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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 217
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    24

    बृ꣣ब꣡दु꣢क्थꣳ हवामहे सृ꣣प्र꣡क꣢रस्नमू꣣त꣡ये꣢ । सा꣡धः꣢ कृ꣣ण्व꣢न्त꣣म꣡व꣢से ॥२१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ꣣ब꣡दु꣢क्थम् । बृ꣣ब꣢त् । उ꣣क्थम् । हवामहे । सृप्र꣡क꣢रस्नम् । सृ꣣प्र꣢ । क꣣रस्नम् । ऊत꣡ये꣢ । सा꣡धः꣢꣯ । कृ꣣ण्व꣡न्त꣢म् । अ꣡व꣢꣯से ॥२१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृबदुक्थꣳ हवामहे सृप्रकरस्नमूतये । साधः कृण्वन्तमवसे ॥२१७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    बृबदुक्थम् । बृबत् । उक्थम् । हवामहे । सृप्रकरस्नम् । सृप्र । करस्नम् । ऊतये । साधः । कृण्वन्तम् । अवसे ॥२१७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 217
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 11;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि हम अपनी रक्षा के लिए कैसे परमात्मा और राजा का आह्वान करें।

    पदार्थ

    प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। हम (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीय कीर्तिवाले, (सृप्रकरस्नम्) व्यापक कर्मों में निष्णात, और (अवसे) प्रगति के लिए (साधः) सूर्य, वायु, अग्नि, चाँदी, सोना आदि साधन-समूह को (कृण्वन्तम्) उत्पन्न करनेवाले इन्द्र नामक परमात्मा को (ऊतये) रक्षा के लिए (हवामहे) पुकारते हैं ॥ द्वितीय—राजा के पक्ष में। हम प्रजाजन (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीय कीर्तिवाले, (सृप्रकरस्नम्) घुटनों तक लम्बी बाहुओंवाले अथवा शत्रुनिग्रह, प्रजापालन आदि शुभ कर्मों में व्याप्त भुजाओंवाले और (अवसे) प्रजाओं की प्रगति के लिए (साधः) शस्त्रास्त्र-ज्ञानविज्ञान-चिकित्सा आदि की सिद्धि को (कृण्वन्तम्) करनेवाले इन्द्र राजा को (ऊतये) सुरक्षा के लिए (हवामहे) पुकारते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी जन सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की और सुयोग्य राजा की सहायता से ही अपनी और समाज की प्रगति कर सकते हैं, इसलिए सबको उनकी सहायता माँगनी चाहिए ॥४॥

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    पदार्थ

    (बृबदुक्थम्) बृहत्-महान् उक्थ-उपदेश वचन वेद जिसका है हमारे लिये अथवा बृबत्—वक्तव्य-स्तुतिवचन जिसके लिए हमारा है ऐसे “बृबदुक्थो महदुक्थो वक्तव्यमस्मा उक्थमिति वा” [निरु॰ ६.४] तथा (सृप्रकरस्नम्) सर्पणशील सर्वत्र व्याप्त बाहुएँ निर्माण पालनरूप गुण हैं जिसके ऐसे “सृप्लृ गतौ” [भ्वादि॰ ततो रक् उणा॰ २.१३] “करस्नौ बाहूनाम” [निघं॰ २.४] एवं (साधः कृण्वन्तम्) कर्मानुरूप फलसिद्धि करनेवाले इन्द्र—परमात्मा को (ऊतये) संसार में रक्षा के लिये, तथा (अवसे) अपवर्गप्राप्ति के लिये (हमामहे) अपने आत्मा में बुलाते हैं—उपासित करते हैं।

    भावार्थ

    जो परमात्मा हमें वेदरूप महान् उपदेश देता है या जिसके लिए हमारा स्तुतिवचन है तथा कर्मफल सिद्ध करने वाला है उसको संसार में अपनी रक्षार्थ और अपवर्गप्राप्ति के लिए अपनी आत्मा में बुलाते हैं—उपासित करते हैं॥४॥

