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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 218
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    57

    ऋ꣣जुनीती꣢ नो꣣ व꣡रु꣢णो मि꣣त्रो꣡ न꣢यति वि꣣द्वा꣢न् । अ꣣र्यमा꣢ दे꣣वैः꣢ स꣣जो꣡षाः꣢ ॥२१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ꣣जुनी꣢ती । ऋ꣣जु । नीती꣢ । नः꣣ । व꣡रु꣢꣯णः । मि꣣त्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । न꣣यति । विद्वा꣢न् । अ꣣र्यमा꣢ । दे꣣वैः꣢ । स꣣जो꣡षाः । स꣣ । जो꣡षाः꣢꣯ ॥२१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋजुनीती नो वरुणो मित्रो नयति विद्वान् । अर्यमा देवैः सजोषाः ॥२१८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋजुनीती । ऋजु । नीती । नः । वरुणः । मित्रः । मि । त्रः । नयति । विद्वान् । अर्यमा । देवैः । सजोषाः । स । जोषाः ॥२१८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 218
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 11;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह प्रार्थना है कि इन्द्र से अधिष्ठित वरुण, मित्र आदि हमें सरल मार्ग से ले चलें।

    पदार्थ

    प्रथम—अध्यात्म के पक्ष में। हे इन्द्र परमात्मन् ! आपकी सहायता से (देवैः) चक्षु आदि इन्द्रियों के साथ (सजोषाः) प्रीतिवाला, (विद्वान्) ज्ञानी (वरुणः) पापों से निवारण करनेवाला जीवात्मा, (मित्रः) प्राण, और (अर्यमा) मन (नः) हमें (ऋजुनीती) सरल धर्ममार्ग से (नयति) ले चलें ॥ द्वितीय—राष्ट्र के पक्ष में। हे इन्द्र राजन् ! (देवैः) अपने-अपने अधिकार में व्यवहार करनेवाले राजपुरुषों के साथ (सजोषाः) प्रीतिवाला अर्थात् अनुकूलता रखनेवाला (विद्वान्) विद्वान् विद्यासभाध्यक्ष, (वरुणः) शत्रुनिवारक, शस्त्रास्त्रधारी सेनाध्यक्ष, (मित्रः) कुत्सित आचरणरूप मृत्यु से त्राण करनेवाला धर्म-सभा का अध्यक्ष और (अर्यमा) न्यायसभा का अध्यक्ष (नः) हम प्रजाजनों को (ऋजुनीती) सरल धर्ममार्ग से (नयति) ले चलें ॥ तृतीय—विद्वान् के पक्ष में। (देवैः) विद्या और व्रत-शिक्षा का दान करनेवाले सब अध्यापकों से (सजोषाः) सामञ्जस्य रखता हुआ (वरुणः) श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभाववाला, छात्रों द्वारा आचार्यरूप में वरण किया गया व छात्रों को शिष्यरूप से वरनेवाला, (मित्रः) पापरूप मरण से त्राण करानेवाला, (अर्यमा) न्यायकारी (विद्वान्) विद्वान् आचार्य (नः) हम शिष्यों को (ऋजुनीती) सरल विद्या-दान और व्रत-पालन करने की नीति से (नयति) आगे ले चले, अर्थात् हमें सुयोग्य विद्या-व्रत-स्नातक बनाये ॥५॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥५॥

    भावार्थ

    शरीर में विद्यमान जीवात्मा, प्राण, मन आदि देव परमात्मा के पास से बल प्राप्त कर मनुष्यों को धर्म-मार्ग से ले जाते हैं। उसी प्रकार राष्ट्र में विद्यासभा, धर्मसभा और न्यायसभा के अध्यक्ष तथा सेना का अध्यक्षप्रजाजनों को धर्ममार्ग में ले चलें । गुरुकुलवासी सुयोग्य अध्यापकों से युक्त, श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभाववाला आचार्य भी शिष्यों को धर्म तथा विद्या के मार्ग में ले चले ॥५॥

