाठी व त्याच्या स्वरूपाचा हस्तामलकवत् साक्षात्कार करण्यासाठी सर्वांनी प्रवृत्त झाले पाहिजे. केवळ अपरा नामक विद्येच्या प्राप्तीनेच संतोष करता काम नये, तर परा विद्या ही शिकली पाहिजे ॥६॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात इन्द्र या नावाने परमेश्वराला प्रार्थना केली आहे -

    शब्दार्थ

    हे (शूर) विक्रमी (इन्द्र) ऐश्वर्यशाली परमात्मा, (त्वावतः) तुझ्यासारखा अन्य कोणी नसल्यामुळे तू तुझ्यासारखा एकमेव आहेस. (श्रवसे) यशाच्या प्राप्तीकरिता वा (ते) तुझे यशोगान करण्याकरिता आम्ही उपासक (अरम्) पर्याप्त रूपेण तुला (गमेम) प्राप्त करावे. हे (शख्र) सर्व कार्ये करण्यात समर्थ असलेल्या हे शक्तिशाली परमेश्वरा, (परेमणि) ज्याद्वारे तुझा साक्षात्कार होतो, त्या परा विद्येमध्ये (गमेम) आम्ही पारंगत व्हावे (अशी इच्छा करीत आहोत) ।। ६।।

    भावार्थ

    अनुपम परमेश्वराचे कीर्तिगान करण्यासाठी आणि त्याचे गहन वा अतर्क्य स्वरूप हस्तामलकवत जाणून घेण्यासाठी सर्व लोकांनी प्रवृत्त व्हायला हवे. केवळ अपरा विद्या प्राप्त करून (भौतिक संपदा व लौकिक यश संपादून) संतुष्ट राहू नये तर परा विद्योत (अध्यात्म विद्येत) प्रवीण व्हायला पाहिजे. ।। ६।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    வீரனே [1] இந்திரனே! உன் கீர்த்தியைச் செவியுற அடைவதற்கான வழியை அடையலாமோ! உன்னைப் போலுள்ள பரம ஸ்தானத்தில் அடைவதற்கான வழியை அணுகலாமோ?

    FootNotes

    [1] இந்திரனே - பெருமையுடன் ஆனவனே

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