    विशेष

    ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से अतनशील गमनशील विद्याविषय में गति रखनेवाला)॥<br>

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    विषय

    प्रभु बृबदुक्थ हैं

    पदार्थ

    निरुक्त ६।१।४ में ‘बृबदुक्थं' शब्द का अर्थ ‘महदुक्थो वक्तव्यमस्मा उक्थमिति बृबदुक्थो' इन शब्दों में ‘महान् स्तुतिवाला अथवा कहने योग्य स्तुतिवाला' किया है। वस्तुत: मनुष्य को प्रभु के ही स्तोत्रों का उच्चारण करना चाहिए। उसके बनाये हुए संसार के और घट-घट में उसकी रचना के सौन्दर्य को देखकर उसकी महिमा का कीर्तन करना ही 'मेधातिथि काण्व' का काम है। जो व्यक्ति समझदार है, वह प्रभु का ही कीर्तन करता है। प्रभु (सृप्रकरस्नम्) = हैं। सर्पणशील भुजाओंवाले तथा कर्मों से वेष्टित भुजाओंवाले हैं – सदा स्वाभाविकरूप से क्रिया में लगे हैं। प्रभु का स्तोता भी प्रभु का अनुकरण करते हुए क्रियाशील हाथोंवाला बनता है। वह सदा लोकहित में लगा रहता है। किस लिए? (ऊतये) = रक्षा के लिए। वस्तुतः क्रियाशीलता ही हमें वासनाओं का शिकार होने से बचाती है। यदि इस प्रकार प्रभु-कीर्तन के साथ जीवनभर कर्म की प्रक्रिया चलती है तो प्रभु हमें सफलता, सिद्धि या मोक्ष प्राप्त कराते हैं। मन्त्र में कहते हैं–(साध:) = सिद्धि को, मोक्ष को (कृण्वन्तम्) = करते हुए उस प्रभु को हम (हवामहे) = पुकारते हैं, जिससे (अवसे) = हम भी उस प्रभु के भाग का - दिव्यता के अंश का अपने में दोहन कर सकें [अव्= भागदुघे]।

    एवं, वह जीवन जो प्रभु-कीर्तन के साथ क्रियामय बनता है, अवश्य सफल होता है । इसी प्रकार का जीवन बिताना ही बुद्धिमत्ता है।
    इस मन्त्र का ऋषि ‘मेधातिथि' बुद्धिमत्ता के मार्ग पर चल रहा है। यह एक दिन में ऐसा नहीं बन गया है। इसी बात को स्पष्ट करने के लिए इसका पूरा नाम 'मेधातिथि काण्व' है- ई-कण-कण करके यह अपने में दिव्यता का संग्रह करनेवाला है। यह जीवन ही सुन्दर जीवन है।

    भावार्थ


     प्रभु-कीर्तन व क्रियाशीलता से हम अपने में दिव्यता का सम्पादन करें।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भाग = हम ( ऊतये ) = रक्षा के लिये ( सृप्रकरस्नम् ) = अपने हाथों को फैलाये ( वृबदुक्थं ) = अति अधिक ख्यातिमान् और ( अवसे ) = प्रजा की रक्षा करने के लिये ( साध: कृण्वन्तं ) = साधन करने वाले राजा के समान परमेश्वर को बुलाते हैं ।  

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - मेधातिथिः।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वयं स्वरक्षायै कीदृशं परमात्मानं राजानं चाह्वयेमेत्याह।