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    पदार्थ

    (वरुणः) वरणीय शरणप्रद (मित्रः) स्नेही सदा साथ रहने वाला (अर्यमा) आनन्ददाता स्वामी (विद्वान्) हमारे सब कर्मों को जानता हुआ (देवैः सजोषाः) अपने दिव्यगुणों के साथ समानरूप से सेवित होने वाला (नः) हमें (ऋजुनीती) सरल नयन क्रिया से (नयति) ले जाता है।

    भावार्थ

    परमात्मा हमारा सच्चा नेता हूँ, जो हमारा वरणीय, शरणदाता, स्नेही, साथी, आनन्ददाता स्वामी है, वह अपने समस्त दिव्य गुणों के साथ युक्त हुआ हमारे अन्तर्भावों को जानता हुआ सरल नयन क्रिया से ले जाता है।

    विशेष

    ऋषिः—गोतमः (वाणी—स्तुति को चाहने वाला परमात्मा)॥<br>

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    विषय

    सरलता के मार्ग से

    पदार्थ

    इस द्वन्द्वात्मक संसार में मनुष्य दो प्रकार के मार्गों से चल रहे हैं। एक मार्ग सरलता का मार्ग है और दूसरा कुटिलता का। कैवल्योपनिषत् के अनुसार ('सर्वं जिह्यं मृत्युपदं, आर्जवं ब्रह्मणः पदम्')=कुटिलता मृत्यु का मार्ग है, और सरलता मोक्ष का। इस सरल मार्ग का संकेत ही प्रस्तुत मन्त्र में उपलभ्य है। गत मन्त्र में मेधातिथि ब्रह्म के कीर्तन से जीवन-यापन कर रहे थे। जो व्यक्ति ब्रह्मस्मरण के साथ क्रियाशील बनता है वह सरल मार्ग से ही गति करता है, अतः मन्त्र में कहते हैं कि (नः) = हमें (वरुणः मित्रः अर्यमा)= वरुण, मित्र और अर्यमा (ऋजुनीती) =  सरल मार्ग से (नयति) = ले चलते हैं। वस्तुतः सरलता का मार्ग यह है कि वरुण, मित्र व अर्यमा के सिद्धान्त को जीवन का सूत्र बनाना । वरुण-पाशी व व्रतों के बन्धन में अपने को बाँधने की देवता है। यही सब वैयक्तिक उन्नतियों का मूलाधार है। मित्र स्नेह की देवता है–‘प्राणिमात्र से स्नेह करना - सभी में एकत्व देखना'। यह विश्वप्रेम आध्यात्मिक उन्नति का आधार है। अर्यमा दान की देवता है। हमारा जीवन दानशील हो । एवं वरुण, मित्र व अर्यमा ये तीन देव ही त्रिविध उन्नति का मूल बनकर हमारे जीवन को दिव्य बनाते हैं।

    इन तीनों का विशेषण (विद्वान्) = दिया गया है। विद्वान् का अर्थ है 'समझदार'। हमें व्रतों का ग्रहण समझदारी के साथ करना है। मूर्खता से हम शरीर को पीड़ित करते हुए व्रत लेते
    हैं और हानि उठाते हैं। मूर्खता से अपात्र में दान देकर हम तामस दानी बनते हैं, और मूर्खता से स्नेह करते हुए हम ममत्व में फँसते हैं। हमारे तीनों देवता विद्वान् हों- अर्थात् हम तीनों सिद्धान्तों को समझदारी से जीवन में स्थान दें।

    ये जीवन के तीनों सिद्धान्त (देवैः सजोषाः) = दिव्य गुणों के साथ समानरूप से प्रीति करते हुए हमारे कल्याण के साधक होते हैं। हम केवल व्रती न बनें, केवल दानी न बनें और केवल प्रेम करनेवाले न बनें। हमारे जीवन में तीनों सिद्धान्त सम्मिलित रूप से चलें। ऐसा होने पर ही हम इस मन्त्र के ऋषि 'गोतम' - प्रशस्त इन्द्रियोंवाले बनेंगे। तभी हम 'राहू-गण' त्यागशीलों में गिनती के योग्य समझे जाएँगे। 