    पदार्थः

    प्रथमः—परमात्मपरः। वयम् (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीयकीर्तिम्। बृबदुक्थो महदुक्थो, वक्तव्यमस्मा उक्थमिति वा। निरु० ६।४। (सृप्रकरस्नम्) व्यापकेषु कर्मसु निष्णातम्। सर्पन्ति गच्छन्ति व्याप्नुवन्तीति सृप्राः, सृप्लृ गतौ धातोः ‘स्फायितञ्चि०’ उ० २।१३ इति रक्। क्रियन्ते इति कराः कर्माणि। सृप्रेषु सृप्तेषु विस्तीर्णेषु करेषु कर्मसु स्नातीति तम्। किञ्च (अवसे) प्रगतये। अव रक्षणगत्यादिषु, धातोः ‘तुमर्थे सेसेनसेऽसेन्’ अ० ३।४।९ इति तुमर्थे असेन् प्रत्ययः। नित्त्वात् ‘ञ्नित्यादिर्नित्यम्’ अ० ६।१।१९७ इत्याद्युदात्तत्वम्। (साधः२) सूर्यवाय्वग्निरजतसुवर्णादिरूपं साधनसमूहम्। साध संसिद्धौ धातोः ‘सर्वधातुभ्योऽसुन्’ उ० ४।१९० इत्यसुन्। (कृण्वन्तम्) उपस्थापयन्तम् इन्द्रं परमात्मानम्। कृवि हिंसाकरणयोः स्वादिः, शतरि रूपम्। (ऊतये) रक्षणाय (हवामहे) आह्वयामः ॥ अथ द्वितीयः—राजपरः। वयम् प्रजाजनाः (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीयकीर्तिम् (सृप्रकरस्नम्) आजानुबाहुम् यद्वा शत्रुनिग्रहप्रजापालनादिकर्मसु व्याप्तभुजम्। सृप्रौ आजानुलम्बिनौ सत्कर्मसु व्यापनशीलौ वा करस्नौ बाहू यस्य तम्। सृप्रः सर्पणात्। करस्नौ बाहू कर्मणां प्रस्नातारौ। निरु० ६।१७। किञ्च (अवसे) प्रजानां प्रगतये (साधः) शस्त्रास्त्रज्ञानविज्ञानचिकित्सादिसिद्धिम् (कृण्वन्तम्) कुर्वन्तम् इन्द्रं राजानम् (ऊतये) सुरक्षायै (हवामहे) आह्वयामः ॥४॥ अत्र श्लेषालङ्कारः।

    भावार्थः

    पुरुषार्थिनो जनाः सर्वशक्तिमतः परमेश्वरस्य नृपतेश्च साहाय्येनैव स्वात्मनीनां सामाजिकीं च प्रगतिं कर्त्तुं पारयन्तीति सर्वैः तयोः साहाय्यं प्रार्थनीयम् ॥४॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।३२।१०, ‘साधः’ इत्यत्रः ‘साधु’ इति पाठः। २. विवरणकृद्भरतस्वामिभ्यां तु ऋग्वेदवत् ‘साधु’ इति पाठं मत्वा व्याख्यातम्। ‘साधः साधकं धनं कृण्वन्तं प्रयच्छन्तम्’—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O King for the protection of the people, and for self-protection, we call thee who is highly lauded, and is long armed.

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    Meaning

    We invoke the lord divine and master ruler who is highly adorable, of long and supple arms of generosity, and always does good for the protection and promotion of all. (Rg. 8-32-10)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (बृबदुक्थम्) અમારે માટે બૃહત્ = મહાન ઉક્થ = ઉપદેશ વચન જેના છે અથવા અમારા બૃબત્ = વક્તવ્ય-સ્તુતિ વચનો જેના માટે છે એવા, (सृप्रकरस्नम्) જેના સર્પણશીલ-સર્વત્ર વ્યાપ્ત ભુજાઓવાળા તથા નિર્માણ, પાલન રૂપ ગુણ છે એવા તથા (साधः कृण्वन्तम्) કર્મને અનુરૂપ ફળસિદ્ધિ કરનાર ઇન્દ્ર-પરમાત્માને (ऊतये) સંસારમાં રક્ષાને માટે તથા (अवसे) અપવર્ગ = મોક્ષ પ્રાપ્તિને માટે (हवामहे) અમારા આત્મામાં બોલાવીએ છીએ - ઉપાસિત કરીએ છીએ. (૪)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જે પરમાત્મા અમને વેદરૂપ ઉપદેશ આપે છે અથવા જેના માટે અમારા સ્તુતિ વચન છે તથા કર્મફળ સિદ્ધ કરનાર છે; તે પરમાત્માને સંસારમાં અમારી રક્ષા માટે અને મોક્ષ પ્રાપ્તિ માટે પોતાના આત્મામાં બોલાવીએ છીએ-ઉપાસિત કરીએ છીએ. (૪)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    مُحافظ کو پُکار رہے ہیں!