    भावार्थ

    भावार्थ-हमारा जीवन व्रतमय, प्रेममय और त्यागमय हो।
     

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = ( वरुणः ) = सब कष्टों का निवारण करने हारा, ( मित्रः ) = सब का स्नेही ( विद्वान् ) = सर्वज्ञ ( अर्यमा ) = अन्तर्यामी न्यायकारी ( देवै: ) = विद्वान् पुरुषों से ( सजोषाः ) = समान रूप से प्रेम करने हारे राजा के समान परमेश्वर ( ऋजुनीती ) = धर्मयुक्त नीतिमार्ग से ( नः ) = हम सब को ( न यति ) = ले जाता है।
     

    टिप्पणी

    २१८- 'नयतु विद्वान्' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - गोतमो:।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    इन्द्राधिष्ठिता वरुणमित्रादयः—अस्मान् सरलमार्गेण नयेयुरित्याह।

    पदार्थः

    प्रथमः—अध्यात्मपरः। हे इन्द्रपरमात्मन् ! (देवैः) चक्षुरादिभिरिन्द्रियैः२। दीव्यन्ति व्यवहरन्ति स्वस्वविषयेष्विति देवाः इन्द्रियाणि तैः। (सजोषाः) सप्रीतिः। जुषी प्रीतिसेवनयोः धातोः औणादिकोऽसुन् प्रत्ययः। जोषसा सह वर्तते इति सजोषाः। समासे ‘वोपसर्जनस्य’ अ० ६।३।८२ इति सहस्य सः। (विद्वान्) ज्ञानवान् (वरुणः) पापेभ्यो निवारणकर्त्ता जीवात्मा, (मित्रः) प्राणः, (अर्यमा) मनः (नः) अस्मान् (ऋजुनीती) ऋजुनीत्या सरलेन धर्ममार्गेण। ‘सुपां सुलुक्पूर्वसवर्णदीर्घ०’ अ० ७।१।३९ इति तृतीयैकवचने पूर्वसवर्णदीर्घः। (नयति) नयतु।३ णीञ् प्रापणे धातोर्विध्यर्थे लेटि ‘लेटोऽडाटौ’ अ० ३।४।९४ इत्यडागमः ॥ अथ द्वितीयः—राष्ट्रपरः। हे इन्द्र राजन् ! (देवैः) स्वस्वाधिकारेषु व्यवहरद्भिः राजपुरुषैः (सजोषाः) सप्रीतिः, आनुकूल्यं भजमानः इत्यर्थः (विद्वान्) विपश्चिद् विद्यासभाध्यक्षः, (वरुणः) शत्रुनिवारकः शस्त्रास्त्रपाणिः सेनाध्यक्षः, (मित्रः) कदाचाररूपाद् मरणात् त्राणकर्त्ता धर्मसभाध्यक्षः, मित्रः प्रमीतेस्त्रायते। निरु० १०।२१।४ (अर्यमा) न्यायसभाध्यक्षः (नः) अस्मान् प्रजाजनान् (ऋजुनीती) ऋजुना धर्ममार्गेण (नयति) नयतु ॥ अथ तृतीयः—विद्वत्परः। (देवैः) विद्यया दीप्तैः विद्याव्रतदानशीलैः सर्वैः अध्यापकैः (सजोषाः) सामञ्जस्यं भजमानः (वरुणः) श्रेष्ठगुणकर्मस्वभावः, छात्रैराचार्यत्वेन वृतः छात्राणां शिष्यत्वेन वर्ता वा, (मित्रः) पापरूपात् मरणात् त्राणकर्ता, (अर्यमा) न्यायकारी (विद्वान्) आप्तविद्यः आचार्यः (नः) अस्मान् शिष्यान् (ऋजुनीती) ऋजुः सरला शुद्धा चासौ विद्यानीतिः व्रतनीतिश्च तया (नयति) नयतु। अस्मान् सुयोग्यान् विद्याव्रतस्नातकान् करोतु इत्यर्थः ॥५॥५ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥५॥

    भावार्थः

    शरीरे विद्यमाना जीवात्मप्राणमनःप्रभृतयो देवाः परमात्मनः सकाशाद् बलं प्राप्य मनुष्यान् धर्ममार्गेण नयन्ति। तथैव राष्ट्रे विद्याधर्मन्यायसभानामध्यक्षाः सेनाध्यक्षश्च प्रजाजनान् धर्ममार्गे नयन्तु। किञ्च गुरुकुलवासिभिः सुयोग्यैरध्यापकैः समन्वितः श्रेष्ठगुणकर्मस्वभाव आचार्योऽपि शिष्यान् धर्ममार्गे नयतु ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।९०।१, ‘नयति’ इत्यत्र ‘नयतु’ इति पाठः। विश्वेदेवाः देवता। २. देवाः स्वस्वविषयप्रकाशकानि श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि इति ऋ० ६।९।५ भाष्ये द०। ३. नयतीति पञ्चमलकारान्तम्, नयतु—इति भ०। नयति अभिमतं फलं प्रापयति—इति सा०। ४. पदकारेणापि ‘मि-त्रः’ इति विभजनात् ‘प्रमीतेः त्रायते यः सः’ इत्येवार्थः सूचितः। ५. दयानन्दर्षिणा ऋग्भाष्येऽस्य मन्त्रस्य वाचकलुप्तोपमालङ्कारमाश्रित्य परमेश्वरार्थेन सह विद्वत्परोऽर्थः प्रकाशितः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, the Dispeller of all afflictions, the Friend of all, Omniscient, Just, Lover of the learned, Thou leadest us straight on the path of virtue like a King!

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    Meaning

    May God, Lord Omniscient, Varuna, lord of justice and worthy of our intelligent choice, Mitra, lord of universal friendship, and the man of knowledge, wisdom and divine vision bless us with a natural simple and honest way of living. May Aryama, lord of justice and dispensation, bless us with a straight way of living without pretence. May He, lord of love who loves us and whom we love bless us with the company of noble, generous and brilliant people in humanity, and may He grant us the benefit of such generous powers of nature. (Rg. 1-90-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वरुणः) વરણીય શરણપ્રદ (मित्रः) સ્નેહી સદા સાથે રહેનાર (अर्यमा) આનંદદાતા સ્વામી (विद्वान्) અમારા સર્વ કર્મોને જાણીને (देवैः सजोषाः) પોતાના દિવ્યગુણોની સાથે સમાન રૂપથી સેવિત થનાર (नः) અમને (ऋजुनीती) સરળ માર્ગ-ગતિ ક્રિયાથી (नयति) લઈ જાય છે. (૫)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા અમારો સાચો નેતા છે, જે અમારો વરણીય, શરણદાતા, સ્નેહી, સાથી અને આનંદદાતા સ્વામી છે, તે પોતાના સમસ્ત દિવ્ય ગુણોની સાથે યુક્ત થઈને, અમારા અન્તર્ભાવોને જાણીને સરળ ગતિ ક્રિયાથી-સરળ માર્ગથી લઈ જાય છે. (૫)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    چکر ورتی راجاؤں کی راج نیتی دو!

    Lafzi Maana

    (ورُون) پاپوں کو دُور کرنے والا (مِترہ وِدوان اریما) سب کا مِتر عالمِ کل عادل اور (دیوی سجوشا) نیک سیرت آدمیوں کے ساتھ پریم کرنے والا ایشور (رجونیتی نیتی) ہمیں دھرماتما راجاؤں کے سیدھی سچی راج نیتی کے راستے پر چلائے۔