    Lafzi Maana

    ویدوں کے منتر (بربُداکتھم) جس کی حمد و ثنا گا رہے ہیں جو ہماری (اُوتیئے سُوپرکرسنم) حفاظت کے لئے اپنے ہاتھ بڑھا رہا ہے اور جو عابدوں کی (سادھ کرنونتم) عبادت و کامیاب کر دیتا ہے، ہم (اوسے ہوا مہے) اپنی حفاظتک ے لئے اُس کو بُلاتے ہیں۔

    Tashree

    جس نے اُٹھائے ہاتھ ہیں رکھشا ہماری کیلئے، وید بانی کی تلاوت سے بُلاتے ہم اُسے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    पुरुषार्थी लोक सर्वशक्तिमान परमेश्वर व सुयोग्य राजाच्या साह्यानेच आपली व समाजाची प्रगती करू शकतात, त्यासाठी सर्वांनी त्यांचे साह्य मागितले पाहिजे ॥४॥

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    विषय

    परमेश्वराला आणि राजाला आवाहन - रक्षणासाठी

    शब्दार्थ

    (प्रथम अर्थ) (परमात्म पर) - आम्ही (उपासक) (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीय, कीर्तिवान, (सुप्रक र स्नम्) आणि व्यापक महान कर्म करण्यात निष्णात तसेच (अवसे) उन्नतीसाठी (साधः) जो आमच्यासाठी सूर्य, वायू, अग्नी, चांदी, स्वर्ण आदी साधने (कृष्णन्तम्) उत्पन्न करतो, त्या इन्द्र नाम परमेश्वराला (ऊतये) आमच्या सुरक्षेसाठी (हवामहे) बोलावतो, हाक मारतो।। द्वितीय अर्थ - (राजापर) - आम्ही प्रजाजन (बृबदुक्थम्) प्रशंसनीय व कीर्तिमान (सुप्रकरस्नम्) राजाला की ज्याचे बाहू गुडघ्यापर्यंत लांब आहे (आजानुबाहू) अथवा शत्रुनिग्रह कार्यात, प्रजापालन आदी कार्यात ज्याचे हात (शासन- व्यवस्था) दूर दूरपर्यंत गेलेली आहे, तसेच जो (अवसे) प्रण्वन्तम्) प्रजेच्या उत्कर्षाकरिता जो राजा (साधः) शस्त्रास्त्र निर्मिती, ज्ञान-विज्ञान, आरोग्य पालन आदींची (कृण्वन्तम्) जो उत्पादन करतो, त्या इंद्र राजाला आम्ही प्रजाजन (ऊतये) आपल्या रक्षणासाठी (हवामहे) आवाहन करतो.।। ४।।

    भावार्थ

    पुरुषार्थीजन सर्वशक्तिमान परमेश्वराच्या आणि सुयोग्य राजाच्या साह्यानेच स्वतःची व समाजाची प्रगती घडवू शकतात. म्हणून सर्व उपासकांनी / प्रजाजनांनी त्यांचेच साह्य मागावे.।।४।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    நீண்ட கைகள் உள்ளவனை காப்படைய [1] சாதக ஐசுவரியத்தை செய்பவனுமான பெரிய கானஞ்செய்பவனை ரட்சிப்பிற்காக அழைப்போம்.

    FootNotes

    [1] சாதக - உதவியான

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