    Tashree

    نیائے کاری دوست سچّے اور پاپوں کے نِوارک، سیدھے سچّے راستے سے لے چلو ہے سروَ رکھشک۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    शरीरात विद्यमान जीवात्मा, प्राण, मन इत्यादी देव परमात्म्याकडून बल प्राप्त करून माणसांना धर्ममार्गाकडे नेतात. त्याचप्रकारे राष्ट्रात विद्यासभा, धर्मसभा व न्यायसभेचे अध्यक्ष व सेनेचा अध्यक्ष यांनी प्रजाजनांना धर्ममार्गाने न्यावे. गुरुकुलवासी सुयोग्य अध्यापकांनीयुक्त श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभावाच्या आचार्याने ही शिष्यांना धर्म व विद्येच्या मार्गाने न्यावे ॥५॥

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    विषय

    इंद्र, ज्याचे नाव वरुण, मित्र, त्याला प्रार्थना -

    शब्दार्थ

    (प्रथम अर्थ) (अध्यात्म पर) - हे इन्द्र परमेश्वर, तुमच्या साह्याने घदेवैः) चक्षु आदी इंद्रियांवर (सजोषाः) प्रीति करणारा (विद्वान) ज्ञानी आणि (वरुणः पाप निवारण करणारा आमचा जीवात्मा (मित्रः) आमचे प्राण आणि (अर्यमा) आमचे मन (नः) आम्हा उपासकांना / साधकांना (ःजुनीती) सरळ मार्गावर (नयति) घेऊन जावेत. (जीवात्मा, प्राण व मन आम्हाला साधनेसाठी उपकारी ठरोत.) द्वितीय अर्थ - (राष्ट्रपर) हे इन्द्र राजा, (देवैः) आपापल्या अधिकार क्षेत्रात कार्य करणाऱ्या राज पुरुषांसह (सजोषाः) शस्त्रास्त्रधारी सेनाध्यक्ष (मित्रः) कुत्सित आचरण रूप मृत्यूपासून आम्हास वाचविणारा धर्म सभाध्यक्ष आणि (अर्यमा) न्याय सभाध्यक्ष (नः) आम्हा प्रजाजनांना (ऋजुनीती) सरळ धर्म मार्गावर (नयति) घेऊन जावो.।। तृतीय अर्थ - (विद्वानपर) - (देवैः) विद्या आणि व्रत- शिक्षा आदी दान देणाऱ्या अध्यापकांशी (सजोषाः) सामंजस्य ठेवणारा (वरुणः) श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभावाचा तसेच शिष्यांनी ज्याचे आचार्य रूपाने वरण केले आहे, अशा (मित्रः) पापरूप मरणापासून वाचविणारा (अर्यमा) न्यायकारी (विद्वान) विद्यावान आचार्य (नः) आम्हा शिष्यांना (ऋजुनीती) सरळपणाने विद्यादान व व्रत पालन करणाऱ्याच्या पद्धतीने (नयति) घेऊन जावोत (अशी आम्ही कामना करीत आहोत) अर्थात आचार्याने आम्हाला सुयोग्य स्नातक करावे.।। ५।।

    भावार्थ

    शरीरात असलेले जीवात्म, प्राण, मन आदी देव परमेश्वरापासून शक्ती प्राप्त करून मनुष्याला धर्म- मार्गावर नेतात. त्याचप्रमाणे राष्ट्रात विद्या सभा, धर्मसभा आणि न्याय सभा यांचे अध्यक्ष असलेले विद्वान, धार्मिक, न्यायशील मनुष्य तसेच सेनाध्यक्ष या सर्वांनी प्रजाजनांना धर्म मार्गावर चालण्यास नेतृत्व करावे. गुरुकुलवासी, सुयोग्य अध्यापक, श्रेष्ठ गुण- कर्म स्वभाव असलेल्या आचार्याने शिष्यांना धर्म मार्ग व विद्या मार्गावर न्यावे.।।२।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे।। ५।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    மித்திரன் வருணன் உத்தம நிலை அறிந்த சத்தியக் கண்களால் அழைத்துச் செல்லுகிறான். தேவர்களுடன் சமானப் ப்ரீதியுடனான அர்யமானும் எங்களை அழைத்துச் செல்லுகிறான்.

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